विभाजित राय के चलते अटका हिजाब मामला...! 

पिले महीने सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब मामले पर 10 दिनों तक दलीलें सुनीं थीं, इसके बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था लेकिन 13 अक्तूबर, 2022 को कोई फैसला नहीं हो सका, क्योंकि फैसला सुनाने वाली दो जजों की पीठ में एक राय नहीं बन सकी। जहां जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपने फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट के निर्णय को सही बताया, वहीं पीठ के दूसरे जस्टिस सुधांशु धूलिया का मानना था कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं, इस पर विचार की ज़रूरत ही नहीं थी। यह सिर्फ  एक पसंद से जुड़ा सवाल है। मेरे लिए  सबसे अहम लड़कियों की शिक्षा का मामला था।
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने इस फैसले के खिलाफ  याचिका दाखिल करने वाले से 11 सवाल पूछे। उन्होंने सवाल किया कि क्या छात्रों को आर्टिकल 19, 21 और 25 के तहत कपड़े चुनने का अधिकार दिया जा सकता है? अनुच्छेद 25 की सीमा क्या है? व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार की व्याख्या किस तरह से की जाए? क्या कॉलेज छात्रों की यूनिफॉर्म पर फैसला कर सकते हैं? क्या हिजाब पहनना और इसे प्रतिबंधित करना धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन है? दोनों न्यायाधीशों की राय भिन्न होने के कारण अब इसे नई पीठ को सौंपने का फैसला भारत के मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित को करना है। अब यह मामला संविधान पीठ के पास भेजा जाएगा। पीठ में जज कौन होगा, यह सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तय करेंगे ।
गौरतलब है कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने 15 मार्च को राज्य के उडुपी में गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं की एक क्लास के अंदर हिजाब पहनने की अनुमति देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है। इसके पक्ष और विपक्ष में कई दलीलें दी गईं। इस पर लगातार सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, देवदत्त कामत, राजीव धवन समेत कई वकीलों की ओर से दलील पेश की गई। हिजाब के पक्ष में जो दलील दी गई उसमें कहा गया कि आजादी के 75 साल बाद राज्य सरकार ने हिजाब पर प्रतिबंध क्यों लगाया इसकी क्या ज़रूरत थी? यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं पेश किया गया कि सर्कुलर किसी उचित कारण या किसी औचित्य पर आधारित था। वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलील में कहा कि पीएफआई ने स्कूल-कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने को उकसाया है। राज्य सरकार ने हिजाब प्रतिबंध विवाद में किसी भी धार्मिक पहलू को नहीं छुआ है और यह प्रतिबंध केवल क्लास तक सीमित है।
इस परस्पर विरोधी राय के कारण जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि यह मामला अब मुख्य नयायाधीश को भेजा जा रहा है, ताकि वह उचित निर्देश दे सकें। याचिकाकर्ता के वकील एजाज मकबूल ने कहा कि अब भारत के मुख्य न्यायाधीश यह तय करेंगे कि इस मामले पर सुनवाई के लिए बड़ी पीठ गठित की जाए या फिर कोई और पीठ। इस दौरान यानी जब तक नई और बड़ी पीठ का फैसला नहीं आ जाता, हिजाब पर बैन बरकरार रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बी. नागेश ने भी कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला अभी अंतरिम तौर पर लागू रहेगा। इसलिए स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पर बैन बरकरार रहेगा। इस मामले में दो दलीलों ने दरअसल फैसला नहीं होने दिया। पहली, क्या वाकई हिजाब पहनना इस्लाम में अनिवार्य है या नहीं? दूसरा, कर्नाटक सरकार ने बैन का जो आदेश दिया है, उससे मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है या नहीं? 
 ऐसे मामलों के लिए संविधान में आर्टिकल-145  का उपयोग किया जाता रहा है जो कहता है कि केस की सुनवाई को 5 या उससे ज्यादा जजों की संवैधानिक बेंच में ट्रांस्फर किया जाए। इसलिए अब ऐसी पीठ बनाने का काम मुख्य न्यायाधीश को करना है लेकिन इसमें शायद अनुमान से ज्यादा देरी होगी क्योंकि वर्तमान में जो मुख्य न्यायाधीश हैं, वह अगले महीने के पहले दूसरे हफ्ते में रिटायर हो जाएंगे। ऐसे में उम्मीद है कि नए मुख्य न्यायाधीश ही पीठ का गठन करेंगे। पीठ गठन होने के बाद ही सुनवाई पर फैसला होगा। इसमें 1-2 महीने का वक्त लग सकता है। मामले में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की दलील थी कि छात्राएं एक स्टूडेंट के साथ भारत की नागरिक भी हैं। ऐसे में ड्रेस कोड का नियम लागू करना उनके संवैधानिक अधिकार का हनन होगा। वास्तव में सुप्रीम कोर्ट में हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ  26 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। याचिकाकर्ता का कहना था कि हाईकोर्ट ने धार्मिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को देखे बिना हिजाब बैन पर फैसला सुना दिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट राजीव धवन, दुष्यंत दवे, संजय हेगड़े और कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा तो सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कोर्ट में पेश हुए।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने 15 मार्च, 2022 को उडुपी के सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की कुछ मुस्लिम छात्राओं की तरफ  से क्लास में हिजाब पहनने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने अपने पुराने आदेश को बरकरार रखते हुए कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम की ज़रूरी प्रैक्टिस का हिस्सा नहीं है। इसे संविधान के आर्टिकल 25 के तहत संरक्षण देने की ज़रूरत नहीं है। वास्तव में यह विवाद जनवरी के शुरुआत में उडुपी के ही एक सरकारी कॉलेज से शुरू हुआ था, जहां मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनकर आने से रोका गया था। स्कूल मैनेजमेंट ने इसे यूनिफॉर्म कोड के खिलाफ  बताया था। इसके बाद दूसरे शहरों में भी यह विवाद फैल गया। मुस्लिम लड़कियां इसका विरोध कर रही हैं, जिसके खिलाफ  हिंदू संगठनों से जुड़े युवकों ने भी भगवा शॉल पहनकर जवाबी विरोध शुरू कर दिया था। एक कॉलेज में यह विरोध हिंसक झड़प में बदल गया था, जहां पुलिस को स्थिति नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े थे। सुप्रीम कोर्ट ने 22 सितम्बर को हिजाब बैन पर फैसला सुरक्षित रख लिया। कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ  दायर याचिकाओं पर लगातार 10 दिन से सुनवाई चली। सुनवाई के शुरुआती 6 दिन मुस्लिम पक्ष की दलीलों के बाद कर्नाटक सरकार ने अपना पक्ष रखा। इसमें हिंदू, सिख, ईसाई प्रतीकों को पहनकर आने की तरह ही हिजाब को भी अनुमति दिए जाने की मांग की गई थी।
     -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर