खतरे की घंटी


आर्थिकता के पक्ष से पहले ही बुरी तरह डावांडोल हो रहे प्रदेश में नई सरकार आने पर इस पक्ष से हालात सुधरने की बजाये और खराब होने की सम्भावना बनती जा रही है। नई सरकार आय के नये स्रोत ढूंढने या पुराने स्रोतों से अधिक आय प्राप्त करने की योजनाओं को छोड़ कर और ऋण लेने के जाल में फंसती जा रही है। सिर्फ इस चालू वर्ष के दौरान ही प्रदेश सरकार द्वारा 16,000 करोड़ का ऋण तो ले ही लिया गया है जबकि इस वर्ष के दौरान 20,000 करोड़ से अधिक प्रदेश सरकार को पहले लिए गए ऋण की अदायगी ही देनी पड़ेगी। पिछली सरकारों ने भी सरकार की ज्यादातर सम्पत्तियों और संस्थाओं को गिरवी रखने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। 
पिछले 2 वर्षों के दौरान ही 2900 करोड़ के लगभग ऋण सरकारी सम्पत्तियों को गिरवी रख कर लिया गया था। सरकार से संबंधित लगभग सभी निगम तथा बोर्ड पहले ही ऋण में डूबे हुए दिखाई दे रहे हैं तथा ऊपर से चुनावों से पहले अकाली-भाजपा गठबंधन तथा कांग्रेसी सरकारों की तज़र् पर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने प्रदेश के सभी घरों को मुफ्त घरेलू बिजली देने के वायदे किये थे। अपने इस वायदे को उन्होंने पूरा करने के लिए तो कदम ज़रूर उठाये हैं तथा सरकार द्वारा बार-बार यह घोषणा की गई है कि अब घरों में बिजली के ज़ीरो बिल आएंगे। इस वायदे को पूरा करते हुए सरकार बिजली बोर्ड की और ऋणी हो गई है। भाव सिर्फ बोर्ड को ही अब 18,000 करोड़ की बिजली सबसिडी देनी पड़ेगी तथा सबसिडी की स्थिति यह है कि सरकार ने अब तक 10,000 करोड़ रुपये तो जारी कर दिये हैं परन्तु आगामी दिनों में सब्सिडी की राशि और बढ़ जाएगी क्योंकि 300 यूनिट प्रति महीना मुफ्त करने से 2500 करोड़ की राशि में और वृद्धि हो जाएगी। दूसरी ओर इस मामले पर प्रशंसा बटोरती सरकार के लिए एक ओर सिरदर्दी खड़ी हो गई है। लोगों ने परिवारों की कई-कई इकाइयों बना ली हैं। एक ही इमारत में विभिन्न पारिवारिक इकाइयां बनाने से अधिक मीटर लगाए जाने के हज़ारों आवेदन पहुंचने शुरू हो गये हैं। राजनीतिक लाभ लेती सरकार को लेने के देने पड़ सकते हैं। इसलिए अब मीटरों की जांच शुरू होगी। उड़न दस्ते बनाए जाएंगे और माहौल साज़गार होने की बजाय और भी खराब होना शुरू हो जाएगा। इस समय प्रदेश में 74 लाख घरेलू उपभोक्ता हैं, जिनकी संख्या और बढ़ने की संभावना दिखाई दे रही है। पहले ही घरेलू बिजली में रियायत होने के कारण 3,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। गत वर्ष यह 1100 करोड़ था। पहले ही सरकार द्वारा सब्सिडी का बिल 9000 करोड़ से अधिक बकाया है, जिसमें 3000 करोड़ की और वृद्धि हो गई है। चिंताजनक बात यह है कि आज यह छोटा-सा प्रदेश देश भर के सभी प्रदेशों से अधिक ऋणी हो चुका है। इससे भी अधिक इसकी ऋण लेने की सीमा ही समाप्त हो रही है, जिस कारण आने वाले समय में इसे और ऋण नहीं मिल सकेगा क्योंकि वर्ष 2022-23 में सरकार का राजस्व 45,588 करोड़ होने की संभावना दर्शाई गई है। इस प्रकार बिजली सब्सिडी की राशि इसका 39 प्रतिशत हो जाएगी, जिसके और बढ़ने की संभावना है। यदि सरकार के हाथ खाली हो गये तो जन-कल्याण तथा मूलभूत सुविधाएं कैसे प्रदान की जा सकेंगी।
स्वास्थ्य एवं शिक्षा में तो और अधिक पूंजी लगाने की आवश्यकता है। मुख्य मार्गों के अतिरिक्त बहुत-सी और सड़कों की पिछले समय में किसी तरह की मुरम्मत नहीं हुई और स्थान-स्थान पर गड्ढे पड़े हुए दिखाई देते हैं। जिसकी मुरम्मत के लिए पैसे की ज़रूरत है।  स्कूली शिक्षा, ग्रामीण विकास, जल आपूर्ति और छोटे-बड़े शहरों की देखभाल के लिए यदि जरूरी राशि की कमी हो गई तो सरकार अपने किए वायदों को पूरा नहीं कर सकेगी और निर्धारित लक्ष्यों से पिछड़ जाएगी। बिजली बोर्ड के एक अधिकारी ने ठीक ही कहा है कि बोर्ड एक बार फिर राजनीतिक लाभ लेने की मार झेल रहा है। पहले अकाली सरकार ने किसानों की बिजली मुफ्त की और अब ‘आप’ सरकार द्वारा 600 यूनिट दो महीने के माफ करने से पावरकॉम पूरी तरह से डावांडोल हो चुका है। पूरी तरह से फंसी दिखाई देती सरकार द्वारा आगामी समय में किस तरह की योजनाबंदी की जा रही है, इसके संबंध में भी तस्वीर स्पष्ट नहीं हुई। आज हर पक्ष से अवसान की ओर जा रहे प्रदेश को दोबारा पांवों पर खड़ा करने के लिए नए सिरे से नीतियां बनाने की ज़रूरत होगी। सरकार ऐसी इच्छा शक्ति पैदा करके उसको क्रियान्वयन करने में सक्षम हो सकेगी, यह देखना शेष होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द