गहराता संकट

राजस्थान में विगत लगभग 4 वर्ष से अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस शासन चला रही है। वर्ष 2020 में तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने गहलोत के विरुद्ध विद्रोह का ध्वज उठाया था तथा अपनी पार्टी के 18 विधायकों के साथ उनके भाजपा के साथ जा मिलने के समाचार भी प्रसारित होते रहे हैं परन्तु उस समय राहुल गांधी एवं कुछ अन्य बड़े पार्टी नेताओं ने सचिन को पुन: पार्टी में रहने के लिए सहमत कर लिया था, परन्तु उस समय से ही वहां कांग्रेस विधायक दो गुटों में बंट गये थे। इस समय 200 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 108 विधायक हैं। उत्पन्न हुये इस गम्भीर संकट का हल तो आने वाले दिनों में ही निकलेगा परन्तु पार्टी की सत्ता अब केवल राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में सिमट कर रह गई है। 
इस वर्ष पंजाब में आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को भारी पराजय देकर राज सिंहासन सम्भाल लिया था। पंजाब में भी कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सरकार के समय ही पार्टी इस प्रकार गुटबाज़ी में बंट गई थी कि चुनावों में उसे निराशाजनक पराजय का मुंह देखना पड़ा था। अशोक गहलोत श्रीमती सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी के निकटवर्ती माने जाते हैं। लगभग दो वर्ष पूर्व कांग्रेस के 23 बड़े नेताओं की ओर से सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा गया था जिसमें उन्होंने पार्टी में परिवर्तन करने की बात कही थी। इसी को लेकर विगत लम्बी अवधि से यह चर्चा भी चलती रही है कि निरन्तर चुनावों में निराशाजनक पराजयों का मुंह देखने एवं देश भर में पार्टी के अत्याधिक सीमित हो जाने के कारण नेहरू-गांधी परिवार को पार्टी की सत्ता छोड़ देनी चाहिए तथा किसी अन्य बड़े नेता को कमान सम्भालनी चाहिए। निरन्तर तीव्र होती आलोचना को देखते हुये ही बार-बार राहुल गांधी की ओर से पार्टी की अध्यक्षता सम्भालने से इन्कार करने के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी अध्यक्ष का चुनाव कराने की घोषणा कर दी थी तथा अपनी ओर से यह संकेत भी दे दिया था कि गहलोत को ही चुनावों में कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए परन्तु गहलोत अपना मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ना चाहते। 
राहुल एवं अन्य नेताओं की ओर से इस संबंध में यह स्पष्ट कर दिया गया था कि अध्यक्षता का ताज पहनने के बाद गहलोत प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। इस संबंध में जयपुर में विधायक दल की बैठक भी रखी गई थी जहां उच्चकमान की ओर से अजय माकन तथा पार्टी के एक अन्य प्रमुख नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को निरीक्षक के तौर पर भेजा गया था परन्तु गहलोत के साथ सम्बद्ध 92 विधायकों ने इन नेताओं के साथ बैठक करने की बजाय स्वयं बैठक करके अजय माकन को यह संदेश पहुंचा दिया था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पूर्व वह उच्च कमान के पास उनकी तीन शर्तें पहुंचा दें कि मुख्यमंत्री के नये चुनाव में गहलोत ग्रुप में से ही किसी इस कुर्सी पर बैठना चाहिए। यह भी कि जिन्होंने वर्ष 2020 में पार्टी के विरुद्ध विद्रोह किया था, उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाना चाहिए। यह भी कि यह चुनाव राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद होना चाहिए। 
अजय माकन ने इसे पार्टी के विरुद्ध किये जा रहे विद्रोह की संज्ञा दी थी जिससे यह संकट और गहरा हो गया है। ऐसी स्थिति में अशोक गहलोत का पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव हेतु खड़े होना भी अब कठिन प्रतीत होने लगा है। ऐसी स्थिति में उच्च कमान की ओर से किया गया कोई भी फैसला पार्टी के संकट में और भी वृद्धि कर सकता है जिसका प्रत्यक्ष लाभ राजस्थान के विपक्षी दल भाजपा को होगा। चाहे राहुल गांधी आजकल भारत जोड़ो के नाम पर देश भर की यात्रा कर रहे हैं परन्तु क्या वह अपनी पार्टी को भी एकजुट रख सकेंगे? इस संबंध में अभी भी भारी अनिश्चितता बनी हुई दिखाई देती है।
 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द