अपमान और लांछन के बोसीदा एहसास

कोई ऐसा वक्त था जब इस देश में कोई किसी को अनचाहे लांछन कर देता, या भूल से किसी का अपमान हो जाता, तो गर्दन कट जाती। यह वाक्य इसी देश में कभी कहा गया था कि ‘यह सिर कट तो सकता है, झुक नहीं सकता।’ या कि किसी नारी के अपमान पर ऐसा महाभारत हुआ था, कि आज भी उसकी दृश्यावलि रचते हुए चित्रपट निर्माताओं के पैसे की रूह कांप उठती है। कहीं बाज़ी उल्टी पड़ जाये तो पैसे की ही क्यों, इन निर्माताओं की अपनी रूह भी कांप उठती है, और वे कानों को हाथ लगा कर कह देते हैं, ‘तौबा-तौबा।’
जनाब, आज अपनी ज़िन्दगी को इतने बड़े पैमाने पर जीने में कोई विश्वास नहीं करता। टुच्चापन समय की आवाज़ बन गया है, और कदम-कदम पर समझौता हमारे ज़िन्दा रहने का अर्थ।
प्रेम, इश्क और आखिरी सांस तक लगी को निभाने की बात आजकल फुटपाथी फटीचर उपन्यासों में भी नहीं होती बल्कि लोगों ने तो इसे निरर्थक जान कर लिखना-पढ़ना भी बंद कर दिया। बात केवल पुस्तक संस्कृति की शवयात्रा की ही नहीं है, लोग आजकल बड़े गर्व के साथ अपने अनपढ़ होने की घोषणा कर देते हैं बल्कि हमने तो ऐसे श्रेष्ठ रचनाकार भी देखे हैं, जो दर्प से भर कर कह देते हैं, कि ‘साब, हम कभी कुछ नहीं पढ़ते बल्कि हम तो सुबह उठ  कर अखबारों में मगजपच्ची भी नहीं करते, क्योंकि हमें पूरा विश्वास है कि ऐसा करने से हमारी मौलिकता नष्ट हो जाएगी।’ कोई भला आदमी दूसरा रास्ता बताने लगे तो कह देते हैं, ‘बाज़ आये ऐसी मोहब्बत से, उठा लो पानदान अपना।’
जी हां, आज के ज़माने में इश्को मोहब्बत के पानदान कौन तलाशता है। सब को नकार कर स्थापित हो जाने की भावना इतनी प्रबल हो गई है, कि यह भी देखा नहीं जाता कि जिस ईर्ष्या के पहाड़ को हमने माऊंट एवरेस्ट माना, वह तो ऐसा कूड़े का डम्प था, कि जिसे न उठाने की कसम उनको कभी खत्म होने में ही नहीं आती।
आज नयी शिक्षा नीति के नारों के बावजूद पढ़ना-लिखना इतना बड़ा अपमान हो गया है, कि उसे समाज के मीर मुंशियों के द्वारा किसी त्याज्य दीमक भरे गद्दे पर लेटने के लिए विवश कर दिया जाता है। इस्तीफा क्यों दोगे?
आजकल इससे न कोई अपमानित होता है, और न लांछित। पुस्तक-पुस्तक चिल्लाने की यही तो सही सज़ा है। आजकल मैरिट लिस्ट अकादमिक परीक्षा में अधिक अंक लेने से नहीं बनती, बल्कि शिक्षा परिसरों को नकार आईलेट्स अकादमियों  का दामन थामने से बनती है। परीक्षा में कितने अंक लिये, कोई नहीं पूछता? बस यही पूछा जाता है कि कितने बैंड आये? इनसे इस देश से पलायन के लिए वीज़ा तो बन जाएगा न। आज अपने ही देश में नागरिक बन जीना मरना असहज लगता है। किसी डालर, पाऊंड, रूबल या दीनार देश की प्रथम दर्जे की नागरिकता प्राप्त कर लेने से बड़ी उपलब्धि कोई और है क्या? वहां वे डालर मूल्यों की चमक-दमक में दूसरे-तीसरे दर्जे का नागरिक भी बन जायें। अवैध रूप से तस्कर हो जायें, तो उनका यह कोई अपमान नहीं। इसे एक स्थगित सम्मान कह सकते हैं, जो आपका ग्रीन कार्ड बन जाने पर आपको मिल जायेगा।  अपने देश में भी अपमान और सम्मान की पहचान के पैमाने बदल गये हैं। यहां कतार का आखिरी आदमी बन कर अपने अन्त्योदय का सपना देखना एक ऐसी वायवीय इच्छा है कि जिसका अमृत महोत्सव मनाते हुए आज आम आदमी अपमानित महसूस करता है। 
बल्कि राहतों और रियायतों भरी संस्कृति के इस देश में एक साधारण जन के लिए इससे बड़ा कोई और सम्मान नहीं कि उस पर कोई आरक्षण भरी अनुकम्पा हो गयी। अभी फैसला आ गया कि इस अनुकम्पा से सम्पन्नता का मीनार रच लेने के बाद भी कोई उन्हें ‘क्रीमीलेयर’ कह कर नकारेगा नहीं। स्पष्ट श्रवण कर लो, एक बार आरक्षित तो सदा आरक्षित। और जो आरक्षित नहीं हो सके, जिन्हें आप सामान्य वर्ग कहते हैं, उन्हें तो मुफ्त बिजली की घोषणा की एक इकाई भी नहीं मिलेगी। सोच लीजिये कि अब यहां किसी वर्ग में पैदा होना अधिक सम्मानजनक है? यह दलित उत्थान का समाजवादी दृष्टिकोण है। प्रगतिशीलता है, सदियों के अन्याय का प्रत्युत्तर है। इससे आम लोगों को न उपेक्षित होना चाहिए,  न अपमानित महसूस करना है। दुर्भाग्य जिनकी आदत हो गई है, वे भला अब दुर्भाग्य सौभाग्य की पड़ताल करने क्यों जायें?
बल्कि अब तो मौसम के असाधारण परिवर्तनों की तरह कुछ नये सत्यों की पहचान करने की आदत डाल लेनी चाहिए। देखो, इस बात से अपमानित महसूस करने की ज़रूरत नहीं, कि जब आपने अपनी मतशक्ति के साथ सत्ता के बाजीगर बदल दिये, तो नये बाज़ीगर भी वही लुभावना तमाशा लेकर आये हैं जिसमें बदलाव की घोषणाओं की तासीर उसी ढाक के तीन पात जैसी है। आदत डाल लो सुखद अभिव्यक्ति के नाम पर एक-दूसरे पर आरोपों और प्रत्यारोपों की बरसात की। आदत डाल लो संसद और विधानसभाओं में गतिरोध और हुल्लड़ की। सत्र दर सत्र यूं ही गम्भीर चर्चा और उसमें से किसी नवनिर्माण पथ के इंतज़ार में बीत जायेंगे। टूटी सड़कों, बरसाती गड़्डों और अधूरे पुलों के अकस्मात पटाक्षेप को अमृत पथ बताने वाले बहुत-से मिल जायेंगे। याद रखो इन्हें उपलब्धि मान मीरे कारवां आह्लादित होने लगे, तो आपने इसे आज़ाद सदी का उपहार मान उत्सव मनाना है। जी हां यहां सब चलता है, मान कर इसे शिरोधार्य करने का उत्सव।