मुलायम सिंह के जाने से समाजवादी पार्टी पर पड़ेगा असर

जब तक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के विकास में मुलायम सिंह यादव की भूमिका का अर्थ नहीं समझते, उनकी अनुपस्थिति में पार्टी चलाना बहुत मुश्किल काम होगा। अखिलेश यादव को यह देखना होगा कि कैसे उनके पिता ने समाज के सभी वर्गों में अपना दबदबा कायम रखा और सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष में भी दोस्त बनाये। 
मुलायम सिंह यादव, जिनका 82 वर्ष की आयु में 10 अक्तूबर को निधन हो गया, अपने पीछे उन लाखों समर्थकों की एक महान विरासत छोड़ गए हैं, जिन्होंने उन पर विश्वास किया था। अक्सर अखिलेश यादव को पार्टी नेताओं के साथ-साथ विपक्ष के आरोपों का सामना करना पड़ता है कि वह सरकार की गलत नीतियों तथा कदमों का मुकाबला करने के लिए अपने आरामगाह क्षेत्र से बाहर सड़कों पर आने से हिचकते हैं। इसके विपरीत मुलायम सिंह यादव विपक्ष में पहले दिन से ही सड़क पर उतरकर सरकार से भिड़ जाते थे। वह लोगों के मुद्दों पर सरकार को घेरने के लिए अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को शामिल करते थे।
अखिलेश यादव को अब समाज के सभी वर्गों से समर्थन लेना होगा जैसा कि उनके पिता मुलायम सिंह यादव को हासिल रहा चाहे वह सत्ता में रहे अथवा बाहर। मुलायम ने उच्च जाति के लोगों सहित विभिन्न जातियों के वरिष्ठ नेताओं की एक टीम बनायी थी। ज़मीन से सही सूचनाएं लेने के लिए वह उनकी बात सुनते थे।
हालांकि मुलायम सिंह यादव मंडल बलों के नायक थे और उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाली कमंडल ताकतों का सामना करने के लिए उन्हें संगठित किया लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ उनकी कभी कोई कड़वाहट नहीं रही। अब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को अन्य राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं के साथ अच्छे संबंध रखने के लिए कठिन कार्य करना पड़ेगा। समाजवादी पार्टी के लिए सामाजिक आधार का विस्तार करना अखिलेश यादव के लिए संस्थापक मुलायम सिंह यादव की अनुपस्थिति में बहुत मुश्किल काम होने जा रहा है। मुलायम सिंह यादव का इटावा के सैफई गांव के पहलवान से तीन बार मुख्यमंत्री और केंद्रीय रक्षा मंत्री बनने का उदय कड़ी मेहनत और उनके राजनीतिक कौशल के कारण हुआ जो उन्होंने इस अवधि में विकसित किया। मुलायम सिंह यादव उस समय अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व बन गये जब उन्होंने 1990 में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश देकर मुख्यमंत्री के रूप में बाबरी मस्जिद की रक्षा की।
मुलायम सिंह यादव की गैरमौजूदगी में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को अगले लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन की कला सीखनी होगी। अखिलेश यादव को 2017 में कांग्रेस के साथ और 2019 के लोकसभा चुनावों में बसपा के साथ और हाल ही में 2022 के विधानसभा चुनावों में ओम प्रकाश राजभर और महान दल के साथ गठबंधन का कड़वा अनुभव है।
अखिलेश यादव अपने पिता के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उनके द्वारा लिए गये सभी बड़े फैसलों में मुलायम सिंह यादव का समर्थन और अनुमोदन हासिल था। इसी तरह मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी के दिन-प्रतिदिन के कामकाज में कभी हस्तक्षेप नहीं कियाए लेकिन वह हमेशा अपने बेटे अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी का मार्गदर्शन और मदद करने के लिए मौजूद रहे। मुलायम सिंह यादव को पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित करने, पार्टी को मजबूत करने और उनका मार्गदर्शन करने के लिए नियमित रूप से पार्टी कार्यालय का दौरा करते देखा गया। हालांकि उनके छोटे भाई शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी बना ली थी लेकिन मुलायम सिंह यादव ने हमेशा उनके लिए अपने दरवाजे खुले रखे।
अब देखना यह है कि शिवपाल यादव अपने बड़े भाई की गैरमौजूदगी में कैसा व्यवहार करते हैं। क्या वह समाजवादी पार्टी को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं या अपने भतीजे से सुलह कर लेते हैं? मुलायम सिंह यादव की अनुपस्थिति निश्चित रूप से समाजवादी पार्टी को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगी। अब देखना होगा कि अखिलेश यादव किस तरह से व्यवहार करते हैं और अपने पिता के संघर्षों से सीखते हुए कैसे आगे बढ़ते हैं। (संवाद)