हिमाचल के चुनाव परिणाम दूरगामी प्रभाव वाले होंगे

हिमाचल प्रदेश में मतदान का कार्य सम्पन्न हो गया है। हिमाचल चाहे छोटा-सा प्रांत है परन्तु अनेक पक्षों से यह अतीव महत्वपूर्ण माना गया है। विशेष तौर पर देश एवं विदेश के पर्यटकों के लिए यह सदैव आकर्षण का केन्द्र रहा है। राजनीतिक तौर पर भी इसे जागरूक प्रदेश कहा जा सकता है। इसके मतदाता सचेत रूप में सरकार के विगत काम-काज को देखते हुए मतदान करते हैं। विगत लम्बी अवधि से यह एक प्रकार की प्रथा ही बन गई है कि यहां हर बार परिवर्तित पार्टी की ही सरकार बनती रही है। इस प्रदेश में प्रारम्भ से ही दो पार्टियों का उत्थान रहा है। विगत कई दशकों से बारी-बारी कांग्रेस एवं भाजपा ही यहां शासन करती रही हैं। विगत पांच वर्ष से जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान रहे हैं। जयराम ठाकुर इसलिए मुख्यमंत्री बने क्योंकि भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार प्रेम कुमार धूमल को विधानसभा में पराजय का मुंह देखना पड़ा था जबकि धूमल का बेटा अनुराग ठाकुर चार बार सांसद बनते आ रहे हैं तथा वह राष्ट्रीय राजनीति में ही अधिक सक्रिय हैं। अब भी वह मोदी सरकार में मंत्री हैं। 
इस बार के चुनावों में कांग्रेस के लिए बड़ा घाटे वाला सौदा इसके लम्बी अवधि तक मुख्यमंत्री रहे वीर भद्र सिंह का गत वर्ष दोहांत हो जाना था। लम्बी अवधि तक उन्होंने इस प्रदेश में अपना बड़ा प्रभाव बनाए रखा। इन स्थितियों में इस बार भारतीय जनता पार्टी पुन: सरकार बनाने के लिए यत्नशील है। इसीलिए उसने ‘रिवाज़ बदलो’ का नारा दिया है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा भी इसी प्रदेश से सम्बंध रखते हैं। इस बार चुनाव जीतने को उन्होंने अपना ंिमशन बनाया हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत महीनों में निरन्तर यहां कई रैलियां कीं तथा प्रदेश के आधारभूत ढांचे को मज़बूत करने के लिए बहुत सी घोषणाएं भी कीं। वर्ष 2024 के आम चुनावों से पहले हिमाचल प्रदेश एवं गुजरात के चुनावों को केन्द्र की मोदी सरकार के सम्बंध में लोगों की राय के तौर पर देखा जा रहा है। अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री ने इस प्रदेश में 13 बार रैलियां की हैं। बहुत  बार वह इस सम्बंध में एक भावुक पत्ता खेलते हुए यह कहते रहे हैं कि वह काफी वर्षों तक संघ के प्रचारक के रूप में यहां विचरण करते रहे हैं। इस बार चुनाव प्रचार शुरू होने के समय पंजाब में मिले भारी समर्थन से सत्तारूढ़ हुई आम आदमी पार्टी भी इस पड़ोसी प्रदेश में पूरे उत्साह के साथ चुनाव प्रचार में उतरी थी परन्तु अधिक समर्थन न मिलने के कारण उसने बाद में अपना पूरा ध्यान गुजरात के चुनावों की ओर मोड़ लिया। 
इन चुनावों में 400 से अधिक प्रत्याशी मैदान में खड़े हैं। विधानसभा की 68 सीटों वाले इस प्रदेश में 35 सीटें जीतने वाली पार्टी को ही सरकार बनाने का अवसर मिलेगा। भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार में अधिकतर राष्ट्रीय मामलों पर ही ज़ोर दिया। उसने राम मंदिर बनाने के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा की भी बात की। कोविड महामारी के दौरान मुफ्त टीकाकरण की सफलता को बार-बार दोहराया एवं इसके साथ ही उसने जम्मू-कश्मीर में धारा-370 को हटाने एवं पाकिस्तान में सर्जीकल स्ट्राइक करने का हौसला दिखाने की भी बात की जबकि कांग्रेस नौकरियों, प्रदेश में युवा समस्याओं एवं पुरानी पैंशन को पुन: लागू करने की बात करती रही है। इसके साथ ही उसने भी आम आदमी पार्टी की नकल करते हुए सरकार बनने पर 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने की घोषणा की। दूसरी ओर भाजपा ने भी गैस सिलेण्डर मुफ्त देने की बात करते हुए स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए साइकिल एवं स्कूटर देने का वायदा किया। इस बार कांग्रेस के चुनाव प्रचार में सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी ने रैलियों में भाग नहीं लिया। यह काम प्रियंका गांधी के ही ज़िम्मे लगा था, परन्तु साधनों के पक्ष से भारतीय जनता पार्टी का चुनाव प्रचार अधिक प्रभावशाली रहा है। इस प्रदेश के परिणाम भी गुजरात के चुनावों के बाद 8 दिसम्बर को ही सामने आएंगे जिसके लिए यहां के लोगों को लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी परन्तु ये परिणाम देश की राजनीति पर अपना दूरगामी प्रभाव डालने वाले अवश्य सिद्ध हो सकते हैं।  


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द