मध्यावधि चुनाव : ट्रम्प की उम्मीदों पर फिरा पानी


अमरीका में चुनाव विशेषज्ञ औंधे मुंह गिरे हैं। उन्होंने मध्यावधि चुनावों में दक्षिणपंथियों की लहर की भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि इससे डोनाल्ड ट्रम्प के लिए 2024 में पुन: व्हाइट हाउस में पहुंचने के लिए प्रयास करने का मार्ग प्रशस्त होगा, लेकिन अनुमानित लाल लहर (रिपब्लिकन) नीली दीवार (डेमोक्रेट्स) से टकरा गई और न केवल ग्रैंड ओल्ड पार्टी (रिपब्लिकन) अनुमानों पर खरी उतरी बल्कि ट्रम्प की उम्मीदों पर भी पानी फिर गया, विशेषकर इसलिए कि फ्लोरिडा में रोन डेसंटिस के जीतने से रिपब्लिकन पार्टी में ट्रम्प के समक्ष राष्ट्रपति प्रत्याशी के तौर पर एक नये व मज़बूत प्रतिद्वंद्वी खड़े हो गये हैं। साथ ही ट्रम्प की मागा बलों के अनेक सरोगेट्स भी हार गये हैं, जो ट्रम्प को पुन: राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाने में सहायक हो सकते थे। 
हालांकि मध्यावधि चुनावों के पूर्ण नतीजे सामने आने शेष हैं और अंतिम सूची आने में अभी कई सप्ताह लगेंगे, लेकिन 435 सदस्यों के हाउस ऑफ  रिप्रेजेंटेटिव्स में रिपब्लिकन को मामूली बढ़त मिली है बल्कि 100 सदस्यों के सीनेट में नतीजे फिलहाल 50-50 पर अटके हुए हैं और 6 दिसम्बर को संभावित जॉर्जिया रन ऑफ  से ही सीनेट में बढ़त तय हो सकेगी। अब अनुमान यह है कि हाउस ऑफ  रिप्रेजेंटेटिव्स में डेमोक्रेट्स दर्जन से भी कम सीट ही खोयेंगे (पिछली कांग्रेस में वह 5 प्लस सीट थे)। इस लिहाज से देखें तो पदासीन राष्ट्रपतियों में जो बाइडन का प्रदर्शन सबसे अच्छा कहा जा सकता है। अपने कार्यकाल के दौरान बिल क्ंिलटन ने मध्यावधि चुनावों में 52 सीटें (1994) खोयी थीं, बराक ओबामा ने रिकॉर्ड 63 सीटें (2010) और ट्रम्प ने 40 सीटें (2018) खोयी थीं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि डेमोक्रेट जॉन फेटरमैन ने रिपब्लिकन का गढ़ समझे जाने वाले पेंसिल्वेनिया से सीनेट की सीट जीत ली है, जिससे बाइडन को अपने शेष दो वर्ष के कार्यकाल के दौरान अपने एजेंडा को सीनेट का समर्थन मिल सकता है।
भारतीय मूल के अमरीकी लम्बे समय से अमरीका की राजनीति में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे हैं। इस बार रिकॉर्ड पांच भारतीय-अमरीकी राजनीतिज्ञ हाउस ऑफ  रिप्रेजेंटेटिव्स में पहुंचें हैं, जिनमें सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के राजा कृष्णामूर्ति, रो खन्ना, एमी बेरा व प्रमिला जयपाल शामिल हैं। खन्ना लगातार चौथी बार सांसद बने हैं। उन्होंने 17वें कांग्रेसी जिले में अपने रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी ऋतेश टंडन (जो भारतीय-अमरीकी हैं) के विरुद्ध 70 प्रतिशत से भी अधिक मत हासिल किये। कृष्णामूर्ति भी चौथी बार सांसद बने हैं, उन्होंने क्रिस डर्गिस को लगभग 12 प्रतिशत वोटों से पराजित किया। चुनाव प्रचार के दौरान कृष्णामूर्ति पर एक कट्टरपंथी ने हमला किया था। अपने विजयी भाषण में उन्होंने ‘हिंसा व कट्टरता’ को त्यागने का आह्वान करते हुए आग्रह किया कि ‘हमें अमरीकन के तौर पर जो कुछ साझा है उस पर फोकस करना चाहिए’।
