अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाएगी खेती किसानी


एक बात अब साफ हो गई है कि दुनिया के देशों की अर्थ व्यवस्था को खेती किसानी ही नई दिशा दे सकती है। यह नहीं भूलना चाहिए कि खेती किसानी हमारे पूर्वजों की जीवन धारा रही है। यही कारण है कि हमारे सम्पूर्ण तीज त्यौहार इसीसे जुड़े रहे हैं। होली हो या दीपावली, नए अन्न के स्वागत और इसके लिए ईष्वर के आभार का पर्व है। भगवान को नए अन्न का भोग लगाकर उपयोग की शाश्वत परम्परा रही है। कोरोना संबंधी लॉक डाउन और रूस-यूक्रेन युद्ध ने दो बातें साफ कर दी हैं कि औद्योगिकीकरण के बावजूद खेती किसानी की अपनी अहमियत है। जिस तरह से कोरोना महामारी के दौरान देश-दुनिया के लोगों का बड़ा सहारा खेती किसानी ही बनी, ठीक उसी तरह से भुखमरी से जूझते देशों के साथ ही समग्र विश्व की अर्थ व्यवस्था का प्रमुख आधार खेती किसानी रह गई है। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि औद्योगिकीकरण समय की मांग है पर पिछले कुछ दशकों से औद्योगिकीकरण के नाम पर खेती-किसानी की जिस तरह से उपेक्षा हुई उसका परिणाम यह हुआ कि गांव उजड़ते गए और शहर गगनचुम्बी इमारतों में तबदील होते गए। इसके साथ ही  उद्योग धंधों की प्राथमिकता के चलते कृषि क्षेत्र पर अपेक्षित ध्यान भी नहीं दिया गया। यह तो अन्नदाता की मेहनत का परिणाम रहा कि देश में खाद्यान्नों के भण्डार भरे हैं। कोरोना लॉकडाउन के कारण जब सब कुछ थम सा गया था, उस समय सबसे बड़ा सहारा खाद्यान्नों से भरे ये गोदाम ही रहे हैं। 
आज अर्थशास्त्री एक बार फिर यह कहने लगे हैं कि यदि अर्थ व्यवस्था को उबारना है तो इसके लिए कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान देना होगा। सरकार भी अब कृषि क्षेत्र पर खास ध्यान देने लगी है। यही कारण है कि लॉकडाउन के बाद अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जो पैकेजों का दौर चला, उसमें कृषि को खास महत्व दिया गया। कृषि क्षेत्र के प्रभाव को हमें दो तरह से समझना होगा। पहला यह कि कोरोना के चलते लॉकडाउन के हालात और रोज़गार ठप्प होने की स्थिति में लोगों को अनाज, दाल आदि उपलब्ध कराना ताकि कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए, तो दूसरी ओर किसानों के हाथ में भी पूंजी का आना जिससे वे आर्थिक दृष्टि से मजबूत हो सकें। केन्द्र हो या राज्य सरकारें सभी इस दिशा में आगे बढ़ी हैं। यह समय की मांग भी है तो आवश्यकता भी। लॉकडाउन के दौरान देश के करीब 80 करोड़ लोगों तक गेहूं, चांवल, दाल आदि मुफ्त उपलब्ध कराया गया। 
  इसके साथ ही प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना में सीधे किसानों के खातों में पैसा गया तो इसका सीधा सीधा लाभ किसानों को हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व खाद्य संगठन द्वारा दुनिया के देशों को बार बार खाद्यान्न संकट की चेतावनी दी जा रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बदलाव आने लगा है। असामयिक वर्षा, अतिवृष्टि और अनावृष्टि आम होती जा रही है। अत्यधिक सर्दी, अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक वर्षा जहां आम होती जा रही हैं, वहीं समुद्री तूफानों की रफ्तार बढ़ी है। जंगलों में आग लगने लगी है। रही सही कमी रूस-यूके्रन युद्ध ने पूरी कर दी है। इसके चलते खाद्यान्न संकट और एक देश से दूसरे देश पहुंचाने की समस्या गंभीर हो गई है। खाद्यान्नों का आयात निर्यात प्रभावित हो रहा है। श्रीलंका का प्रयोग सबके सामने है जहां जैविक खेती के निर्णय ने गंभीर संकट ला दिया और सरकार का तख्ता पलट गया। दरअसल दुनिया के देशों में खाद्य सामग्री के भावों में जिस तरह से तेजी आ रही है, वह अपने आप में गंभीर समस्या है। 
पिछल दिनों हमारे देश में सरकार ने किसानों के लिए राहतों की घोषणाएं कीं। इसमें एक देश-एक मण्डी, तिलहन, दलहन, आलू-प्याज आदि को आवश्यक वस्तु अधिनियम के नियंत्रण से मुक्त करने और कॉन्ट्रैक्ट खेती आदि प्रमुख है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसान रेल को हरी झण्डी दिखाई तो राजस्थान सरकार ने कृषि प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए राहत की घोषणाएं कीं। सहकारी समितियों को गौण मण्डी का दर्जा देकर किसानों को अपनी उपज बेचने के अधिक व स्वतंत्र अवसर जैसी सुविधाएं दी हैं। इससे निश्चित रूप से कृषि क्षेत्र को डोज मिलेगी पर अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। 
माना जा रहा है कि खरीफ में अधिक उत्पादन होगा और इससे अर्थ व्यवस्था को पंख लगेंगे। एक बात साफ हो जानी चाहिए कि किसानों का भला होगा तो केवल दीर्घकालीन सुधार कार्यों से। उसे अच्छा बीज मिले, फसलोत्तर गतिविधियां वैज्ञानिक हों, मूल्य संवर्द्धन के लिए कृषि आधारित उद्योग लगें, भण्डारण खासतौर से कोल्ड स्टोरेज की चेन बने, कोल्ड स्टोरेज युक्त कंटेनर उपलब्ध हों ताकि उपज का सही मूल्य मिल सके। सबसे ज्यादा ज़रुरी है कि कृषि उपज के सरकारी मूल्यों की घोषणा समय पर हो और फिर फसल तैयार होते ही उसकी खरीद की व्यवस्था भी सुनिश्चित हो। किसान को सड़कों पर अपनी उपज फैंकने के हालात किसी भी हालत में नहीं बनने देने चाहिएं। सरकार को ऐसा रोडमेप बनाना होगा जो उत्पादकता और आय बढ़ाने वाला हो।