हिजाब की आड़ में कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति 

कर्नाटक में शैक्षणिक संस्थानों में लड़कियों के हिजाब पहनने पर रोक के मुद्दे पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का बयान दर्शाता है कि कांग्रेस राजनीति के अखाड़े में अभी भी तुष्टिकरण की नीति से चिपकी हुई है। कांग्रेस तुष्टिकरण की ऐसी अघोषित नीति पर पिछले कई चुनावों में मात खा चुकी है। इसके बावजूद वह सबक सीखने को तैयार नहीं है। यह मुद्दा सिर्फ  चुनाव का नहीं बल्कि देश के कानून और काफी हद तक सुरक्षा से भी संबंधित है। इस मुद्दे पर कांग्रेस को अपने देश से नहीं तो दूसरे देशों से सीखने की जरूरत है। फ्रांस और कई दूसरे देश हिजाब या बुर्के पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा चुके हैं। 
निश्चित रूप से इन देशों में लोकतांत्रिक ढांचा भारत से मजबूत है। इन देशों ने यह कदम आतंकी हमलों के बाद देश की सुरक्षा के लिए उठाया था। पश्चिमी देशों में राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों पर ऐसी स्तरहीन राजनीति नहीं की जाती, जैसी कि भारत में। भारत के राजनीतिक दल सत्ता में आने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, मामला चाहे धर्म का हो, अपराधियों को संरक्षण देने का हो, घपलों-घोटलों का या फिर दूसरे ऐसे ही देश विरोधी कृत्यों का हो।  होना तो यह चाहिए कि शैक्षणिक संस्थाओं को ऐसे राजनीतिक विवादों से दूर रखा जाए। सिर्फ  धर्म और संस्कृति के आधार पर किसी वर्ग को कोई छूट नहीं दी जा सकती है चाहे वह वर्ग किसी भी धर्म से संबंधित क्यों न हो। धर्म-निरपेक्षता और समानता का अधिकार बेशक अपनी जगह है, किन्तु इसकी आड़ में किसी तरह के कट्टरपन और अनुशासनहीनता को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। स्कूल या कॉलेजों में सिर्फ धर्म के आधार पर छूट देने का अर्थ है कि हर जाति और धर्म को उनके हिसाब से छूट देना। अभी एक ने वर्ग ने छूट देने की मांग की है, फिर दूसरे वर्ग के लोग भी ऐसी मांग करने लगेंगे। पढ़ाई-लिखाई और उसमें गुणवत्ता से किसी का सरोकार नहीं रह जाएगा। स्कूल-कॉलेज अनुशासन और शिक्षा के नाम पर फैशन का बाज़ार बन कर रह जाएंगे। 
सबरीमाला मंदिर इसका श्रेष्ठ उदाहरण माना जाना चाहिए, जबकि यह शुद्ध रूप से धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ मामला था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महिलाओं को न्याय देते हुए उन्हें मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिया। धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के इस अत्यधिक संवेदनशील मसले का हल कानून के आधार पर किया गया। इसी तरह राम मंदिर का मुद्दा रहा। भाजपा ने बेशक इसके सहारे राजनीतिक की ऊंचाई तय की पर अपने बलबूते पर मंदिर नहीं बना पाई। मंदिर बनाने का निर्णय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही हो सका। 
कांग्रेस ने इन फैसलों से भी सबक नहीं सीखा और मामले की नज़ाकत को देखते हुए राजनीतिक रोटियां सेंकना शुरू कर दी। कांग्रेस के करीब 60 साल के शासन में अल्पसंख्यकों की दिशा-दशा कैसी रही है, किसी से छिपा हुआ नहीं है। अभी भी कांग्रेस जिन राज्यों में सत्ता में है, वहां अल्पसंख्यकों की हालत हर लिहाज से दयनीय बनी हुई है। इसके लिए काफी हद तक कांग्रेस ही जिम्मेदार है। कांग्रेस की सांप-छछूंदर की हालत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस ऐेसे विवादास्पद मुद्दों का समर्थन बेशक करे पर उन्हें कानूनी रूप देने से बचती रही है। तीन तलाक के मुद्दे पर कांग्रेस की यही हालत रही। इस मामले में कांग्रेस को कानूनी समानता और स्वतंत्रता नज़र नहीं आई। कांग्रेस अल्पसंख्यकों की कितनी हितैषी है, इसका पता इस बात से भी चलता है कि कांग्रेस ने कभी भी खुल कर तीन तलाक की आड़ में महिलाओं के साथ हो रहे शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद नहीं की जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे अवैध करार दिया था। इसके बावजूद कांग्रेस तुष्टिकरण की नीति अपनाते हुए इसका समर्थन करती रही। 
तीन तलाक हो या हिजाब पहनने का मामला, कांग्रेस की नीयत में भले ही खोट हो पर व्यापक रूप से ये मुद्दे की देश की एकता-अखंडता और कानून से जुड़े हुए हैं। दरअसल हिजाब का समर्थन करते हुए कांग्रेस अल्पसंख्यकों की हितैषी बनने का प्रयास कर रही है।  पांच राज्यों के चुनावों में कांग्रेस की हालत पतली है। किसान आंदोलन से जो उम्मीद बनी थी, उसे केंद्र सरकार ने कानूनों को वापस लेकर मुद्दे की हवा निकाल दी। कांग्रेस एक तरफ  अल्पसंख्यकों के बूते सत्ता की राजनीति गोटियां फिट करने की फिराक में हैं, वहीं दूसरी तरफ  पंजाब जैसे कई राज्यों में पार्टी में सिर-फुटव्वल की हालत चल रही है। हिजाब या दूसरे ऐसे मुद्दों से लोगों को बरगलाया नहीं जा सकता। बेहतर होगा कि कांग्रेस ऐसे मामलों को कानून के हवाले करके धरातल की समस्याओं के समाधान की कवायद करे, अन्यथा राजनीतिक वनवास का उसका सफर आगे भी जारी रहेगा।