समझ और सोच के राहत भरे आयाम

नेता जी ने हमें समझाया है कि अपनी अनथक मेहनत के साथ उन्होंने अपने देशवासियों का यह सपना साकार कर दिया कि बहुत पुराने दिनों की तरह आज फिर इस देश में दूध और घी की नदियां बहने लगी हैं। अब उनकी सबसे बड़ी चिन्ता यह है कि इस देश में कोई कुपोषित न रहे, न कोई बच्चा न बूढ़ा कुपोषित। हम उनसे कहना चाहते थे कि पहले इन सब लोगों के पोषण का प्रबंध तो कर लें, दो समय की रोटी और रोज़ी का प्रबंध तो कर लें, उचित पोषण की बारी तो बाद में आयेगी।
हम कह नहीं पाये। कह देते तो नेता जी नाराज़ हो जाते। आजकल के इन विकट दिनों में भला नेताओं की नाराज़गी कौन मोल लेना चाहता है? नेता सत्ता पक्ष का हो तो पौ बारह, विपक्ष का हो तो भी धमकाता है, ‘बच्चू, राजनीति के इस खेल में कब किस का दांव लग जाए कुछ पता नहीं।’ हमें छठी का दूध याद दिला देने की धमकी आज भी इन सब से मिल जाती है। भई, एक अंग्रेज़ सर्वेक्षक ने भी तो कह दिया कि इस देश में सही सम्पर्क बनाये बिना तुम्हारी गाड़ी आगे नहीं चल सकती। और फिर तुम्हारी हामी भरने से लेकर काम करवाने तक बीच का दलाल भी तो चाहिये। यह फाइल आगे बढ़वाने के नाम पर चांदी की डंडी मारेगा, कुछ अफसर के लिए, कुछ अपने लिये। इसका पेट रोज़ बढ़ता है क्योंकि ऊपर से नीचे तक हिस्सा बांटने वालों का कुनबा बढ़ता जा रहा है। दलाल आंख दबा कर आपको कहता है, ‘भई, हमें तो सबका ख्याल रखना पड़ता है।’
उनका भी जो एक पखवाड़े में पूरे राज्य से भ्रष्टाचार उन्मूलन की बात कहते हैं। भ्रष्टाचार के ज़ीरो टॉलरैंस की बात तो इतनी लोकप्रिय हो गई, कि दिल्ली दरबार से लेकर निगम दरबार तक हर कुर्सी इसे दोहराती है, और अधूरी सड़कों के गड्ढों से लेकर गहरी खाइयों में गुम होते अधबने पुल तक इनका मातम मनाती है। अब इस बात पर क्या शोक प्रकट कीजिये, जब इस वर्ष का राष्ट्रीय आंकड़ा सर्वेक्षण यह सच उगल देता है कि इन मुरम्मत मांगती सड़कों के कारण इस बरसात के दिनों में दुर्घटनाओं में आशातीत वृद्धि हो गयी।  यह शब्द ‘आशातीत’ भी खूब है, साहब। कभी यह तो नहीं बताता कि इस वर्ष भूख से मरने वालों की संख्या में कमी हो गई। यह भी नहीं बताता कि बेकाम हो गये कामगार, और खेती के काम से बिछुड़े श्रमिक अब वैकल्पिक रोज़गार मिल जाने से खुश हैं। बल्कि यही बताता है कि इनकी आत्महत्याओं में वृद्धि हो गयी, परन्तु साथ ही कानून और व्यवस्था में आशातीत सुधार की बात हमें अवश्य जता देता है। 
इन्होंने इसी अंदाज़ में कह दिया कि पशुओं के चारे की गुणवत्ता बढ़ जाने के कारण उनसे दुहने वाले दूध की मात्रा में आशातीत वृद्धि हो गयी, परन्तु यह नहीं बताया कि उन पर जीएसटी बढ़ जाने के कारण सरकारी दूध की कीमतों में कर से भी अधिक वृद्धि हो गई है। चिन्ता उन्हें अवश्य है कि अपने देश के अधिकांश नौनिहाल दूध घी के कम खुराक के कारण कुपोषित हैं, असमय काल कलवित हो रहे हैं। हां, इतना अवश्य बता दिया कि इस बार जीएसटी संग्रह में रिकार्ड वृद्धि हुई और हम हर महीने 1.40 लाख करोड़ के संग्रह से ऊपर जा रहे हैं। दूध, घी चाहे महंगा हो गया, लेकिन अपने ‘एक देश, एक कर’ का नारा तो सफल रहा। जीएसटी ही था, अपने देश के लिए एक कर। इसके उगाहने के सब रिकार्ड टूट गये। अब अगर कोई नामुराद कह दे कि ‘साब, इसी खुशी में खाने पीने की चीज़ों अथवा दवाओं पर लगा नया कर वापस ले लो’ तो उसे कर गणित के सही आयाम कैसे समझाये जाते हैं। अजी ऐसी वस्तुओं पर कर लगा है, कि जिनकी मांग कभी कम हो ही नहीं सकती। मांग कम होगी तो लोग मरेंगे। इसलिए ये कर बढ़ते खजाने की थाती है। देख लीजिये, अब सुप्रीम कोर्ट से लेकर हर आर्थिक विशारद यही तो कहता रहा है कि रेवड़ी संस्कृति के नायाब दिन लाने हैं, तो अपने कर खज़ाने को भरा पूरा रखो। यह भरा रहेगा, तो बढ़चढ़ कर राहत और रियायत संस्कृति के झण्डे बुलन्द किये जायेंगे। आप दो रेवड़ी देने की घोषणा करेंगे तो हम चार रेवड़ी बांट देंगे और यूं अपनी कुर्सियां अनन्तकाल के लिए सुरक्षित कर लेंगे।  हमारी कुर्सियों की उम्र लम्बी हो तब वंशवाद और परिवारवाद के पोषण की ज़रूरत ही क्या है? अपने नाती-पौतों को खपाने के और बहुत से चोर दरवाज़े हैं। सुना था न, ‘सैंया भये कोतवाल तो अब डर काहे का।’ उक्ति बदल गई है, ‘दद्दू भये कोतवाल तो अब डर काहे का।’
अब काहे का डर, भय्यन ! देश नित्य नये रिकार्ड बना रहा है। कभी सुना था किसी देश के अस्सी करोड़ लोगों में रियायती गेहूं बांट दिया जाये? यहां बंट रहा है। इसका सीधा लाभ आंकड़ा शास्त्रियों ने यह बताया है कि अब बरसों से नौकरी तलाशने वाले बेकार यह कहने लगे हैं, कि ‘हमें नौकरी नहीं चाहिए। कुछ रियायतें और मुफ्त में बांट दो।’ आंकड़ा शास्त्री अगर यह बतायें कि नौकरी के इच्छुक लोग आधे कम हो गये, तो इसे गलत न मानना। आंख उठा कर देख लो वे उधर राहत और रियायतें बांटने वाली कतारों में खड़े हैं, और दानी धर्मी भद्रजनों की बलैयां ले रहे हैं।