चावल का उत्पादन कम होने की संभावना

पूसा बासमती-1509 किस्म आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा पानी की बचत करने तथा पराली एवं अवशेष कम करके प्रदूषण तथा आग लगाने की समस्या का विशेष तौर पर समाधान करने के लिए विकसित की गई है। यह पकने  में कम समय 115-120 दिन लेती है। इसकी ट्रांसप्लांटिंग जुलाई के अंत से 5 अगस्त तक सिफारिश की गई है जिससे पानी की समस्या का काफी सीमा तक समाधान हो जाता है। पौधे की ऊंचाई कम होने के कारण प्रदूषण भी कम होता है। इसकी सिंचाई की अधिकतर ज़रूरत बारिश के पानी से ही पूरी हो जाती है। केन्द्र की फसलों की किस्मों तथा स्तर रिलीज़ करने संबंधी बनी सब-कमेटी द्वारा इसे बासमती पैदा करने वाले क्षेत्र (जिसमें पंजाब, हरियाणा मुख्य तौर पर शामिल हैं) में काश्त करने लिए जारी किया गया है। उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में इसे अगेती बीज कर किसानों ने अधिक लाभ उठाया है। उन्होंने खरीफ के मौसम में इसकी दो फसलें लेनी शुरू कर दीं। पहली फसल उन्होंने हरियाणा की करनाल स्थित मंडियों में इस महीने के शुरू में 3500 से 4000 रुपये प्रति क्ंिवटल तक बेची। यह बहुत किसान पक्षीय तथा लाभदायक कीमत है जिस पर यह किस्म पहली बार बिकी है। किसानों ने इस पहली फसल से ही 70 से 80 हज़ार रुपये प्रति एकड़ प्राप्त किये। 
हरियाणा की मंडियों में विशेषकर करनाल (जिसे बासमती का सैंटर फार एक्सीलैंस कहा जाता है) में उत्तर प्रदेश के किसान इस किस्म की उपज बेच रहे हैं जिसकी कीमत अब गिर कर 3200 से 3500 रुपये प्रति क्ंिवटल पर आ गई। कीमत कम होने का कारण आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष तथा बासमती के प्रसिद्ध निर्यातक विजय सेतिया ईरान को निर्यात करने के लिए वहां से आए आर्डरों की कमी हो गई बताते हैं। यह किस्म विशेषकर पंजाब तथा हरियाणा के किसानों के अनुकूल है जहां भू-जल स्तर कम होता जा रहा है, परन्तु हरियाणा से अभी फसल बिकने के लिए आनी है, पंजाब में और देरी से आएगी। पंजाब के मालवा क्षेत्र में ज़मीन में रिचार्ज हो रहे पानी से 300 गुणा अधिक पानी ट्यूबवैलों के माध्यम से निकाला जा रहा है। कुल 150 ब्लाकों में से 117 ब्लाकों में पानी इस सीमा तक अधिक निकाला गया है कि इनमें अब और ट्यूबवैल लगाने की गुंजाइश नहीं रही। गत 6 दशकों में ट्यूबवैलों के पानी से सिंचाई किये जा रहे रकबे में 30 प्रतिशत वृद्धि हुई है। जबकि नहरों से आबपाशी अधीन रकबा 30 प्रतिशत कम हुआ है। संगरूर जिले के 6 ब्लाक, मोगा के 3 ब्लाक, जालन्धर के 2 ब्लाक तथा लुधियाना एवं पटियाला के 1-1 ब्लाक में वार्षिक ज़मीन में रिचार्ज हो रहे पानी से तीन गुणा पानी अधिक निकाला जा रहा है जिसका मुख्य कारण धान की काश्त अधीन लाये गए रकबे का बढ़ना है। 
