संघ को लेकर राहुल गांधी की टिप्पणी के सरोकार


कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपने बयानों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। असल में राहुल गांधी सोची समझी रणनीति के तहत कई बार ऐसे विवादित बयान देते हैं, जिससे मीडिया में उन्हें जगह मिल सके और देश में उनके नाम तथा बयान की चर्चा हो। इन दिनों राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर हैं। पिछले दिनों राहुल गांधी ने एक बार फिर दावा किया कि यदि वह सत्ता में आए, तो सरकारी और संवैधानिक संस्थानों को आरएसएस-मुक्त कर देंगे। उनका यह भी सपना है कि भारत आरएसएस और भाजपा-मुक्त हो। हां, ध्यान देने योग्य बात है कि अगर वह सत्ता में आए तो वह ऐसा करेंगे, लेकिन वर्ष 2014 के आम चुनाव और पिछले आठ सालों में विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जो हालत हुई है, उसे देखते हुए शायद उनका यह सपना अधूरा ही रह जाएगा।  
अब आते हैं मुद्दे पर। वायनाड के सांसद एवं पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोप पुराने और घिसे-पिटे हैं, जिनके आधार पर वह देश को संघ परिवार से मुक्ति दिलाना चाहते हैं। वह संघ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम का प्रलाप करते रहे हैं, लेकिन देश को इनसे मुक्ति के बजाय कांग्रेस पार्टी स्वयं हाशिये पर चली गई है। देश की जनता ने राहुल गांधी के आरोपों और उनकी राजनीति को लगातार खारिज किया है। ऐसा ही गंभीर आरोप उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या के संबंध लगाया था और संघ को ‘हत्यारा’ साबित करने की कोशिश की थी। नतीजतन उन्हें सर्वोच्च अदालत के सामने लिखित माफी मांगनी पड़ी थी। 
बहरहाल अब राहुल गांधी का मानना है कि आरएसएस और भाजपा देश को तोड़ रहे हैं। वे नफरत फैलाने के काम कर रहे हैं। हिंसात्मक गतिविधियों में संलिप्त हैं। इन संगठनों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। राहुल गांधी का यह आकलन न जाने किस सर्वेक्षण या शोध पर आधारित है कि ज्यादातर संवैधानिक और सरकारी संस्थानों पर संघ परिवार का अघोषित कब्जा हो चुका है, क्योंकि 2014 में भाजपा की मोदी सरकार आने के बाद संघ परिवार के स्वयंसेवकों की भर्तियां सरकारी प्रतिष्ठानों में की जाती रही हैं।
सरकार में वामपंथी, नक्सलवादी, हिंदू विचारधारा, समाजवादी-लोकतांत्रिक, महिलावादी, मजदूरवादी आदि न जाने कितनी विचारधाराओं के कर्मचारी काम करते हैं। उनके श्रम संगठन भी बने हुए हैं। गाहे-बगाहे वे आंदोलित भी होकर सड़कों पर उतरते रहे हैं। सरकारी अधिकारी और कर्मचारी चयन के निश्चित मानदंड हैं। उन्हीं के आधार पर वे सरकार का हिस्सा बनते हैं। फिर केंद्र सरकार के अधीन तो 60-62 लाख कर्मचारियों की ही गुंजाइश है। उनमें से भी रिक्त पदों की संख्या लाखों में है। यदि कुछ संघी किस्म के लोग सरकार में भर्ती किए भी गये हैं, तो वे सरकार के विशेषाधिकार की परिधि में ही होंगे। उससे बाहर जाएंगे, तो अदालत की चुनौतियां सामने होंगी। यह राहुल गांधी, कांग्रेस और कथित धर्म-निरपेक्षवादियों की पुरानी राजनीति रही है कि साम्प्रदायिकता और देश को तोड़ने-बांटने में संघ और भाजपा को आरोपित किया जाता रहा है। 
