क्या आरईवीएम से शत-प्रतिशत मतदान का लक्ष्य हासिल होगा ?   

 

किसी भी लोकतंत्र राष्ट्र में चुनाव अनिवार्य व महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है। राजनीतिक पार्टियों के लिए यह एक परीक्षा होती है। राष्ट्र के प्रत्येक वयस्क के संविधान प्रदत्त मताधिकार के इस्तेमाल का दिन होता है चुनाव। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावों में अधिकाधिक या शत-प्रतिशत मताधिकार का इस्तेमाल हो, इसके लिये चुनाव प्रक्रिया में एक और क्रांति की दिशा में अग्रसर होते हुए देश में एक नये अध्याय की शुरुआत होने जा रही है, जिसके अन्तर्गत रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरईवीएम) का मॉडल विकसित कर चुनाव आयोग ने महत्वपूर्ण पहल की है। चुनावों के दौरान यह मशीन उन मतदाताओं के लिए वरदान साबित होगी, जो शिक्षा, चिकित्सा और रोज़गार के सिलसिले में अपने चुनाव क्षेत्रों से बाहर रहते हैं। आरईवीएम को चुनाव प्रक्रिया में शामिल करने के बाद जो मतदाता जहां हैं, वहीं से मतदान कर सकेंगे। निश्चित ही इसके लागू होने से मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा एवं लोकतंत्र में जन भागीदारी अधिक तम होने लगेगी। चुनाव आयोग के मुताबिक अपने चुनाव क्षेत्रों से बाहर रहने के कारण करीब 30 करोड़ मतदाता मतदान से वंचित रह जाते हैं। शिक्षा या रोज़गार की व्यस्तता के कारण उनके लिए अपने क्षेत्र में पहुंच कर मतदान करना आसान नहीं होता। आरईवीएम के ज़रिए ऐसे मतदाताओं को चुनाव प्रक्रिया में शामिल कर मतदान प्रतिशत बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी, जो भारतीय लोकतंत्र को अधिक सशक्त एवं प्रभावी बना सकेगा। 
चुनाव आयोग इस नयी प्रक्रिया एवं नये मॉडल का प्रदर्शन  16 जनवरी, 2023 को नई दिल्ली में करेगा, जिसमें विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को आमंत्रित कर उनके सुझाव और आपत्तियाें के लिये खुला मंच प्रस्तुत किया जायेगा। इसे भारत की चुनाव प्रक्रिया में एक बड़ी उपलब्धि माना जा सकेगा। एक अभिनव एवं क्रांतिकारी दिशा में चुनाव के महाकुंभ को अग्रसर करते हुए इसे अधिक सशक्त एवं प्रभावी बना सकेंगे। चुनाव आयोग की इस शुरुआत का स्वागत होना चाहिए। जिस तरह 1982 में केरल के एक विधानसभा क्षेत्र में पहली बार ईवीएम का प्रायोगिक तौर पर इस्तेमाल करते हुए क्रांति की शुरुआत हुई थी उसी तरह चुनाव प्रक्रिया में आरईवीएम की शुरुआत से चुनाव प्रक्रिया की तस्वीर बदलेगी, मतदाता जहां ज्यादा जागरूक होगा, राजनीतिज्ञ भी ज्यादा समझदारी से चुनाव में हिस्सा लेंगे। हालांकि आरईवीएम को चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बनाने के लिए आयोग को अभी आलोचनाओं, बाधाओं के साथ-साथ कई कानूनी, तकनीकी और राजनीतिक अड़चनों को पार करना है। जिस तरह मतदाता पहचान-पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने के प्रस्ताव पर सवाल उठे थे, उसी तरह अब आरईवीएम को लेकर भी विपक्षी दल शंकाएं व्यक्त कर रहे हैं।
लम्बे समय से चुनाव में गिरता मतदान प्रतिशत चिन्ता का विषय बना हुआ है। वास्तविक लोकतंत्र वही है जिसमें हर व्यक्ति अपने मत का उपयोग करते हुए अपने प्रतिनिधि चुने। लेकिन हर व्यक्ति अपने मत का उपयोग नहीं कर पाता, क्योंकि वह अपने मूल स्थान से दूर दूसरे शहरों या कस्बों में रोज़गार, शिक्षा, चिकित्सा, पारिवारिक कारणों से होता है। अगर ऐसे लोगों को मतदान में हिस्सेदारी का अवसर दिया जाता है, तो इससे नि:संदेह मत प्रतिशत बढ़ेगा। मगर दिक्कत यह है कि ऐसे लोगों की पहचान सुनिश्चित करना और वे जहां रह रहे हैं, वहां मतदान केंद्र स्थापित कर पाना कैसे संभव होगा? इस बड़ी बाधा को दूर करना चुनाव आयोग के सम्मुख एक बड़ी चुनौती रही है। वही लोकतंत्र में जन प्रतिनिधियों को चुनने में समग्रता एवं बहुसंख्य मतदाताओं के मतों का उपयोग न होना एक अधूरापन है। लोकतंत्र की मज़बूती की दृष्टि से यह वाकई चिंताजनक है कि कई चुनाव क्षेत्रों में करीब आधी आबादी की मतदान में सहभागिता नहीं होती।
जनतंत्र में स्वस्थ मूल्यों को बनाये रखने के साथ उसमें सभी मतदाताओं की सहभागिता को सुनिश्चित करना ज़रूरी है। इसके लिये आरईवीएम के इस्तेमाल का प्रस्ताव सैद्धांतिक तौर पर एक सराहनीय एवं जागरूक लोकतंत्र की निशानी है क्योंकि आज़ादी के बाद से ही जितने भी चुनाव हुए हैं, उनमें लगभग आधे मतदाता अपने मत का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, ऐसा हर चुनाव में होता आया है। इसलिए लम्बे समय से मांग उठती रही थी कि ऐसे लोगों के लिए मतदान का कोई व्यावहारिक एवं तकनीकी उपाय निकाला जाना चाहिए। उसी के मद्देनज़र निर्वाचन आयोग के द्वारा घरेलू प्रवासियों के लिए आरईवीएम का प्रस्ताव एक सूझ-बूझ भरा एवं दूरगामी सोच एवं विवेक से जुड़ा उपक्रम है। ज़रूरत है राजनीतिक दल ऐसे अभिनव उपक्रम का विरोध करने या अवरोध खड़ा करने की बजाय उसकी अच्छाइयों को स्वीकार करते हुए स्वागत करें। 
सब ने देखा है ईवीएम कितनी उपयोगी साबित हुई है, फिर भी इसको लेकर भ्रम बने हुए हैं और हर चुनाव के बाद कुछ आवाज़ें मतदान में हुई गड़बड़ को लेकर उठती रहती हैं, उसमें स्वाभाविक ही आरईवीएम भी संदेह से परे नहीं होगी। जब मतदाता पहचान-पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रस्ताव आया, तब भी इसी शंका के चलते सवाल उठे थे कि कोई भी बाहरी व्यक्ति चुनावों में गड़बड़ कर सकता है। इसलिए आरईवीएम को पूरी तरह विश्वसनीय बनाना होगा। सबसे बड़ा विरोध कांग्रेस की ओर से इसके भरोसेमंद एवं निष्पक्ष होने को लेकर है। ज़ाहिर है, कांग्रेस के साथ-साथ दूसरे दलों की तरफ  से भी ऐसे एतराज़ उठाए जाने की संभावना है। मगर यह प्रस्ताव अगर किन्हीं वजहों से व्यावहारिक रूप नहीं ले पाता, तो ऐसे करोड़ों लोग मताधिकार फिर वंचित रह जाएंगे। तमाम अपीलों और जागरूकता अभियानों के बावजूद हर चुनाव में कई निर्वाचन क्षेत्रों में पचास प्रतिशत से भी कम मतदान हो पाता है। इस तरह जन प्रतिनिधित्व का मकसद ही अधूरा रह जाता है। रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरईवीएम) के लिये चुनाव आयोग की प्रभावी भूमिका प्रशंसनीय है। चुनाव सुधार की प्रक्रिया निरन्तर जारी रहनी चाहिए, इसी से शत-प्रतिशत मतदान के लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा।