केन्द्र सरकार ने अब निर्धारित किये नये लक्ष्य


भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार ने अब नये लक्ष्य निर्धारित कर लिए हैं। याद करें, जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने 2022 का लक्ष्य निर्धारित किया था। उन्होंने कहा था कि जब आज़ादी के 75 साल पूरे होंगे तब तक भारत बड़ी ऊंचाइयों पर पहुंच चुका होगा। उन्होंने कई लक्ष्य निर्धारित किए थे, जिनमें से एक भी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है। लेकिन कोरोना के नाम पर उसे छोड़ दिया गया है और अब अगले 25 साल का लक्ष्य तय किया जा रहा है। सरकार ने अब ‘इंडिया एट 100’ का गोल पोस्ट तय किया है। सारी चीजें अब इस नाम पर हो रही हैं कि भारत की आज़ादी के सौ साल पूरे होंगे तो क्या-क्या होगा? सरकार के हर कार्यक्रम में यह लिखा दिख रहा है कि ‘इंडिया एट 100’ तक क्या होगा। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा है कि इस बार का बजट अगले 25 साल का टेम्पलेट लिए होगा। ध्यान रहे यह नरेंद्र मोदी की सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी बजट होगा। सो, बजट में इस बार बड़े लक्ष्यों की घोषणा हो सकती है और आज़ादी के सौ साल पूरे होने तक यानी 2047 तक चलने वाले कुछ कार्यक्रमों की घोषणा भी हो सकती है। उसके लिए बजट में कुछ प्रावधान किए जा सकते हैं। 
जांच एजेंसियों का दुरुपयोग
इस समय देश में कई नेताओं के खिलाफ  प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग आदि केंद्रीय एजेंसियों की जांच चल रही है, लेकिन कर्नाटक के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिव कुमार का मामला सबसे अलग है। उनके खिलाफ जैसी और जितनी लम्बी जांच चल रही है, उतनी किसी अन्य नेता के खिलाफ  नहीं चली होगी। उनके खिलाफ  पिछले पांच साल से जांच ही चल रही है। आम तौर पर एजेंसियों की छापेमारी के बाद थोड़े दिन जांच और पूछताछ चलती है और फिर आरोप-पत्र दाखिल हो जाता है, जिसके बाद अदालती कार्यवाई चलती है, लेकिन शिव कुमार के मामले में ऐसा नहीं है। उनके यहां 2017 में आयकर विभाग का छापा पड़ा था। उसके तीन साल बाद अक्तूबर 2020 में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की। इस बीच प्रवर्तन निदेशालय ने भी जांच शुरू की जो अभी तक चल रही है। पिछले सोमवार  सीबीआई की टीम ने बेंगलुरू में उनके कई परिसरों में जाकर जांच की। अब भी उनको एक नियमित अंतराल पर पूछताछ के लिए बुलाया जाता है। कांग्रेस के नेता मान रहे हैं कि शिव कुमार और उनके सांसद भाई डी.के.सुरेश को अगले साल मई में होने वाले विधानसभा चुनाव तक केंद्रीय एजेंसियां उलझाए रखेंगी और इसका कारण विशुद्ध रूप से राजनीतिक होगा। सब जानते हैं कि डी.के. शिव कुमार मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार नहीं हैं लेकिन चुनाव वह ही लड़वाएंगे। इसीलिए केंद्रीय एजेंसियां उन्हें राहत की सांस नहीं लेने देंगी। इन एजेंसियों को भाजपा के गठबंधन का सदस्य यूं ही नहीं कहा जाता है।
भाजपा के लिए संकटमोचक ‘आप’
आम आदमी पार्टी अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में लग गई है। मई में विधानसभा का चुनाव होने वाला है और उससे पहले अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने लोक-लुभावन घोषणाएं करनी शुरू कर दी हैं। पार्टी ने वायदा किया है कि अगर राज्य में उसकी सरकार बनेगी तो वह पुरानी पेंशन योजना लागू करेगी। यह बात कांग्रेस भी कहने वाली थी, जैसा कि उसने हिमाचल प्रदेश में वायदा किया और चुनाव जीती, लेकिन कांग्रेस से पहले ही आम आदमी पार्टी ने ऐलान कर दिया। हालांकि ‘आप’ की कमज़ोरी यह है कि उसके पास प्रदेश में संगठन नहीं है और बड़े नेता भी नहीं हैं। इसके बावजूद वह कर्नाटक में चुनाव लड़ेगी और उसी तरह से लड़ेगी, जैसे गुजरात या हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा आदि राज्यों में लड़ी। अगर वह गुजरात की तरह लड़ती है यानी अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान और अन्य नेता रात-दिन मेहनत करते हैं, तब तो कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है। कांग्रेस वहां इस बार सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है लेकिन अगर ‘आप’ पूरी ताकत से लड़ी और जेडीएस भी अलग चुनाव लड़ी तो भाजपा को फायदा होगा, परंतु अगर ‘आप’ हिमाचल प्रदेश की तरह चुनाव लड़ती है, तब कांग्रेस को नुकसान नहीं होगा। चुनाव से पांच महीने पहले तो ऐसा दिख रहा है कि ‘आप’ के पास संगठन नहीं है और वह सिर्फ  लड़ने के लिए लड़ेगी। 
पूर्वोत्तर में फुटबॉल और पोप का कार्ड
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जितने कट्टर अपनी राजनीतिक विचारधारा को लेकर हैं, चुनावी रणनीति को लेकर उतने ही लचीले हैं। हर राज्य में वहां के माहौल और हालात के मुताबिक भाषण देते हैं और घोषणाएं करते हैं। यह बात उन्हें बाकी नेताओं से अलग करती है। वह चुनावी हिसाब से जब भाषण देते हैं तो अपनी पार्टी की ओर से प्रचारित मुख्यधारा के विमर्श और विचारधारा को भी किनारे कर देते हैं। जैसे उनकी पार्टी के नेता अधिक समय मीडिया और सोशल मीडिया में इस्लाम और ईसाइयत के पीछे पड़े रहते हैं और मौलानाओं के साथ-साथ पादरियों को भी निशाना बनाते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ईसाई बहुल मेघालय गए तो वहां उन्होंने पोप से अपनी मुलाकात का ज़िक्र किया। एक जनसभा में उन्होंने बताया कि वह पोप से मिले और पोप के साथ हुई मुलाकात का उनके ऊपर बड़ा असर पड़ा। इसी तरह प्रधानमंत्री ने फुटबॉल का भी ज़िक्र किया। गौरतलब है कि मेघालय और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में फुटबॉल सबसे लोकप्रिय खेल है। उन्होंने फीफा विश्व कप का ज़िक्र करते हुए कहा कि आज भारत के लोग दूसरे देशों का खेल देख कर खुशी मनाते हैं, लेकिन जल्दी ही अपने देश में सभी वैश्विक खेल आयोजन होंगे और तब लोग अपने खिलाड़ियों के खेल का जश्न मनाएंगे। गौरतलब है कि अगले तीन महीने में त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में चुनाव है, जिनमें से मेघालय और नागालैंड में बड़ी ईसाई आबादी है। उसे ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने पोप के साथ साथ फुटबॉल का कार्ड भी खेला।