तरक्की के नये आयाम


जनाब हमारा इलाका ही नहीं, पूरा देश तेज़ी से बदल रहा है। कहते हैं, बहुत तरक्की हो गयी। कहां तो यह एक पिछड़ा हुआ देश था, जहां अंग्रेज़ की धरती से उगता हुआ सूरज हमारे यहां आ कर डूब जाता था। गुरबत और गरीबी, भूख और प्यास, पिछड़ेपन का अंधकार दे जाता था, और कहां अब उन अमीरों के संगठनों के अस्थायी सदस्य होने के बावजूद हम उनके अध्यक्ष बन गये, कहीं एक वर्ष के लिए और कहीं एक मास के लिए। वे हमें स्वीकार करें न करें, अपनी समस्या के लिए अब हमारे हुंकारे का इंतज़ार करते हैं, क्योंकि जो माल उनकी फैक्टरियां बनाती हैं, वह बिकता तो हमारी मण्डियों में ही है न। हम खरीदें नहीं, तो उनकी महाशक्तियों का तेज कुन्द न हो जाये?
लो खबर आ गयी हम चीन को पछाड़ कर दुनिया की सबसे अधिक आबादी का देश होने लगे। ज्यों ही हम एक सौ चालीस करोड़ हो जाएंगे, सबसे अधिक आबादी के देश का ताज चीन के सिर से उतार कर हमारे देश के सिर पर सजा दिया जाएगा। सबसे अधिक आबादी का अर्थ जानते हो न। सबसे अधिक कम मज़दूरी पर काम करने वाले मज़दूरों की अबाध्य आपूर्ति दुनिया के हर छोटे बड़े देश में। हमारी ये आयातित आबादी किसी से कुछ नहीं मांगती। दूसरे दर्जे का नागरिक बन कर ही संतुष्ट हो जाती है। बन्धु, डालरों की माया अपरमपार है। अपना रुपया उनके सामने कांपते हुए लगातार सस्ता होता जा रहा है। वहां कुछ भी काम दे दो हमें, हम कहेंगे वहां श्रम का मोल है बन्धु। वहां तीसरे दर्जे का कामगार भी जितने डालर कमा लेता है, उसके साथ इस धरती पर लौटते ही करोड़पति हो जाता है। उनकी धरती पर तो वह इसे अपनी उधड़ी हुई बस्तियों का जीवन जीने में ही संतुष्ट रहता है। यहां आते ही उसके जीवन का उजाड़ रेगिस्तान हरी वसुन्धरा हो जाता है। देश में एक नया प्रभावशाली वर्ग पैदा हो गया, एन.आर.आई। अब इनकी समस्याओं की फ्रिक करने के लिए हमारे नियम संशोधन किये जा रहे हैं। यहां के फिसड्डी नागरिकों की समस्या हल हो या हम उसी तरह लाल फीते की गुलामी करें, उनकी समस्या तत्काल हल करो भई, अपने देश को नयी प्राप्त हो रही साख का सवाल है।  अरे इसी साख ने तो हमें विदेशों का वह निवेश दिलवा दिया, कि हम अपने पुराने शासक ब्रिटेन को पछाड़ कर दुनिया की पांचवीं शक्ति बन गये। यूं ही चलता रहा तो बीस सौ तीस तक दुनिया की तीसरी महाशक्ति बन जायेंगे। दुनिया के सबसे बड़े पहले दस अमीरों में से तीन भारत के हो गये। विकट महामारी में दुनिया उजड़ी, और हमारे करोड़पति, अरबपति और अरबपति खरबपति हो गये। 
मत पूछ कि इस बीच शहर के कितने लोगों की रोज़ी-रोटी छिनी और वह न घर के रहे न घाट के। मत पूछ कि भारत विभाजन के दिनों में घर बार छोड़ पलायन करते काफिले से बढ़े काफिले महानगर छोड़ गांवों की ओर क्यों चले आये? गांवों में भी क्यों आज तक आजीविका की तलाश में अधर में लटके हैं। सुना था, लघु और कुटीर उद्योगों का स्पूतनिक विकास उन्हें आसरा देगा। सहकारिता के साथ आंदोलन को फिर ज़िंदा करके उनके पैरों के नीचे की खोयी हुई धरती लौटा दी जाएगी। 
लेकिन लघु और कुटीर उद्योगों की घरेलू दस्तकारियों में लोक कला के अभिजात्य ने झांक कर निर्यात की सम्भावनाओं का संदेश दे दिया। अब धनकुबेरों के बरदहस्त की उन्हें तलाश है। लो लालडोरा क्षेत्र में इन लोगों को उद्योग स्थापित करने की मंजूरी भी मिल गई। आप रोज़गार तलाश लेने वाले नहीं, रोज़गार देने वाले बनिये संदेश था। लेकिन छोटे उद्योगों की लक्ष्मण रेखाओं को कैसे पार करें उखड़े हुए लोग। इस बीच महंगाई से जूझने के लिए नीतियां बदलीं, कज़र्ें महंगे हो गये। नतीजा, कारखाना तो मालिक ही चलायेगा, चाहे पर्दे के आगे से चलाये, चाहे पर्दे के पीछे से। धनकुबेर का बेटा धनकुबेर बना रहा, गरीब और फटेहाल हो गया। नये आंकड़े बताते हैं, देश की आधी श्रमशील आबादी आज भी पांच हज़ार रुपये मासिक से नीचे कमाती है। चाहे बहुमंज़िली इमारतों की फुनगियां और भी ऊंची हो गईं। देश के नागरिकों की औसत आय के आंकड़े और भी ऊंचे हो गये। सब आंकड़ों का खेल है भय्या। सफलता के बड़े-बड़े आंकड़े देश की तरक्की का श्रंगार कर रहे हैं, और इनकी मृगमरीचिका में भटकता आम आदमी राहत और रियायत की दुकानों के बाहर कतार लगा कर खड़ा है। ज्यों-ज्यों अनुकम्पा के सब्ज़बाग विस्तृत होते जा रहे हैं, त्यों-त्यों बेकार नौजवानों के इस देश में नौकरी पाने की छटपटाहट कम होती जा रही है। 
तरक्की के साथ-साथ देश में वैध और अवैध का अन्तर कम होता जा रहा है। तरक्की के लिए नशा माफिया, हथियार  माफिया और आतंकी ग्रुप सहोदर हो गये और जेलें बन गईं नये पर्यटन स्थल। आंकड़े प्रसारित हो रहे हैं कि देश की सकल घरेलू आय में पर्यटन क्षेत्र का योगदान निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इस वृद्धि के साथ जेलें भी अचानक नये पर्यटन स्थल बन गईं, और भ्रष्टाचार से आरोपित नेताओं की आरामगह। हर सुविधा यहां उपलब्ध है, मालिश से लेकर काजू-बादाम के नाश्ते तक। मोबाइल से लेकर अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्रों के मन्त्रणा स्थल बनने तक। जेल में रहते हैं तो गुण्डा गैंग चलाते हैं। बाहर आ जाते हैं तो राजनीति को नया रास्ता दिखाते हैं। गलत और सही का भेद मिटा देते हैं। राजनीति से समाज सेवा तक की हथेली पर सरसों जमा देते हैं। देखते ही देखते  अपने देश ने कितनी तरक्की कर ली।