ग्रामीण विकास फंड का उचित उपयोग

पंजाब मंत्रिमंडल की ओर से ग्रामीण विकास (संशोधन) अध्यादेश को पारित करके एक अच्छा पग उठाया गया है। यदि इसे सही भावना एवं ढंग के साथ क्रियान्वयन में लाया जाता है तो यह प्रदेश के मंडीकरण के लिए एक अच्छा पड़ाव सिद्ध होगा। हरित क्रांति के बाद फसलों की सार-सम्भाल के लिए जिस प्रकार मंडियां विकसित हुईं, उन्होंने कृषि विकास में अपना अहम योगदान डाला है। प्रदेश के मंडी बोर्ड ने समय-समय पर इनकी बेहतरी के लिए पग उठाये परन्तु इसके बावजूद प्राय: ये प्रबन्ध आधे-अधूरे ही दिखाई देते रहे। इन्हें सन्तोषजनक ढंग से सम्पन्न नहीं किया जा सका। मंडियों में जो फसल आती थी, उसकी खरीद का तीन प्रतिशत भाग इनके विकास कार्यों के लिए आरक्षित कर लिया जाता था परन्तु ये भी शिकायतें आने लगी थीं कि केन्द्र की ओर से आने वाले इस विकास फंड को इसके सही उद्देश्य के स्थान पर अन्य कामों में प्रयुक्त कर लिया जाता था। इसके कारण कई बार केन्द्र एवं राज्य सरकार में काफी विवाद भी चलता रहा है। केन्द्र के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की ओर से इसके उपयोग के लिए फरवरी 2020 को संशोधित हुये नियम तय किये गये थे। इनका उद्देश्य भी विकास फंडों का सही इस्तेमाल करना ही था। ऐसा न होने पर जब ये फंड रुकने लगे तो प्रदेश सरकार को इसका सेंक लगना शुरू हुआ।
अब पुराने पंजाब ग्रामीण विकास एक्ट में संशोधन करके नये अध्यादेश को स्वीकृति दी गई है जिसके अनुसार ये फंड मंडियों तक पहुंचने वाली सड़कों के निर्माण अथवा मुरम्मत, खरीद केन्द्रों के विकास, पुरानी मंडियों के नवीकरण एवं मंडियों में अन्य आधारभूत सुविधाएं प्रदान करने पर खर्च किये जाएंगे। इन प्रबन्धों के लिए आधुनिक तकनीकों का सहारा भी लिया जाएगा। इसके साथ-साथ फसल के तत्काल भंडारण के लिए  सुविधाओं का विकसित होना बहुत ज़रूरी है। यदि फसलों की खरीद का आधारभूत ढांचा मजबूत होता है तो इससे प्रत्येक पक्ष से विकास होगा क्योंकि प्रदेश की आर्थिकता का बड़ा आधार अभी भी कृषि व्यवसाय ही बना हुआ है। आज सरकारी मंडीकरण में कितने बड़े परिवर्तन लाये जाने की आवश्यकता है, इसका अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मोगा के निकट अडानी के जिस साइलो को किसान आन्दोलन के दौरान पूरी तरह से बंद कर दिया गया था, आज उसी इलाके में सरकार की मंडियों से इस साइलो के आगे किसानों की अधिक रौणकें दिखाई दे रही हैं। मोगा के गांव डगरू स्थित इस साइलो में 2 लाख मीट्रिक टन गेहूं रखने की सामर्थ्य है। किसान आन्दोलन के समय यहां पहले से पड़ी 1.15 लाख मीट्रिक टन गेहूं को बाहर नहीं जाने दिया गया था। इस कारण मौजूदा सीजन में यह साइलो केवल 85 हज़ार मीट्रिक टन ही नई गेहूं का भंडार कर सकेगा। यह साइलो 25 वर्ष के लिए फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया ने अपनी ओर से खरीदी गई गेहूं को भंडारण के लिए अडानी की कम्पनी से किराये पर लिया हुआ है। यहां आढ़तियों के माध्यम से ही किसानों की ओर से फसल भेजी जा रही है तथा इस गेहूं की खरीद फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया की ओर से की जाती है। साइलो में लगी अत्याधुनिक मशीनरी के कारण किसान शीघ्र अपनी फसल बेच कर फारिग हो जाता है तथा उसका उतार, छड़ाई एवं तुलाई आदि के खर्च से भी बचाव हो जाता है। यहां फसलें लाने वाले किसानों ने बताया कि उनका गेहूं की तुलाई एवं छड़ाई का खर्च जो 12 रुपये प्रति क्ंिवटल के करीब बनता है, भी उन्हें नहीं देना पड़ता तथा अदायगी भी बहुत शीघ्र हो जाती है। 
दूसरी ओर किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए कई-कई दिन सरकारी मंडियों में प्रतीक्षा करनी पड़ती है तथा अदायगी के लिए इंतजार करना पड़ता है। इससे यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि आज प्रदेश की मंडियों को किस प्रकार आधुनिक पथों पर चलाये जाने की आवश्यकता है जिससे कि किसान समुदाय को बेहतर सुविधाएं मिल सकें। हम पिछले कई दशकों से यह भी लिखते आ रहे हैं कि फसलों को सम्भालने के लिए सभी प्रकार के पुख्ता प्रबन्ध किये जाने ज़रूरी हैं। इनकी सार-सम्भाल के लिए आवश्यक स्टोर (गोदाम) न होने के कारण प्रति वर्ष लाखों टन फसल खराब हो जाती है। हम इसे सम्बद्ध प्रशासनों की बहुत बड़ी लापरवाही समझते हैं। यदि सम्बद्ध सरकारें स्वयं यह काम करने में असमर्थ हैं तो उन्हें इसके लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करके अधिक सामर्थ्य वाले गोदाम बनाने की आवश्यकता होगी। आज मंडीकरण को नये पथों पर चलाये जाने से ही प्रदेश के विकास में भारी योगदान डाला जा सकता है। इस संबंध में ग्रामीण विकास अध्यादेश के माध्यम से निर्धारित किये गये क्षेत्रों में कार्य करने से लक्ष्यों की पूर्ति की जा सकती है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द