चेन्नई में पैदा हुईं 57 वर्षीय जयपाल हाउस ऑफ  रिप्रेजेंटेटिव्स में एकमात्र भारतीय मूल की अमरीकन महिला हैं। उन्होंने क्लिफ मून के विरुद्ध 85 प्रतिशत से भी अधिक मत हासिल किये हैं। उन्होंने भी लगातार चौथी बार जीत दर्ज की है। 57 वर्षीय बेरा लगातार छठी बार हाउस ऑफ  रिप्रेजेंटेटिव्स में पहुंचेंगे। वह इस लेख के लिखे जाने तक तमिका हैमिलटन से 12 प्रतिशत मतों से आगे चल रहे थे और उनकी जीत निश्चित है। अगली कांग्रेस में इन चारों का साथ देंगे 67 वर्षीय श्री थानेदार। वह मात्र 20 डॉलर लेकर भारत से अमरीका आये थे। सफल व्यवसायी बने और अब सबके लिए हेल्थकेयर को लाज़िमी बनाने के लिए वह राजनीति में हैं। उन्होंने मिशिगन में अपने रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी के विरुद्ध 72 प्रतिशत से अधिक मत हासिल किये। तथाकथित समोसा काकस के पांचवें सदस्य थानेदार हाउस ऑफ  रिप्रेजेंटेटिव्स में इमीग्रेशन व मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर भी फोकस करना चाहते हैं। गौरतलब है कि भारतीय-अमरीकी प्रत्याशियों ने राज्यों के सदनों में भी प्रवेश किया है। मैरीलैंड में अरुणा मिलर ने इतिहास रचा है। वह लेफ्टिनेंट गवर्नर बनने वाली पहली भारतीय-अमरीकी राजनीतिज्ञ हैं। बहरहाल, भारतीय-अमरीकी संदीप श्रीवास्तव टेक्सस में पूर्व कोलिन काउंटी जज कीथ सेल्फ  से हार गये।
अमरीका के मध्यावधि चुनावों से यह संकेत मिलता है कि वैचारिक अतिवाद काठ की हांड़ी की तरह होता है, जिसे बार बार चूल्हे पर नहीं चढ़ाया जा सकता और जॉब्स का महत्व भी महंगाई जितना ही है। बाइडन के व्हाइट हाउस में पहुंचने के बाद से अमरीका में ईंधन के दामों में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस महंगाई के कारण ही रिपब्लिकन की संभावनाएं बेहतर प्रतीत होने लगी थीं। इसलिए संसार के अन्य लोकतंत्रों व अर्थ-व्यवस्थाओं के सत्तारूढ़ दलों को समझ लेना चाहिए कि चुनावों में अर्थव्यवस्था का भी महत्व होता है। अमरीकी चुनावों का एक महत्वपूर्ण सबक यह है कि जब महंगाई सत्तारूढ़ दल के लिए बड़ी नकारात्मक समस्या हो तो मजबूत जॉब मार्किट से उसकी मार को कम किया जा सकता है। अमरीका में बेरोजगारी दर पिछले 50 वर्षों में सबसे कम है। अन्य देशों की तरह अमरीकी मतदाता भी मैक्रोइकॉनमी की परवाह नहीं करते हैं, लेकिन जॉब्स की भरमार भी अधिक महंगाई जैसा ही व्यक्तिगत अनुभव प्रदान करते हैं।  अमरीकी चुनावों का शायद सबसे महत्वपूर्ण सबक यह है कि खोखली लफ्फाजी व अतिवादी विचारधारा हमेशा चुनावी लाभ प्रदान नहीं करते हैं। एग्ज़िट पोल्स से मालूम होता है कि जितने मतदाताओं ने महंगाई को सबसे बड़ा मुद्दा बताया लगभग उतने ही गर्भपात अधिकारों के पक्ष में थे। इसलिए दक्षिणपंथी लहर फुस्स हो गई सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के कारण जिसने दक्षिणपंथियों को प्रसन्न कर दिया था। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर