जरा ध्यान से सुनें कुछ कहती है बच्चों की यह खामोशी...

 

अधिकतर पैरेंट्स को यह शिकायत रहती है कि उनका बच्चा बहुत खामोश रहता है। उसका गैर दोस्ताना स्वभाव है। लोगों से भी आसानी से घुलता मिलता नहीं है। वह अपने आपमें खुश रहता है और अपने कमरे में संतुष्ट रहता है।  दरअसल, बच्चे दो तरह से खामोशी इख्तियार करते हैं। एक बच्चा स्वस्थ तौर पर खामोश होता है। जबकि दूसरा बच्चा अपने अंदर चल रही परेशानियों व समस्याओं के कारण खामोश होता है। चूंकि इन दोनों किस्मों के लक्षण लगभग एक जैसे होते हैं, इसलिए अकसर पैरेंट्स दोनो किस्म की खामोशी में अंतर नहीं कर पाते। कई बार स्वस्थ खामोशी की भी शिकायत कर बैठते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि स्वस्थ खामोशी को बढ़ावा दिया जाए व परेशान खामोशी का इलाज कराया जाए। साथ ही दोनो किस्म के बच्चों की मदद की जाए।
अपने खामोश बच्चों को लेकर शिकायत करने वाले पैरेंट्स अपने अनुभवों, सामाजिक मान्यताओं व आशाओं के तहत ऐसा करते हैं। जहां बच्चा भावनात्मक परेशानी व व्यक्तिगत और सामाजिक गड़बड़ी के कारण चुप चुप रहता है, वहां यह बात जानना जरूरी हो जाता है कि ऐसी क्या बात है जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही है, जिसके कारण वह अकेला रहना पसंद करता है। दूसरे बच्चों के साथ घुलना मिलना नहीं चाहता है। 
इस किस्म के बच्चों के व्यक्तिगत सम्बंध विकसित नहीं हो पाते हैं। वे कभी अपनी भावनाओं को अर्थपूर्ण अंदाज में व्यक्त नहीं कर पाते हैं। अनचाही स्थितियों के सामने उनके चहरे पर एक अजीब किस्म का दब्बूपन रहता है। उनके बातचीत का अंदाज लापरवाही भरा व संक्षिप्त होता है। बच्चा उस जगह तालमेल नहीं बिठाना चाहता जहां भावनात्मकता या अंतरंगता की मांग होती है। अगर आप अपने बच्चे में इस किस्म के लक्षण देखते हैं तो वह निश्चित तौर पर परेशान है। वह पर्सनैलिटी डिस्ऑर्डर से जूझ रहा है। उसका व्यवहार जाहिर कर रहा है कि वह मानव सम्पर्क की न इच्छा करता और न ही इसमें उसे आनंद आता है। वह हमेशा ऐसी गतिविधियों का चयन करता है जो अकेलेपन से सम्बंधित हों। उसके करीबी दोस्त या राजदार नहीं हैं। ऐसे बच्चे की चाहे तारीफ  की जाए या आलोचना की जाए, उसे कोई परवाह नहीं होती। वह भावनात्मक ठंडापन व अलगाववाद प्रदर्शित करता है।
अगर आपके बच्चे में ऐसे ही लक्षण मौजूद हैं तो यह मानकर न बैठें कि वक्त के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा। फौरन विशेषज्ञों की मदद लें। कुछ सालों पहले अमरीका में जिस बच्चे एडम लान्जा ने गोलियां चलाकर कत्लेआम किया था, वह भावनात्मक दृष्टि से परेशान किशोर था। हालांकि कुछ भी कहना कठिन है लेकिन इस दुखद घटना को रोका जा सकता था अगर एडम के अभिभावक स्वीकार कर लेते कि उनके बच्चे को विशेषज्ञ के साथ विशेष देखरेख की जरूरत थी। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अधिकतर पैरेंट्स अपने आपमें इतने परेशान रहते हैं कि उन्हें अपने बच्चे में असामान्य या अजीब किस्म की स्थितियां दिखाई नहीं देतीं। वह इन्हें नजरंदाज कर देते हैं। इसके अतिरिक्त वे इतने रक्षात्मक हो जाते हैं कि यह मानने के लिए तैयार ही नहीं होते कि उनका बच्चा परेशान है उसे मदद की जरूरत है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर