आज के लिए विशेष दिव्यांग व्यक्ति को भय एवं हीन-भावना से मुक्त होना पड़ेगा

जब हम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते या उसे देखते और सुनते हैं जो किसी शारीरिक या मानसिक कमी से पीड़ित है तो दया दिखाते हैं या चिढ़ जाते हैं। उसके लिए सहानुभूति प्रकट करते हैं या उसे दूर हटने के की कोशिश हैं। मनुष्य के इसी व्यवहार को देखकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने तीस वर्ष पहले प्रति वर्ष 3 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांग दिवस मनाने की शुरुआत की थी ताकि सभी प्रकार से सामान्य लोग ऐसे व्यक्तियों का अनादर न करें और उन्हें अपने जैसा ही सामान्य जीवन जीने देने में सहायक बनें।
आज दुनिया भर में लगभग पचास करोड़ लोग किसी न किसी प्रकार से दिव्यांग होने के कारण ज़िंदगी को जैसे-तैसे जीने के लिए मजबूर हैं। भारत में यह संख्या तीन करोड़ के आसपास है जिनमें से ज्यादातर गांव देहात में रहते हैं और बाकी छोटे बड़े शहरों में किसी तरह अपना जीवन चला रहे हैं।
अपने आप में बहुत बड़ा सवाल भी है कि शारीरिक हो या मानसिक, दिव्यांग व्यक्तियों को परिवार और समाज अपने ऊपर बोझ समझने की मानसिकता से ग्रस्त रहता है। उसके बाद ऐसे लोग समाज की हिकारत का शिकार बनते जाते हैं और इस तरह देश के लिए भी निकम्मे बन जाते हैं। सरकार को क्योंकि इन लोगों को लेकर समाज में अपनी अच्छी छवि बनानी होती है तो वह इनकी देखभाल, स्वास्थ्य, रोज़गार को लेकर योजनाएं बनाती रहती है। इनके पीछे यह उद्देश्य बहुत कम रहता है कि उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा मिले बल्कि यह रहता है कि वे दूसरे दर्जे के नागरिक बनकर सरकार की मेहरबानी से किसी तरह जीवित रहें। मिसाल के तौर पर उन्हें ऐसे काम जो उनके लिए हाथ की कारीगरी से हो सकते हों, के योग्य ही समझा जाता है।
हालांकि सरकार ने शिक्षा और नौकरी में उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की हुई है लेकिन उनके लिए पढ़ाई-लिखाई के विशेष साधन न होने से वे अनपढ़ ही रह जाते हैं और जब पढ़ेंगे नहीं तो नौकरी के लिए ज़रूरी शैक्षिक योग्यता को कैसे पूरा करेंगे, इसलिए उनके लिए आरक्षित पद खाली पड़े रहते हैं। आंकड़े बताते हैं कि उनकी आधी आबादी को अक्षर ज्ञान तक नहीं होता और बाकी ज्यादा से ज्यादा चौथी कक्षा तक ही पढ़ पाते हैं। ऐसी हालत में उनकी किस्मत में बस कोई छोटा मोटा काम या फिर भीख मांगकर गुज़ारा करना लिखा होता है।
उल्लेखनीय है कि दिव्यांग व्यक्तियों ने ही अपने लिए ऐसे साधन जुटाए हैं जिनसे वे एक आम इंसान की तरह जी सकें। इसका सबसे बड़ा उदाहरण लुईस ब्रेल हैं जिन्होंने ब्रेल लिपि के आविष्कार से नेत्रहीन व्यक्तियों के जीवन को उम्मीदों से भर दिया परन्तु यहां भी मनुष्य ने अपनी भेदभावपूर्ण नीति को नहीं छोड़ा और उनके लिए ब्रेल लिपि में केवल वही सामग्री तैयार कराने को प्राथमिकता दी जिससे वे केवल सामान्य ज्ञान प्राप्त कर सकें न कि उनकी योग्यता को परखकर विभिन्न विषयों जैसे कि मेडिकल, इंजीनियरिंग जैसे विषयों की पाठ्य पुस्तकें तैयार कराने पर ज़ोर दिया जाता। जहां तक किसी अन्य रूप से दिव्यांग व्यक्तियों जैसे कि सुनने, बोलने, किसी अंग के न होने या विकृत होने का प्रश्न है तो उनके लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं है कि वे सामान्य विद्यार्थी की तरह शिक्षा प्राप्त कर सकें। 
ऐसी दिव्यांगता जो सामान्य जीवन के दौरान हुई हो जैसे कि किसी दुर्घटना का शिकार हुए हों, युद्ध में हताहत होने से कोई अंग खो बैठे हों या फिर किसी अन्य परिस्थिति के कारण अक्षम हो जाएं तो यह न समझते हुए कि ज़िन्दगी समाप्त हो गई है, इसे सहज भाव से स्वीकार कर लें और उसके अनुरूप जीवन जीने की बात मानने के लिए अपने मन और शरीर को तैयार करें तो लगेगा ही नहीं कि दिव्यांग हैं।
दिव्यांग होने की सबसे कड़ी और कठिन परिस्थिति तब होती है जब शरीर से अधिक मानसिक तनाव से ग्रस्त व्यक्ति किसी तरह अपना जीवन जीने की कोशिश करता है। अक्सर वह इसमें हार जाता है और अकेलेपन की भावना को अपने मन पर हावी होने देने के बाद आत्महत्या कर लेना ही सही समझने लगता है। आज ज़रूरत है कि ऐसे विद्यालयों, विशेष शिक्षा पाठ्यक्रमों, प्रयोगशालाओं और काउंसलिंग इकाईयों की स्थापना हो जहां उनके उपचार की आधुनिक टेक्नोलॉजी पर आधारित व्यवस्था हो। इसके बाद सबसे अधिक ज़रूरी है कि मानसिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों को चिकित्सा के लिए तैयार करना। दिल्ली, मुम्बई जैसे बड़े शहरों में कुछ ऐसे संस्थान हैं जो मानसिक बीमारियों से मुक्ति प्राप्त करने वाले व्यक्तियों ने शुरू किए हैं। इनके बारे में इंटरनेट पर काफी कुछ उपलब्ध है।
दिव्यांग होना कोई अभिशाप नहीं है, इसलिए यह कतई सही नहीं है कि यदि कोई इस श्रेणी में है तो वह अपने आप को दीन हीन समझे, दूसरों की दया या सहानुभूति की उम्मीद पर जिए, डरता रहे या फिर इसे अपना अपराध समझे। सत्य यह है कि जब वह स्वयं अपनी कमान संभालेगा तो वह किसी भी क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने में सक्षम हो पाएगा।