त्योहारी मौसम में मिलावट का तड़का

दशहरा पर्व के बाद अब दीपावली के त्योहार की तैयारियां चल रही हैं। दीपावली देश का सबसे बड़ा त्योहार है। इस अवसर पर गरीब और अमीर सभी वर्ग के लोग अपने सामर्थ्य के अनुरूप घर की साफ -सफाई, नए कपड़े, सोने चांदी के सामान के साथ मिठाइयां बनाने और खरीदने में व्यस्त हो जाते हैं। इस दौरान घर घर में मीठे पकवान बनते हैं। बाज़ारों में दुकानों पर मिठाइयां सज जाती हैं। त्योहारी सीजन शुरू होते ही मिलावटिये भी सक्रिय होकर आमजन के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं। त्योहार आये और मिलावटिये सक्रिय न हों ऐसा हो नहीं सकता। अब तो मिलावट और त्योहार का लगता है चोली-दामन का साथ हो गया है। सरकार अक्सर मिलावटियों की धरपकड़ के लिए कमर कसती है।  विशेषकर उत्तर भारत के राज्यों में शुद्धता के लिए युद्ध अभियान का आगाज कर दिया है। प्रतिदिन मिलावटी मावा, पनीर, दूषित मिठाइयां, खाद्य सामग्री और खराब सूखे मेवे बहुत बड़ी संख्या में पकड़े जा रहे हैं। देश भर में मिलावट को लेकर आमजन अभी भी भयभीत है और उसे विश्वास नहीं है कि वह जो खा रहा है, वह शुद्ध है। खाद्य नियामक की एक रिपोर्ट का गहनता से विश्लेशण करें तो पाएंगे कि मिलावट को लेकर लोगों में भारी असमंजस की स्थिति है जिसके कारण देशभर में बड़े स्तर पर मिलावटखोरी के कारण लोगों का विश्वास घटा है। 
मिलावट का अर्थ है महँगी चीजों में सस्ती चीज का मिलावट। मुनाफाखोरी करने वाले लोग रातोंरात धनवान बनने का सपना देखते हैं। अपना यह सपना साकार करने के लिए वे बिना सोचे-समझे मिलावट का सहारा लेते हैं। सस्ती चीजों का मिश्रण कर सामान को मिलावटी कर महंगे दामों में बेचकर लोगों को न केवल धोखा दिया जाता है, बल्कि उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी किया जाता है। मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से प्रतिवर्ष हजारों लोग विभिन्न बीमारियों का शिकार होकर जीवन से हाथ धो बैठते हैं। मिलावट का धंधा हर तरफ  देखने को मिल जाता है। दूध बेचने और खाद्यान्न पदार्थ बनाने वालों से लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक ने मिलावट के बाजार पर कब्जा कर है।
आज आम आदमी महंगाई के साथ खाद्य पदार्थों में  मिलावट खोरी से खासा परेशान है। लोगों बीच यह धारणा पुख्ता बनती जा रही है कि बाज़ार में मिलने वाली हर चीज में कुछ न कुछ मिलावट जरूर है। लोगों की यह चिंता बेबुनियाद नहीं है। आज मिलावट का कहर सबसे ज्यादा रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है। खाने पीने के पदार्थों में मिलावट कोई नयी समस्या नहीं है। मिलावट और खराब उत्पाद बेचे जाने की खबरें आम हो चुकी हैं। साल-दर-साल इसका दायरा व्यापक होता जा रहा है।
 मिलावट का कहर सबसे ज्यादा रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है । संपूर्ण देश में मिलावटी खाद्य-पदार्थों की भरमार है। आजकल नकली दूध, नकली घी, नकली तेल, नकली चायपत्ती आदि सब कुछ धड़ल्ले से बिक रहा है। सच तो यह है अधिक मुनाफा कमाने के लालच में  उपभोक्ताओं के हितों को ताख पर रख दिया गया है। अगर कोई इन्हें खाकर बीमार पड़ जाता है तो हालत और भी खराब हो जाती है, क्योंकि जीवनरक्षक दवाइयाँ भी नकली बिक रही हैं ।
 मिलावट का अर्थ प्राकृतिक तत्त्वों और पदार्थों में बाहरी, बनावटी या दूसरे प्रकार के मिश्रण से होता है। जनसामान्य की यह चिंता निराधार नहीं है। सामान्य तौर पर एक परिवार अपनी आमदनी  का लगभग 60 फीसदी खाद्य पदार्थों पर खर्च करता है। खाद्य अपमिश्रण से अंधापन, लकवा तथा ट्यूमर जैसी खतरनाक बीमारियाँ हो सकती हैं। सामान्यत: रोजमर्रा की जिन्दगी में उपभोग करने वाले खाद्य पदार्थों जैसे दूध, छाछ, शहद, हल्दी, मिर्च, पाउडर, धनिया, घी, खाद्य तेल, चाय-काफी, मसाले, मावा, आटा आदि में मिलावट की सम्भावना अधिक रहती है। मिलावट एक संगीन अपराध है। मिलावट पर काबू नहीं पाया गया तो यह ऐसा रोग बन जाएगा जो एक दिन पूरे समाज को ही ग्रस लेगा। मिलावट के आतंक को रोकने के लिए सरकार को जन भागीदारी से सख्त कदम उठाने होंगे।
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