क्यों नहीं अपनाया किसानों ने धान की सीधी बिजाई को ?

बारिश होने से धान की रोपाई में जो रकबा कम हो रहा था, अब पूरा होने की ओर बढ़ गया है। जुलाई में बारिश अच्छी हुई है और धान, बासमती की काश्त अधीन रकबा भी बढ़ा है। गत वर्ष धान की काश्त बासमती के 4.85 लाख हैक्टेयर रकबे को मिला कर 30.66 लाख हैक्टेयर रकबे पर की गई थी। इस वर्ष भी 30 लाख हैक्टेयर रकबे पर धान, बासमती की काश्त होने की सम्भावना है। भरपूर फसल होने की उम्मीद की जा रही है। 
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा 12 लाख हैक्टेयर रकबे पर सीधी बिजाई करने का लक्ष्य रखा गया था, परन्तु सीधी बिजाई मुश्किल से 82 से 83 हज़ार हैक्टेयर के मध्य रकबे पर ही की गई है। गत वर्ष कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा इकट्ठे किये गए आंकड़ों के आधार पर 6 लाख हैक्टेयर रकबे पर सीधी बिजाई की गई थी। राज्य सरकार द्वारा 1500 रुपये प्रति एकड़ सीधी बिजाई करने के लिए सहायता देने की घोषणा भी की गई तथा करोड़ों रुपये सीधी बिजाई के प्रचार करने पर खर्च किये गए। फिर भी रकबा इतना कम क्यों रहा? विभाग द्वारा कहा जा रहा है कि मई के अंत में जब सीधी बिजाई करने का समय होता है, ट्यूबवैलों के लिए लगातार बिजली उपलब्ध नहीं हुई और मई के अंतिम सप्ताह से लेकर जून के पहले सप्ताह के दौरान नहरबंदी भी रही। सभी रजबाहे सूखे पड़े थे। इसलिए किसानों को पानी उपलब्ध नहीं हुआ। सीधी बिजाई करने के लिए बिजाई से पहले ज़मीन को दो बार रौणी के बाद बहाई करके तैयार करना पड़ता है। फिर इसे लेज़र कराहे से समतल करना पड़ता है जिसके लिए काफी पानी की आवश्यकता है तथा काफी खर्च भी आता है। सीधी बिजाई किये धान के खेतों में नदीनों की भी बड़ी गम्भीर समस्या होती है। महंगे-महंगे नदीन नाशक इस्तेमाल करने के बाद भी नदीन उग जाते हैं। विशेषज्ञों द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि सीधी बिजाई में कद्दू विधि से लगाए धान के मुकाबले 30 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। किसानों का कहना है कि कद्दू किये धान के मुकाबले सीधी बिजाई के लिए पानी की ज़रूरत तो कम होती है परन्तु एक तिहाई पानी की बतच नहीं होती। सीधी बिजाई वाले धान की सिंचाई की भी काफी ज़रूरत होती है।
पंजाब सरकार के साथ वर्ष 2018 में धान का रिकार्ड उत्पादन करने के लिए केन्द्र से ‘कृषि करमन पुरस्कार’ लेने वाला आईसीएआर-आईएआरआई से सम्मानित प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका कहते हैं कि सीधी बिजाई में कद्दू करके लगाए गये धान के मुकाबले उत्पादन भी कम होता है। यही कारण है कि किसानों ने इस वर्ष सीधी बिजाई तकनीक के लिए उत्साह नहीं दिखाया। वर्ष 2020 में तो कोविड-19 के कारण मज़दूरों की कमी होने से (क्योंकि प्रवासी खेत मज़दूर अपने घरों को चले गए थे) किसानों के बहुमत ने सीधी बिजाई से धान लगाया था और वर्ष 2021 में उन्होंने इसका परिणाम देख कर इस वर्ष इस तकनीक को नहीं अपनाया। संगरूर ज़िले के गहिलां गांव का बड़ा धान उत्पादक एवं प्रगतिशील किसान गुरमेल सिंह कहता है कि सीधी बिजाई करके कम उत्पादन की प्राप्ति इसलिए होती है कि कुछ रकबा फसल के बिना रह जाता है जो प्रत्येक खेल में थोड़े-थोड़े रकबे को मिला कर बीघों तथा एकड़ों में बनता है। कुरुक्षेत्र के निकट बच्चकी गांव का आईएआरआई से सम्मानित प्रगतिशील किसान तथा धान उत्पादक प्रकाश सिंह कहता है कि कद्दू करके ट्रांसप्लांटिंग के माध्यम से धान तो किसान गत शताब्दी से लगाते आ रहे हैं, परन्तु सीधी बिजाई पर गत कुछ समय से ही ज़ोर दिया गया है, जिसके लिए किसानों को पूरी जानकारी एवं प्रशिक्षण नहीं मिलता। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग तथा कृषि यूनिवर्सिटियां आम किसानों तक नहीं पहुंच सके, क्योंकि उनके पास स्टाफ की कमी है। 
कद्दू किये धान में किसान पहले पौध की बिजाई करते हैं, जब 25-30 दिन के पौधे हो जाते हैं तो उन्हें उखाड़ कर खेत मज़दूर खेत में हाथों से ट्रांसप्लांट करते हैं। पौध की लगाई तो आम तौर पर मॉनसून से पहले ही शुरू हो जाती है। किसानों ने 18 जून से पहले ही धान लगाना शुरू कर दिया, जबकि पंजाब राज्य बिजली निगम की ओर से ट्यूबवैलों के लिए 8 घंटे प्रतिदिन बिजली पूरे पंजाब में 18 जून से देनी शुरू कर दी गई थी। मॉनसून आने पर या बिजली से ट्यूबवैलों को चला कर ही धान लग सकता है, क्योंकि शुरू में हाथों से ट्रांसप्लांट किये गये धान के खेत में 4-5 सैंटीमीटर पानी कम से कम दो सप्ताह खड़ा करना आवश्यक है। कई ऐसे किसानों ने जिन्होंने अगेती पौध की बिजाई कर दी थी, गर्मी पड़ने से पौध न होने की स्थिति में पुन: पौध बीज ली। उन्होंने दोबारा पौध लगाने का खर्च सहन कर लिया, परन्तु सीधी बिजाई करने को सहमति नहीं दी। ऐसे किसानों ने कम समय में पकने वाली किस्में जैसे धान की पी.आर.-126 तथा बासमती की पूसा बासमती-1509 लगा लीं। इन किसानों ने ट्रांसप्लांट करके फसल लगाने को इसलिए भी प्राथमिकता दी, क्योंकि ट्यूबवैलों के माध्यम से मुफ्त पानी उपलब्ध था।  
किसान इस वर्ष गेहूं का उत्पादन कम होने के घाटे को धान से पूरा करने का अनुमान लगाए बैठे हैं। एक तो अच्छी मॉनसून और दूसरे कृषि एवं पंचायत मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल द्वारा किसानों को आश्वासन देना कि कीटनाशक दवाइयां, नदीन नाशक तथा खाद शुद्ध रूप में पहुंचाना सुनिश्चित किया जाएगा। खरीफ की दोनों फसलों नरमा, धान-बासमती में कीटनाशक दवाइयों का व्यापक स्तर पर इस्तेमाल किया जाता है। वैसे तो इस वर्ष धान लगाने के लिए खेत मज़दूरों की कोई कमी नहीं थी, परन्तु फिर भी जहां बड़े-बड़े उत्पादकों ने ऐसी कमी महसूस की, उन्होंने धान लगाने वाली मशीन से फसल लगा ली। ये मशीनें कुछ बड़े-बड़े किसानों ने लेकर दूसरे किसानों को किराये पर भी उपलब्ध कीं। पटियाला जिले के जौड़माजरा गांव के किसान केवल सिंह ने दो मशीनें लीं और पौध सहित धान लगाने की सेवा दूसरे कई किसानों को किराये पर उपलब्ध की। इस मशीन से धान लगाने के लिए मिट्टी के बैड बना कर प्लास्टिक या रबड़ की शीट पर धान की पौध लगानी पड़ती है। इसमें मेहनत अधिक है और प्रत्येक किसान को पौध लगाने का प्रशिक्षण भी नहीं। यह मशीन एक दिन में पांच एकड़ तक धान लगा देती है।