विपक्षियों का आरोप है कि संघ परिवार भारत को एक ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने पर आमादा है। यह राजनीति लगातार नाकाम भी साबित हुई है, क्योंकि भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों की देश के 17-18 राज्यों में सरकारें हैं। देश के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर भाजपा सत्ता में है। हालांकि आरएसएस एक हिंदू राष्ट्रवादी, सामाजिक, सांस्कृतिक गैर-सरकारी संगठन है, जिसका विस्तार भारत के अलावा 40 अन्य देशों में भी है। क्या संघ परिवार उन्हें भी तोड़ने-बांटने की कोशिश करता रहा है? आरएसएस के 80 से अधिक समविचारक या आनुषांगिक संगठन हैं। देश के लगभग प्रत्येक हिस्से में संघ की करीब 57,000 शाखाएं हर रोज़ लगती हैं, जिनमें लाखों लोग शिरकत करते हैं। संघ के कार्यकर्ताओं में सेवा भाव और देश प्रेम कूट कूटकर भरा हुआ है। देश में जब भी कोई मुसीबत या संकट आया, उस वक्त संघ के स्वयंसेवक सबसे आगे खड़े दिखाई दिए। पिछले दिनों गुजरात के मोरबी में हुए पुल हादसे में भी आरएसएस के स्वयंसेवकों ने जनसेवा का अनूठा उदाहरण देश के समक्ष प्रस्तुत किया। इससे पूर्व भी प्राकृतिक आपदाओं और हादसों के समय संघ के स्वयंसेवकों ने सेवा भाव के ज़रिए राष्ट्र और राष्ट्रवासियों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पूर्ण मनोयोग से निभाया है। 
आरएसस सेवाकार्य बिना किसी भेदभाव के सबके लिए करता है। जिन्हें सहायता की आवश्यकता है वे सभी अपने हैं, उनमें कोई अंतर संघ नहीं करता। अपने लोगों की सेवा उपकार नहीं है वरन अपना कर्त्तव्य मानता है संघ। संघ अपने समाज की सर्वांगीण उन्नति के लिए प्रतिज्ञाबद्ध है। इसलिए जब तक काम पूरा नहीं होता तब तक संघ के कार्यकर्ता सतत् भाव से सेवा कार्य में करते रहते हैं। एकांत में आत्मसाधना, लोकांत में परोपकार, यही व्यक्ति के जीवन का और संघ के कार्य का स्वरूप है। वास्तव में संघ स्वार्थ, प्रसिद्धि या अपना डंका बजाने के लिए सेवाकार्य नहीं करता। 130 करोड़ देशवासियों को संघ अपना समाज समझता है, बिना किसी भेदभाव के। संघ की दृष्टि में 130 करोड़ का समाज भारत माता का पुत्र है और अपना बंधु है। संघ किसी को अपना विरोधी नहीं मानता है। संघ ‘सर्वेषां अविरोधेन’ के सिद्धांत का अनुसरण करता है। संघ 96 वर्ष के काल खण्ड में समाज की अपेक्षाओं तथा विश्वास की कसौटी पर खरा उतरा है। इसी कारण आज अधिकाधिक लोग संघ को जानना चाहते हैं और संघ के साथ निकट का सम्बन्ध स्थापित करना चाहते हैं। 
संघ का वैशिष्टय है—सामूहिकता , सामूहिक ज़िम्मेदारी तथा सामूहिक निर्णय संगठन का स्वरूप। संघ कोई सैनिक, धार्मिक, राजनीतिक संगठन नहीं है बल्कि सामाजिक सांस्कृतिक संगठन है जो पारिवारिक कल्पना पर आधारित है। संघ में नेता और स्वयंसेवक जैसा कोई भेद नहीं है। सभी स्वयंसेवकों को व्यवस्था की दृष्टि से योग्यता, क्षमता के अनुरूप दायित्व दिए जाते हैं। अत: कार्यकर्ताओं में दायित्व बोध रहता है, पद का अहंकार नहीं। यदि राहुल गांधी और कांग्रेस के पास ठोस प्रमाण हैं कि संघ और भाजपा नफरत और हिंसा के ज़रिए देश को तोड़ रहे हैं, तो उन्हें तुरंत सर्वोच्च अदालत की चौखट खटखटानी चाहिए। निर्वाचन आयोग में जाकर भाजपा की मान्यता रद्द कराने की याचिका देनी चाहिए। हिंदू विचारधारा देशद्रोही काम नहीं है। उसके मतावलम्बी करोड़ों में हैं। 
राहुल को अब राजनीतिक तौर पर परिपक्व होना चाहिए। राहुल गांधी या किसी भी संघ से परहेज करने वाले किसी को भी वास्तव में संघ को पूर्णत: समझने हेतु निकट से देखना पड़ेगा। दूर रह कर जो संघ को देखते हैं, उनके मन में कई प्रकार की भ्रान्तियां पैदा होने की सम्भावना बनी रहती है। ऐसा इसलिए होता है कि संघ जैसा कोई अन्य संगठन विश्व भर में नहीं है।