भाजपा के ‘डबल इंजन’ सरकार के दावे की खुली पोल

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के दूसरे नेता भी विकास की अनिवार्य शर्त यह बताते हैं कि राज्य में डबल इंजन की सरकार होनी चाहिए यानी केंद्र में भाजपा की सरकार है और राज्यों में भी भाजपा की ही सरकार हो, तभी विकास होगा। लेकिन विकास दर के आंकड़े कुछ और कहानी बयां कर रहे हैं। केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से जारी विकास दर के आंकड़ों के मुताबिक सबसे अच्छा काम करने वाले शीर्ष पांच राज्यों में एक भी भाजपा शासित यानी डबल इंजन की सरकार वाला राज्य नहीं है। 
भाजपा के विकास मॉडल वाला गुजरात तो शीर्ष 10 राज्यों में भी शामिल नहीं है। वित्त मंत्रालय द्वारा पिछले हफ्ते जारी आंकड़ों के मुताबिक शीर्ष 6 राज्य विपक्षी पार्टियों के शासन वाले हैं। इनमें 11 फीसदी से ऊपर विकास दर के साथ आंध्र प्रदेश पहले नम्बर पर है और दूसरे स्थान पर राजस्थान है, जहां कांग्रेस की सरकार है। आम धारणा से उलट तीसरे स्थान पर बिहार है, जो देश के सबसे पिछड़े राज्यों में शुमार है। इसके बाद तेलंगाना और दिल्ली है। छठे स्थान पर ओड़िशा है और सातवें पर मध्य प्रदेश है यानी डबल इंजन सरकार वाला पहला राज्य। विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने इस रिपोर्ट को लेकर भाजपा को निशाना बनाया है और डबल इंजन की सरकार में विकास होने के दावे का मज़ाक उड़ाया है। 
 कांग्रेस को चंदा
कांग्रेस सिर्फ  चुनावी राजनीति में ही फिसड्डी नहीं हो गई है, बल्कि चुनावी चंदे के मामले में भी उसकी स्थिति बहुत खराब है। भाजपा को मिलने वाले चंदे के मुकाबले तो वह कहीं टिकती ही नहीं है। क्षेत्रीय पार्टियां भी उससे आगे निकल गई हैं। यह स्थिति तब है जब तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। पिछले साल भी कांग्रेस की दो राज्यों में सरकार थी और उस समय के आंकड़ों में भी कई प्रादेशिक पार्टियां कांग्रेस से आगे रही हैं। भाजपा की तो स्थिति यह है कि इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिए चंदे में 72 फीसदी चंदा अकेले भाजपा को मिलता है। बाकी 28 फीसदी में देश की सभी पार्टियां हैं। देश की बड़ी 9 पार्टियों को जितना चंदा मिला है उसका अढ़ाई गुना चंदा भाजपा को मिला है। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक इलेक्टोरल ट्रस्ट से मिलने वाले चंदे में भाजपा को पिछले साल 351.50 करोड़ रुपये चंदा मिला है। हैरानी की बात है कि देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को सिर्फ 18.44 करोड़ रुपया चंदा मिला है। कम से कम चार प्रादेशिक पार्टियों को इससे ज्यादा चंदा मिला है। भाजपा के बाद जिस पार्टी को सबसे ज्यादा चंदा मिला है, वह है के. चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति। उसे कांग्रेस को मिले चंदे के दोगुने से ज्यादा 40 करोड़ रुपए का चंदा मिला। समाजवादी पार्टी को 27 करोड़ रुपये, आम आदमी पार्टी को 21.12 करोड़ और जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस को 20 करोड़ रुपया चंदा मिला।
जस्टिस नागरत्ना 
नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की चर्चा तो हो रही है लेकिन फैसला सुनाने वाली पांच जजों की पीठ में से उन चार जजों की कोई चर्चा नहीं कर रहा है जिन्होंने नोटबंदी के सरकार के कदम को सही ठहराया है। चर्चा में सिर्फ  जस्टिस बी.वी. नागरत्ना हैं, जिन्होंने चार जजों से असहमत होते हुए नोटबंदी को नाजायज़ करार दिया। जस्टिस नागरत्ना ने इससे पहले भी कई ऐसे फैसले दिए हैं, जिनमें उनकी न्यायप्रियता और प्रगतिशील सामाजिक नजरिए की झलक दिखती है।
 जस्टिस नागरत्ना ने 2021 में कर्नाटक पॉवर ट्रांसमिशन कारपोरेशन के एक सर्कुलर के खिलाफ  सुनाए गए फैसले में कहा था, ‘दुनिया में कोई बच्चा बिना मां-बाप के पैदा नहीं होता। बच्चे के पैदा होने में उसका खुद का कोई योगदान नहीं होता। इसलिए कानून को यह तथ्य स्वीकार कर लेना चाहिए कि मां-बाप नाजायज़ हो सकते हैं लेकिन कोई बच्चा कभी नाजायज़ नहीं हो सकता।’ जस्टिस नागरत्ना ने 2012 में एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए मीडिया पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि देश का मीडिया फर्जी खबरों के जरिए देश के लोकतंत्र को खतरे में डाल रहा है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि फर्जी खबरों पर लगाम कसने के लिए ताकतवर सिस्टम भी होना चाहिए। जस्टिस नागरत्ना निराशा के घटाटोप में उम्मीद की एक किरण हैं। 
सरकार धालीवाल पर मेहरबान क्यों?
अमरीका में बसे भारतीय मूल के अरबपति कारोबारी दर्शन सिंह धालीवाल के नाम से देश के कई लोग परिचित है। कोई सवा साल पहले अक्तूबर 2021 में वह भारत आए थे तब भारत सरकार ने उन्हें दिल्ली के हवाई अड्डे से ही वापस लौटा दिया था। सरकार की निगाह में उनका गुनाह यह था कि उन्होंने केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ  आंदोलन का समर्थन किया था और दिल्ली में आंदोलन कर रहे किसानों के लिए लंगर लगवाया था। अब भारत सरकार ने उनको प्रवासी भारतीय सम्मान के लिए चुना है। दूसरे देशों में बसे भारतीयों को दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान के लिए दर्शन सिंह धालीवाल का चुनाव हैरान करने वाला है। खुद धालीवाल ने कहा है कि वह भारत सरकार के रवैये से हैरान हैं। पहले हवाई अड्डे से लौटाया और अब उनके काम को पहचाना और प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित किया। इस बार धालीवाल खुश हैं, परन्तु सवाल है कि सरकार उन पर इतनी मेहरबान क्यों हो गई? क्या सरकार को अपनी गलती का अहसास हो गया है? असल में भाजपा अगले साल होने वाले लोकसभा और हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर चिंतित है। उसे लग रहा है कि किसान आंदोलन का भूत उसका पीछा नहीं छोड़ेगा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और कुछ अन्य इलाकों में उसे नुकसान हो सकता है। राहुल गांधी की यात्रा ने भी भाजपा की चिंता बढ़ाई है। इसलिए सरकार गलतियां सुधारने में लगी है।