पूसा बासमती 1509 किस्म से पंजाब तथा हरियाणा के किसान तो अधिक लाभ नहीं उठा सके क्योंकि पानी की समस्या के कारण विशेषज्ञों द्वारा इसकी बिजाई/रोपाई (ट्रांसप्लांटिंग) पिछेती जुलाई में सिफारिश की गई है। उत्तर प्रदेश में जहां भू-जल स्तर के कम होने की समस्या नहीं है और सिंचाई हेतु पानी उपलब्ध है, वहां कुछ जिलों के कि किसानों ने वर्ष में तीन फसलें लेनी शुरू कर दी हैं। वे दो फसलों पूसा बासमती-1509 की तथा एक फसल गेहूं की लेकर बेच कर अपना लाभ बढ़ा लेते हैं। पंजाब के किसानों को दो वर्ष पहले पूसा बासमती-1509 की फसल 1800 रुपये प्रति क्ंिवटल तक बेचनी पड़ी थी क्योंकि मंडी में कीमत कम हो गई थी। चाहे पिछले वर्ष कीमत कुछ किसान पक्षीय  व लाभदायक रही। 
पंजाब में इस वर्ष पूसा बासमती-1509 किस्म की काश्त अधीन रकबे में वृद्धि हुई है। कुछ किसान इसके बाद आलू, मटर आदि की फसल लेकर गेहूं की पिछेती किस्में लगा कर अपना लाभ बढ़ा लेंगे। पूसा बासमती-1509 का संशोधित रूप पूसा बासमती-1692 जिस का उत्पादन किसी सीमा तक पी.बी.-1509 से अधिक है, भी हाल ही में विकसित की गई है। चाहे यह किस्म पंजाब में काश्त करने के लिए अभी तक सिफारिश नहीं की गई, परन्तु किसान इसे बीज कर लाभ उठा रहे हैं। इसी वर्ष आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के डायरैक्टर एवं उपकुलपति तथा भारत के बासमती किस्मों के प्रसिद्ध ब्रीडर डा. अशोक कुमार सिंह के नेतृत्व में संस्थान ने पूसा बासमती-1847 किस्म विकसित करके काश्त करने के लिए सिफारिश की है जो सर्व भारतीय फसलों की किस्मों तथा स्तरों का निर्णय करने के लिए बनी केन्द्र की सब-कमेटी द्वारा नोटिफाई हो गई है। यह किस्म भुरड़ तथा झुलस रोग (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट तथा ब्लास्ट) का मुकाबला करने में समर्थ है। इस किस्म का बीज इस वर्ष कुछ चुनिंदा किसानों ने थोड़ा-थोड़ा लगाया है। अगले वर्ष इसके आम किसानों तक पहुंच जाने की संभावना है। 
इस वर्ष भारत में धान की काश्त अधीन रकबे में कमी आई है। कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा बिहार में बारिश कम होने के कारण धान की काश्त अधीन रकबा कम हुआ है। गर्मी पड़ने के कारण गेहूं का उत्पादन भी इस वर्ष कम हुआ है। अनाज का उत्पादन गत 6 वर्षों से लगातार बढ़ता रहा है। यह पहला वर्ष है कि धान की काश्त अधीन रकबा कम होने तथा मौसम अनुकूल न होने के कारण, गर्मी पड़ने के कारण गेहूं के उत्पादन में कमी आने से अनाज की पैदावार कम होने का अंदेशा है। पंजाब, हरियाणा में भी कई स्थानों पर धान के खेतों में ज़हर (वायरस) पौधे छोटे रहने के कारण उत्पादन में कमी आने की संभावना है। केन्द्र चिंतित है कि प्रधानमंत्री एवं खाद्य सुरक्षा योजनाओं के अधीन जो एक बड़ी जनसंख्या को मुफ्त या रियायती अनाज दिया जा रहा है, उस योजना को जारी रखना कहीं असंभव न हो जाए। बढ़ रही आबादी के दृष्टिगत भारत को भविष्य में 50 प्रतिशत अधिक अनाज पैदा करने का ज़रूरत है जिसके लिए वैज्ञानिक गेहूं तथा धान का और अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों तथा तकनीकों को खोजने में व्यस्त हैं।