झूलन गोस्वामी जिन्होंने महिला क्रिकेट को दर्शनीय बनाया

दुनिया में हर चीज़ एक्सपायरी डेट के साथ आती है। इसलिए एक खिलाड़ी चाहे कितना ही महान क्यों न हो, उसे भी एक दिन अपने करियर पर विराम लगाना ही पड़ता है, रिटायर होकर। लेकिन सवाल यह है कि एक खिलाड़ी को अपने रिटायरमैंट की घोषणा किस समय करनी चाहिए? सुनील गावस्कर का एक मशहूर कथन है कि अपने रिटायरमैंट की घोषणा किसी खिलाड़ी को उस समय करनी चाहिए जब लोग सवाल करें कि वह क्यों जा रहा है न कि यह कहने लगें कि वह क्यों नहीं जा रहा? ऐसा लगता है कि महिला क्रिकेट में विश्व की सबसे सफल गेंदबाज़ झूलन गोस्वामी ने सुनील गावस्कर की सलाह पर अमल करने का निर्णय लिया है। वह आज भी शानदार गेंदबाज़ी का प्रदर्शन कर रही हैं, जैसा की होव, इंग्लैंड में उनके प्रदर्शन से स्पष्ट है, लेकिन वर्तमान एकदिवसीय शृंखला, जो वह इंग्लैंड में इंग्लैंड के विरुद्ध खेल रही हैं, उनके करियर की अंतिम शृंखला होगी; उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से रिटायर होने की घोषणा कर दी है।
होव में, 18 सितम्बर 2022 को, 39-वर्षीय भारतीय लीजेंड गोस्वामी ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में तेज़, सटीक गेंदबाज़ी की और गेंद को दोनों ओर स्विंग कराते हुए अपने निर्धारित 10 ओवरों में मात्र 20 रन देकर एक विकेट लिया। उनकी 60 में से 42 गेंदें डॉट थीं। उनकी शानदार गेंदबाज़ी की वजह से भारत ने इंग्लैंड को निर्धारित 50 ओवरों में 7 विकेट के नुकसान पर 227 रन ही बनाने दिए। बाद में 228 रन के लक्ष्य को भारत ने मात्र 3 विकेट खोकर आसानी से हासिल कर लिया, जिसमें स्मृति मंधना के क्लासिक 91 रन थे।
खैर झूलन अब 39 वर्ष की हो गई हैं, उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अपने 20 वर्ष के दौरान कभी भी और किसी भी स्थिति में हार न मानने और निरंतर संघर्ष करने की प्रवृत्ति को बरकरार रखा। इस सिलसिले में एक घटना को यहां याद करना प्रासंगिक होगा। लखनऊ में भारत व दक्षिण अफ्रीका की महिला क्रिकेट टीमों के बीच एकदिवसीय मैच खेला जा रहा था। दक्षिण अफ्रीका ने एक विकेट के नुकसान पर 172 रन बना लिए थे और वह जीत से मात्र 6 रन दूर थी। ऐसे में झूलन गोस्वामी को गेंदबाज़ी करने के लिए बुलाया गया। झूलन आसान रन नहीं देना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने फील्डरों को करीब बुला लिया। लेकिन झूलन की पहली गेंद लेग साइड पर पड़ी, जिसे 78 पर बल्लेबाज़ी कर रहीं लिज़ल्ले ली ने आसानी से सीमा रेखा तक पहुंचा दिया। अब सिर्फ  दो रन की दरकार थी। झूलन ने योर्कर डाली जिसे ली ने स्टंप्स में जाने से रोका और कोई रन नहीं मिला। अगली गेंद तेज़ व शोर्ट ऑफलेंथ थी, ली ने लेट कट किया जिसे फील्डर ने रोक दिया और फिर कोई रन नहीं मिला। इसके बाद झूलन ने 85 किमी. प्रति घंटा की रफ्तार से धीमी गेंद डाली, इस पर भी रन नहीं बना। तंग आकर ली ने मुस्कान दी और सोचा कि दो रन बनाने के लिए अभी 62 गेंदें शेष हैं। दूसरी ओर झूलन एकदम गंभीर थीं, वह हार मानने के लिए तैयार नहीं थीं, वह अपने ओवर में विजयी रन नहीं देना चाहती थीं।
बहरहाल, अपने करियर के लम्बे सफर के दौरान झूलन ने अपनी तेज़ी गेंदबाज़ी से इतने रिकॉर्ड स्थापित किये हैं कि वह लिविंग लीजेंड हो गई हैं, उन्होंने अपने करियर के अंतिम मैच तक अपनी प्रतिद्वंदी टीमों के विकेट बिखेरती रहीं। इस लम्बे सफर के दौरान उन्होंने उन लोगों को भी अपना प्रशंसक बना लिया जो बढ़ती उम्र के कारण उनकी क्षमता पर शक करने लगे थे, साथ ही झूलन ने अपनी कला, मेहनत व सफलता से युवा खिलाड़ियों को प्रेरित व प्रभावित किया है। हद तो यह है कि पाकिस्तान की खिलाड़ी जैसे कायनात इम्तियाज़ भी कहती हैं कि तेज़ गेंदबाज़ी करने के लिए वह झूलन-दी से प्रेरित हैं।
लेकिन स्वयं झूलन किससे प्रेरित हैं? पश्चिम बंगाल में गंगा किनारे एक छोटे से शहर चकदह में बचपन गुज़ारते हुए झूलन ने टीवी पर 1992 का पुरुष वर्ल्ड कप देखा और उन्हें क्रिकेट का कीड़ा जाग गया। वह अपने भाइयों के साथ क्रिकेट खेलतीं, और घर की छत पर अकेले भी प्रैक्टिस करतीं। वह 15 वर्ष की भी नहीं हुई थीं कि हर सुबह 5.05 की लोकल पकड़ती, एक घंटे से अधिक की यात्रा करतीं ताकि कोलकाता में ट्रेनिंग कर सकें। इस कड़ी मेहनत का नतीजा यह हुआ कि 2002 में झूलन को भारत के लिए खेलने का अवसर मिला, उस समय वह 19 वर्ष की थीं। बहरहाल, हुआ यह कि 2009 के विश्व कप के लिए भारतीय महिला टीम को सिडनी में ठहराया गया था। एक शाम जब स्नेहल प्रधान होटल की लॉबी में थीं तो उन्होंने वहां ग्लेन मैकग्राथ को बैठे हुए देखा। वह कैमरा लेने के लिए ऊपर दौड़ीं तो वहां झूलन भी कमरे में मिलीं। स्नेहल ने कहा कि नीचे मैकग्राथ हैं। अब क्या था, दोनों स्नेहल व झूलन दौड़ रहीं थीं। मैकग्राथ अब भी वहीं थे। उन्होंने साथ तस्वीरें खींचीं। अगले दिन ट्रेनिंग पर स्नेहल ने झूलन को अपने आप से कहते हुए सुना, ‘आज से मुझे मैकग्राथ की तरह गेंदबाज़ी करना है।’ और उन्होंने यही किया, जिससे इस लेख के लिखे जाने तक सभी फॉर्मेटस में झूलन के रिकॉर्ड 353 अंतर्राष्ट्रीय विकेट हो गये हैं।
अब वह अपने शेष दो एकदिवसीय मैचों में जो भी अतिरिक्त विकेट लेंगी उससे उनका रिकॉर्ड अधिक दुर्लभ व प्रशंसनीय हो जाएगा। झूलन ने 12 टैस्ट में 17.4 की औसत से 44 विकेट लिए हैं, 68 टी-20 में 21.9 की औसत से उनके 56 विकेट हैं और 202 एकदिवसीय में 22 की औसत से 253 विकेट झटके हैं। यहां यह बताना भी आवश्यक है कि अपने देश में महिला क्रिकेट को कोई महत्व नहीं दिया जाता था, न क्रिकेट प्रशासन द्वारा और न ही मीडिया द्वारा। यही कारण है कि अक्सर यह तक मालूम नहीं होता कि कौन-कौन लड़की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है। लेकिन इसका श्रेय झूलन (और मिथाली राज) को दिया जाना चाहिए कि अपने परिश्रम, लगन व शानदार प्रदर्शन से उन्होंने महिला क्रिकेट को उस मकाम पर पहुंचाया जहां अब उसे नज़रअंदाज करना कठिन हो गया है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर