ज़िन्दगी के नये हाट बाज़ार


बन्धुवर, ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं एक बाज़ार बन के रह गई है। यह बाज़ार आपको अपने सपनों के दरीचों से भी देखो तो हमेशा अपने आस-पास खुले दिखाई देते हैं। वैसे खरीद बेच का धंधा तो बहुत पुराना है, लेकिन प्यारे यहां तो यह स्थिति है कि प्यारे भाई बिना आपके पल्ले कुछ दिये लोग न केवल बहुत बड़े सौदागर बन जाते हैं, श्रीमन्त बन जाते हैं, और ऊंची हवेलियों के मालिक बन जाते हैं। माशा अल्लाह! पहले परम्परा थी जनसेवा की। दिन-रात मेहनत करने की। अपने आदर्शों पर पहरा देते हुए, अपनी जीवन यात्रा सम्पूर्ण कर जाने की। सादा जीवन, उच्च विचार वह कहते थे। लो आज विचार शून्यता और आचारहीनता के इस माहौल में सादे जीवन का भ्रम भी बिकने लगा। मित्रो, आजकल ज़माना आया है, अपनी छवि बेचने का। नेता हो तो कुर्ता पायजामा पहन लो, कन्धे पर शाल अवश्य रख लेना, लेखक हो तो बिखरे हुए बाल और बड़ी हुई दाड़ी चाहिए। तत्वचेत्ता या दार्शनिक हो तो विस्फारित नेत्रों के साथ, आकाश की ओर देखते हुए, ऐसी ऊलजलूल बातें करो कि जो किसी के पल्ले न पड़ें। अगर आप बोधगम्य हो गये, तो भला आपके दर्शनशास्त्र की मौलिकता क्या? जो समझ आ जाये, वह भी कहीं प्रशंसा प्राप्त करता है?
सुनो, जो जितना जटिल बोलेगा, दूसरों के लिए जितने भ्रम जाल बिछाएगा उन्हें आश्वस्त करेगा कि असली मौलिक सच तो उसके पास है, उतना ही लोग उसे सिर आंखों पर बिठाएंगे, अपने कन्धे उसकी सवारी के लिए पेश करेंगे। और जो अभागा, जितना आपकी जुबान में बतियाते हुए ज़िन्दगी के कटु सच आपको पेश कर देगा, उतना ही वह आपकी महफिलों से दुत्कारा जाएगा। 
अरे वह क्या है, वह तो हमारी जुबां बोलते हुए हमारी ज़िन्दगी के कटु सत्यों को ही आईना दिखा रहा है, भला ऐसे भ्रमभंजक की परवाह कौन करे। फेंक दो उसे विस्मृतियों के अंधेरे में। फिर उसे सिरनवाओ, जो आपके इस घुप्प अंधेरे में भी एक झूठी लकीर सा चम चम चमकता है। बन्धु, आप लाख समझा लीजिये कि हर चमकती हुई चीज़ सोना नहीं होती, लेकिन सदियों से लोग इस चमक-दमक को सोना मानकर उसके पीछे भाग रहे हैं। आने वाले बरसों में भी उसके पीछे ही भागते रहेंगे। फिर अब तो इस चमक के लिए अखबारों की खबरों की कतरने प्राप्त करने की गुलामी भी नहीं रही। अब तो सोशल मीडिया आ गया है न। फेसबुक है, व्हाट्सअप है, ट्विटर है, इंस्टाग्रम है। लोग अपने भोडे, बदसूरत चेहरे पर भी सौ-सौ लाइक प्राप्त करने के लिए दीवाने हुए जा रहे हैं। जिसने जितने अधिक लाइक प्राप्त कर लिए, उतना ही वह बड़ा आदमी। 
लेकिन कॉफी कप में उठे तूफान की तरह कभी-कभी अपनी छवि को बदल कर भी लोग अधिक बिकाऊ हो जाते हैं। आप लेखक थे, आपकी कविता-कहानी कोई सुनने के लिए तैयार नहीं था। अखबार, पत्रिकाएं आपकी एक पंक्ति भी छापने के लिए तैयार नहीं थीं। कहीं भूल से कुछ छप गया तो उसकी शोभायात्रा निकाल दो। लेकिन अब ऐसे दांव नहीं चलते, तो अपनी छवि ही बदल दो। लोगों के हाथ की लकीरें पढ़ कर उनका आने वाला कल बताने लगो। सितारों का ज्ञान बघार कर उनका कल, आज और कल भी के बारे में भविष्यवाणी करने लगो। देखो, इस अनिश्चित समय वाले समय  में लोगों को ज्योतषी बन उनके भविष्य का सतरंग प्रिज़म बताओगे, तो जो लोग आपको घास भी नहीं डालते थे, वही आपका कीर्तिगायन करते हुए साथ चित्र खिंचवा उसे छपवाने में अपना जीवन सफल मानने लगेंगे। यहीं बस नहीं। जो आपकी बातों को पहले ऊलजलूल मानकर दरकिनार कर देते थे, उन्हें उनके धार्मिक, जात-बिरादरी या सामाजिक मंच से सम्बोधित करके तो देखो। कोई नहीं कहेगा, ‘अरे भई, आपने यह कौन-सा नया चोला धारण कर लिया।’ बल्कि आपकी दो कौड़ी परवाह न करने वाले अब श्रद्धाविहल होकर आपको अपने बहुमूल्य समय में से कुछ समय निकाल कर उन्हें देने की मांग करते नज़र आएंगे। 
करामात आपकी नहीं, उस करिश्मे की है, जिससे आपने अपनी छवि बदल कर उन्हीं लोगों को पुन: बेच दी। यह बात बहुत पुरानी है। हर व्यवसायी जानता है कि अगर उसका एक उत्पाद नहीं बिकता, उसका ब्रांड, रैपर और पैकेट बदल दो, अपने आप ग्राहकों की भीड़ जुट जायेगी। बात नहीं समझ आई, तो तनिक आजकी राजनीति की ओर झांक लो। आया राम गया राम की महिमा हर दिन अधिक से अधिक अपरमपार होती जा रही है। दल-बदलुओं के बिना न सरकारों को स्थायित्व मिलता है, न बहुमत सिद्ध होते हैं। 
हमारे नेता जी की जान सूखी रहती है, शपथ ग्रहण से लेकर हर बहुमत सिद्ध करने की चुनौती तक। वोट डालने योग्य विधायकों को चर नज़रों से दूर ले जाकर पंचतारा सुविधाओं से लैस किया जाता है। लेकिन फिर भी खेलने वाले खेल, खेल ही जाते हैं। सुविधाएं आपकी भोगते हैं, और वोट किसी और को डाल कर क्रांतिनिवाद कर देते हैं। इस क्रांतिनिवाद की भी भली पूछी। इसके भी कई रूप हैं। जब कहते हैं, कि भ्रष्टाचार के प्रति ज़ीरो टालरैंस है, तो समझ लो विरोधी पक्ष के बड़े नेताओं की अब और खैर नहीं। भ्रष्टाचार उन्मूलन के नाम पर अब आरोप और हथकड़ियां आई की आईं। 
इन आरोप-पत्रों की खूब कही। आरोप लगने, या कानून के शिकंजे में आ जाने का मतलब यह नहीं कि आप नकारा हो गये। चोर मार्ग सामने खुला है, इस सूत्र सत्य के साथ कि, ‘आरोपित को जब तक दण्ड न मिले, वह अपराधी नहीं होता।’ अब तरीख पर तारीख के इस माहौल में इसका निर्णय तो दस-बीस बरस से पहले होना ही नहीं है। इसलिए धीरज के साथ जन-प्रतिनिधि बन जाने के लिए चुनाव की उम्मीदवारी भर दीजिये। इस बीच अदालत से ज़मानत मिल गई, तो सत्ता पर बदलाखोरी का आरोप लगाते हुए अपने क्रांतिवीर होने की घोषणा कर दो, और चुनाव जीत कर अपने दागदार चेहरों के साथ विधानसभाओं और संसद भर दो। जनता को यह बात भूल जाएगी कि यह वहीं महानुभाव हैं, जिन्होंने आपके शहर की सड़कें बेच खाईं। वही अब आपके जीवन को कायाकल्प का सपना बेच रहे हैं।