अनियंत्रित जनसंख्या राष्ट्रीय अखण्डता के लिए बड़ा खतरा

अगले साल भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। जनसंख्या के लिहाज से वह चीन को पीछे छोड़ देगा। जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट में यह बात कही गई है। जनसंख्या का मामला एक बार फिर चर्चा में है। इसकी वजह है विजयदशी के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत का भाषण जिसमें सरसंघचालक ने जनसंख्या विस्फोट की समस्या पर चिंता जताई। संघ प्रमुख ने कहा कि भारत में जनसंख्या पर एक समग्र नीति बनाई जानी चाहिए जो सब पर समान रूप से लागू हो और किसी को इससे छूट नहीं मिले। सरसंघ चालक कई बार जनसंख्या नियंत्रण का मुद्दा उठा चुके हैं। कभी समीक्षा के तौर पर, तो कभी समग्र नीति बनाने के आग्रह के साथ वह जनसंख्या पर अपनी चिंता और उससे जुड़े सरोकार जता चुके हैं। उन्होंने इस साल जुलाई महीने में कहा था कि केवल जीवित रहना ही जीवन का लक्ष्य नहीं है। जानवर भी खाना-पीना और आबादी बढ़ाने का काम करते हैं। भागवत के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यदि भारत सरकार दो बच्चों के मानदंड का बिल लाएगी तो मैं उसका बिल्कुल समर्थन नहीं करूंगा। जब भी आरएसएस प्रमुख ने ऐसा कोई वक्तव्य दिया है, उस पर विचार किया जाना जरूरी जान पड़ता है।  
भारत की जनसंख्या पर गौर करें तो सबसे प्रामाणिक आंकड़े  2011 की जनगणना के हैं। इसके आंकड़े बताते हैं कि देश में कुल विवाहित महिलाओं की संख्या 33,96,21,277 थी जिनमें 18,19,74,153 महिलाओं के दो या दो से कम बच्चे थे जबकि 15,76,47,124 के तीन या उससे ज्यादा संतानें थीं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों में भारत की जनसंख्या के 142 करोड़ होने का अनुमान है। मौजूदा वक्त में जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है। 
भारत में तेजी से बढ़ती जनसंख्या को समस्याओं की बड़ी वजहों में से एक माना जाता रहा है। समय-समय पर संस्थाएं एवं विश्लेषक इस ओर इशारा करते रहे हैं। आइए, इस रिपोर्ट में जानें कि भारत के लिए जनसंख्या विस्फोट क्यों बड़ी चुनौती है। हालांकि भारत में जनसंख्या-विस्फोट के हालात अब नहीं हैं। औसतन प्रजनन दर 2.1 के करीब स्थिर-सी लगती है, लेकिन आबादी की गति उसी तरह टिक-टिक कर बढ़ती जा रही है, जिस तरह ‘टाइम बम’ फटने से पहले आवाज करता है। भारत के संसाधन भी सीमित हैं। विश्व की करीब 2.45 फीसदी जमीन भारत के हिस्से में है, जबकि सिर्फ  4 फीसदी जल उपलब्ध है, लेकिन विश्व की 16-18 फीसदी जनसंख्या भारत में है। क्या ये समीकरण हमें भयभीत नहीं करते? क्या बढ़ती आबादी को हम सहजता से खिला-पिला सकते हैं? उसका सही भरण-पोषण कर सकते हैं? उसे बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छ पेयजल मुहैया करा सकते हैं? ऐसे कई सवाल जेहन में उभर सकते हैं। सरसंघचालक भागवत ने सलाह दी है और देश का प्रत्येक जागरूक नागरिक भी यह सुझाव दे सकता है कि जनसंख्या-नियंत्रण पर समान और व्यापक नीति तैयार की जानी चाहिए। समान नीति हरेक समुदाय पर समान रूप से लागू होगी। जनगणना के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उनके मुताबिक 2019-20 के दौरान हिंदुओं की औसत प्रजनन दर 1.94 रही है, जबकि मुसलमानों में यह 2.36 थी। अंतर बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन भारत की कुल आबादी 142.1 करोड़ को छू चुकी है, जबकि चीन 142.6 करोड़ की आबादी के साथ पहले स्थान पर है। 
चुनौती यह है कि इतनी बड़ी आबादी को अच्छी गुणवत्ता वाला जीवन कैसे मुहैया कराया जाए। इस चुनौती से मिलकर ही निपटा जा सकता है। इसका कोई दूसरा फॉर्मूला नहीं है।  हालांकि स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विश्व जनसंख्या पर किए गए एक अनुसंधान में यह बात सामने आई है कि विश्व में दूसरे स्थान पर रहने वाले देश भारतवर्ष की आबादी 78 वर्ष बाद अर्थात 2100 में 41 करोड़ घट जाएगी और जनसंख्या घनत्व भी कम हो जाएगा। वहीं चीन की आबादी 49 करोड़ पर सिमट जाएगी। रिपोर्ट की मानें तो उसमें कहा गया है कि जब जनसंख्या वृद्धि नकारात्मक होती है, तो उस आबादी के लिए ज्ञान और जीवन स्तर स्थिर हो जाता है, लेकिन यह शनै:-शनै: गायब भी हो जाता है, जो बेशक हानिकारक परिणाम भी है। आने वाले समय में भारत का जनसंख्या घनत्व काफी कम होने का अनुमान बताया गया है। आज भारत और चीन की आबादी एक जैसी दिखाई देती है, लेकिन घनत्व में बहुत बड़ा अंतर है। 
सुप्रीम कोर्ट में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाए जाने और दो बच्चों की नीति लागू करने की मांग वाली याचिका दाखिल की गई थी। याचिका में दलील दी गई थी कि देश में जनसंख्या विस्फोट कई समस्याओं की जड़ है, लेकिन सर्वोच्च अदालत का कहना था कि कोई भी समाज शून्य समस्या वाला नहीं हो सकता। सरकार को इस मसले पर नीतिगत निर्णय लेना चाहिए। फिलहाल वक्त का सरोकार यह है कि जनसंख्या के असंतुलन को ठीक किया जाए। शहर और गांव के बीच यह असंतुलन अब भी भयावह है। व्यक्ति मजदूर है, गरीब है, झुग्गी-झोंपड़ी में रहने को विवश है, अनाज के लिए सरकार पर आश्रित है, लेकिन बच्चों की भीड़ पैदा कर रहा है। इस असंतुलन को दुरुस्त करना जरूरी है। संघ प्रमुख का सुझाव है कि धर्म पर आधारित जनसंख्या पर भी ध्यान देने की जरूरत है। जनसंख्या का असंतुलन भौगोलिक सीमाओं को भी बदल सकता है। जनसंख्या का संतुलन बिगड़ने से ही इंडोनेशिया से ईस्ट तिमोर, सूडान से दक्षिण सूडान और सर्बिया से कोसोवा नाम के नए देश बन गए। सरसंघचालक के आग्रह के मूल तत्व को समझना चाहिए। देश की उत्पादकता ही राष्ट्रीय विकास का आधार है। जो भी हो, दोनों ही भयावह स्थिति डराने वाली है। समाधान तो समाज को जागरूक और शिक्षित करने से ही निकलेगा। इसके लिए देश के समस्त राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों को मिल-बैठ कर सोचना होगा।