अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा चीन

 

धूर्तता और धोखेबाजी में सबसे आगे रहने वाला चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। भारतीय और चीनी सैनिकों की अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास एक जगह पर 9 दिसम्बर को झड़प हुई थी, जिसमें दोनों तरफ  के कुछ जवान मामूली रूप से घायल हो गए। यह झड़प ऐसे वक्त पर हुई है, जब पूर्वी लद्दाख में दोनों पक्षों के बीच 30 महीने से अधिक समय से सीमा गतिरोध जारी है।
चीनी सैनिकों ने ईस्टर्न सेक्टर में अरुणाचल के तवांग में घुसने की कोशिश की थी, लेकिन वे इसमें कामयाब नहीं हो पाए। ऐसे में तवांग के बारे में जान लेते हैं कि चीन को उसमें इतनी दिलचस्पी क्यों है? दरअसल ऐसा कहा जाता है कि तवांग चीन की वो दुखती रग है जो उसे हमेशा परेशान करती रहती है। यांग्त्से तवांग का वह हिस्सा है जो 17,000 फीट की ऊंचाई पर है और चीन की 1962 युद्ध से ही इस पर नज़र है। सेना के सूत्रों के अनुसार पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) हमेशा से ही यांग्त्से को निशाने पर लेना चाहती है। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि पूरे तवांग या फिर यांग्त्से से चीन को क्या चाहिए, आखिर वहां ऐसा क्या है? तवांग पर चीन की महत्वाकांक्षा को समझने के लिए ब्रिटिश शासन काल की तरफ  जाना होगा। जब तक भारत पर अंग्रेज़ों का राज था, चीन मैकमोहन रेखा को लेकर एकदम खामोश था, लेकिन जैसे ही सन् 1947 में यह शासन खत्म हुआ, चीन बेचैन हो गया। उसकी नज़र अरुणाचल प्रदेश पर जा टिकी जिसे वह दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है। इतिहास में ऐसी कोई घटना या किस्सा नहीं है जो यह साबित कर सके कि अरुणाचल प्रदेश तिब्बत या फिर चीन का हिस्सा है। चीन हमेशा से अपने और भारत के बीच अरुणाचल प्रदेश को तनाव का मसला बनाता आया है। सन् 1952 में जब बांडुंग सम्मेलन हुआ तो पंचशील सिद्धांतों पर चीन राज़ी हुआ था लेकिन सन् 1961 से ही चीन अरुणाचल प्रदेश पर आक्रामक बना हुआ है।
अब बात करते हैं यांगत्से की, यह जगह तवांग से 35 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व दिशा में हैं। पिछले साल नवम्बर में भी यहीं पर चीनी सैनिकों के साथ झड़प होने की खबरें आई थीं। यांगत्से मार्च के महीने तक बर्फ  से ढंका रहता है। यह जगह भारतीय सेना के लिए रणनीतिक अहमियत रखती है। सूत्रों के मुताबिक भारत और चीन के तीन से साढ़े तीन हज़ार सैनिक इस इलाके के आस-पास तैनात रहते हैं। साथ ही ड्रोन से भी इस पर नज़र रखी जाती है। दोनों तरफ  से सड़क का अच्छा-खासा नेटवर्क है और वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब सैनिक गश्त करते रहते हैं। यांगत्से वह जगह है, जहां से चीन पूरे तिब्बत पर नज़र रख सकता है। साथ ही उसे एलएसी की जासूसी करने का भी मौका मिल जाएगा। 
सन् 1962 में भारत और चीन के बीच जंग हुई और इस जंग में चीन ने तवांग को हासिल करने के लिए पूरी कोशिशें की। तवांग का युद्ध आज भी रोंगटे खड़े करने वाला है। कहते हैं कि उस लड़ाई में भारत के 800 जवान शहीद हुए और 1000 जवानों को चीन ने बंदी बना लिया था। चीन सीमा के करीब पिछले एक दशक से कई तरह के निर्माण कार्य कर रहा है। हाइवे से लेकर मिलिट्री पोस्ट्स, हैलीपैड्स और मिसाइल लॉन्चिंग साइट्स तक उसने तैयार कर ली हैं। ये सब कुछ तवांग के करीब ही है। 
 केंद्र सरकार चीन के मंसूबों को स्थायी तौर पर काउंटर करने के लिए पूर्वोत्तर में 40 हजार करोड़ रुपये की लागत से फ्रंटियर हाईवे बनाने जा रही है। करीब 2 हज़ार किलोमीटर लम्बा यह हाईवे अरुणाचल प्रदेश की लाइफ लाइन और चीन के सामने भारत की स्थायी ग्राउंड पोज़िशन लाइन भी साबित करेगा।  अंग्रेज़ों के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन ने इसे सीमा के तौर पर पेश किया था और भारत इसे ही असली सीमा मानता है जबकि चीन खारिज करता रहा है। इस हाइवे का निर्माण सीमा सड़क संगठन और नेशनल हाईवे अथॉरिटी मिलकर करेंगे। सेना लॉजिस्टिक सपोर्ट देगी। फ्रंटियर हाईवे तवांग के बाद ईस्ट कामेंग, वेस्ट सियांग, देसाली, दोंग और हवाई के बाद म्यांमार तक जाएगा। 
विपक्ष ने लोकसभा में इस घटना पर चर्चा करने की मांग तक कर दी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि देश की सुरक्षा पर सभी एकजुट हैं, लेकिन सरकार को ईमानदार होना चाहिए। संसद में चर्चा कराकर देश को मोदी सरकार द्वारा भरोसे में लेना चाहिए। कांग्रेस ने कहा कि सरकार ढुलमुल रवैया छोड़कर सख्त लहजे में चीन को समझाए कि उसकी ऐसी हरकत बर्दाश्त नहीं की जाएगी। विपक्ष की मांग पर रक्षा, मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में बताया कि भारतीय सेना ने चीन का बहादुरी से जवाब दिया। भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को उनकी पोस्ट पर वापस भेजा दिया। इतना ही नहीं भारतीय सेना के कमांडर ने चीनी पक्ष के साथ इस मुद्दे पर फ्लैग मीटिंग की और चीनी पक्ष को ऐसी कार्रवाई न करने के लिए कहा गया है।   -मो. 92212-32130