गुरु गोबिन्द सिंह जी की सिंह गर्जना

बिछी जो घास धरती पर है बन के ़खार बोलेगी।
ज़ुबां मज़लूम की बन कर मेरी तलवार बोलेगी।
यह गर्दन कट तो सकती है मगर यह झुक नहीं सकती,
कभी चमकौर फिर सरहिन्द की दीवार बोलेगी।
युगों तक रौशनी मिलती रहेगी इन चिऱागों से,
हर इक लौ अपने परवानों की जय-जयकार बोलेगी।
छुपाये छुप नहीं सकते शहीदों के ़िफदा नामे,
अगर सूली न बोलेगी लहू की धार बोलेगी।
मिलाना आंख है अब झौंपड़ी को शीश महलों से,
ब़गावत की यह चिंगारी भरे दरबार बोलेगी।
कोई रौंधे नहीं इन्सानियत को अपने पैरों में,
कि ़गैरत आदमी की बन के पहरेदार बोलेगी।
न होगी पत्थरों की होगी पूजा अब भगौती की,
जहां भी ज़ुल्म बोलेगा वहीं तलवार बोलेगी।
जहां रख दूं कदम अपना वहीं होगी हर इक मन्ज़िल,
मेरे हर कद़म की गर्मी-ए-रफ़्तार बोलेगी।
तुम्हारे पाओं की बेड़ी ज़ुबां बन जाएगी ‘पंछी’
रहोगे तुम अगर ़खामोश तो झनकार बोलेगी।
-सरदार पंछी
मो. 94170-91668