बहुत गुणकारी है सौंफ

सौंफ शीतल प्रकृति की औषधि है। उसके फल जीरे से मिलते-जुलते हैं। काम में लाया जाता है। पान, सुपारी, इलायची की जगह सौंफ को अतिथि सत्कार के लिए प्रयुक्त किया जाता है। गरमी के दिनों में ठंडाई पीने का चलन है। उसमें सौंफ मुख्य है। उसकी मात्र भी ज्यादा रखी जाती है। स्वाद में मीठी और सुगंधित होने के कारण वह सर्वप्रिय भी है, सस्ती भी।जिन रोगों में गरमी की अधिकता का असर दृष्टिगोचर होता हो, उनमें सौंफ का प्रयोग बेखटके किया जाता है।  तवे में हल्की आग से भून लेने पर भी जुड़े हुए तिनके अलग हो जाते हैं। इतना कर लेने पर सौंफ का इस्तेमाल थोड़ी-थोड़ी मात्र में मुंह में डालते हुए पान की तरह चबाकर किया जा सकता है। सिल पर चटनी की तरह बारीक पीसकर शहद या चीनी के साथ मिलाकर चाटा जा सकता है। सौंफ को बारीक कूटकर उसे पानी में भिगोया जाए। ऊपर से पानी निथारते रह जाए और अंत में गाढ़ा-सा तलछट बच जाए, उसे सुखा लिया जाए, यही सौंफ का सत है।आयुर्वेद मत से सौंफ चरपरी अग्नि प्रदीपक, वात, ज्वर, शूलनाशक तथा तृष्णा, वमन को शांत कर देने वाली औषधि है। यह पेशाब की जलन कम करती है। यह आंतों की मरोड़ शांत करती है एवं श्रेष्ठ अम्लपित्त नाशक है। सौंफ को घी में तला जाए व मिसरी के साथ मिलाया जाए तो अतिसार (डायरिया) मिटता है। बेल के गूदे के साथ चूर्ण खाने से अजीर्ण मिटता है। सौंफ, कुलफे के बीज, गुलाब के फूल, कमलगट्टे की मगज, चंदन चूर्ण, खस, काली मिर्च, छोटी इलायची, खरबूजे के बीज व बादाम मिलाकर पीसकर ठंडाई बनाई जाती है, जो मेधावर्द्धक भी है एवं लू, पित्त, ज्वर, हैजा, दस्त, वमन की श्रेष्ठ औषधि भी।      

          (स्वास्थ्य दर्पण)