तेलंगाना के मुख्यमंत्री द्वारा फिर तीसरा मोर्चा बनाने हेतु प्रयास

 

तीसरा मोर्चा बनाने को लेकर राजनीतिक हलचल एक बार फिर तेज़ हो गई है। इससे पहले भी तीसरा मोर्चा बनाने की बात बार-बार होती रही है, परन्तु इस बार एक महत्त्वपूर्ण बदलाव यह है कि खंमम में हुए एक जनसभा में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव तीन साथियों तथा पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित तीन क्षेत्रीय पार्टियों के शिखर के राजनीतिज्ञों को अपने साथ एक साझे मंच पर लाने में सफल रहे हैं। 
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष तथा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, सी.पी.आई. के राष्ट्रीय सचिव डी. राजा तथा केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ेएक व्यापक स्तर पर हुए समारोह में दर्शकों के समक्ष एकजुट दिखाई दिए। के.सी.आर. रणनीतिक तौर पर क्षेत्रीय पार्टियों के ़गैर-कांग्रेसी तथा ़गैर-भाजपा गठबंधन बनाने के लिए काम कर रहे हैं। इससे पूर्व वह शिव सेना, डी.एम.के., आर.जे.डी., जे.एम.एम., जे.डी. (एस.) तथा डी. राजा सहित अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ लगातार कई बैठकें कर चुके हैं, परन्तु अब तक भाजपा तथा कांग्रेस दोनों के विकल्प के रूप में एक मोर्चा बनाने पर कोई आम सहमति या निर्णायक संकेत नहीं मिल सका।
चिराग पासवान भाजपा के साथ कर सकते हैं गठबंधन
अनुमान लगाये जा रहे हैं कि भाजपा, विकासशील इन्सान पार्टी (वी.आई.पी.) के प्रमुख मुकेश साहनी के साथ-साथ लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के नेता चिराग पासवान के साथ 2024 के लोकसभा चुनावों से पूर्व गठबंधन कर सकती है। चर्चा यह भी है कि एल.जे.पी. के भाजपा के साथ गठबंधन की घोषणा से पहले केन्द्रीय मंत्री तथा राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आर.एल.जे.पी.) के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस अपने भतीजे चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के साथ पार्टी के विलय हेतु आगे बढ़ेंगे। आर.एल.जे.पी. के लोकसभा में बिहार से पांच सदस्य हैं। बिहार में 2019 के लोकसभा चुनावों में उस समय की एल.जे.पी. ने छ: सीटों पर जीत हासिल की थी। परन्तु एल.जे.पी. टूटने के बाद पांच सांसद पारस के नेतृत्व वाली आर.एल.जे.पी. के साथ चले गये, जबकि राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान एल.जे.पी. (राम विलास) के एकमात्र सांसद बने रहे।
कुशवाहा जे.डी. (यू.) छोड़ भाजपा में हो सकते हैं शामिल
बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा तेजस्वी यादव के अलावा किसी अन्य को उप-मुख्यमंत्री नियुक्त करने की सम्भावना से स्पष्ट इन्कार करने के बाद यह अ़फवाह फैल रही है कि उपेन्द्र कुशवाहा जे.डी. (यू.) को छोड़ कर भाजपा में शामिल हो सकते हैं। 1985 में राजनीतिक करियर शुरू करने वाले कुशवाहा पिछले 15 वर्ष में सात बार दल बदल चुके हैं। कुशवाहा मोदी सरकार में केन्द्रीय मंत्री रह चुके हैं तथा दो बार अपनी पार्टी भी बना चुके हैं। कुशवाहा तथा नितीश की जोड़ी को बिहार में लव-कुश की जोड़ी कहा जाता है। इस दौरान कुशवाहा ने यह भी कहा कि आर.जे.डी. प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में केन्द्र से राहत के बदले भाजपा की सहायता करने की साजिश के तहत आर.जे.डी. ने राम चरित मानस पर विवाद पैदा किया था। दूसरी तरफ सुशील कुमार मोदी ने कुशवाहा का बचाव करते हुए कहा कि जे.डी. (यू.) का तो कोई भविष्य नहीं है।
अमित चावड़ा सी.एल.पी. नेता नियुक्त
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुजरात प्रदेश कांग्रेस  समिति (जी.पी.सी.सी.) के पूर्व अध्यक्ष तथा अंकलव चुनाव क्षेत्र से विधायक अमित चावड़ा को पश्चिमी राज्य में कांग्रेस विधायक दल का नेता नियुक्त किया। दानिलिमदा से विधायक शैलेश परमार उप-नेता होंगे। चावड़ा ओ.बी.सी. समुदाय से हैं तथा परमार दलित हैं। इस ताज़ा घटनाक्रम के साथ पार्टी ने संकेत दिया है कि बहुत जल्द प्रदेश संगठन में सत्ता परिवर्तन होगा। ऐसी सम्भावना है कि पार्टी आदिवासी समुदाय से जे.पी.सी.सी. अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है।
 ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ बनाने की मांग
त्रिपुरा में सी.पी.आई. (एम.) तथा कांग्रेस का गठबंधन भाजपा का मुकाबला करने के लिए काम कर रहा है। सी.पी.आई. (एम.) तथा कांग्रेस में सीटों के विभाजन हेतु समझौते को लेकर पहले से ही चर्चा चल रही है। इस दौरान तृणमूल कांग्रेस ने घोषणा की कि वह प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ेगी। इस माह के अंत में टी.एम.सी. प्रमुख ममता बनर्जी प्रदेश में पार्टी के चुनाव अभियान का आगाज़ कर सकती हैं।
 दूसरी तरफ त्रिपुरा शाही परिवार के वंशज तथा पूर्व कांग्रेस नेता प्रद्युत किशोर माणिक्य देबबर्मा के नेतृत्व वाली नव नियुक्त आदिवासी पार्टी टिपरा मोथा, जिसने अपने गठन के कुछ माह के भीतर ही केवल अपने दम पर ही ज़िला परिषद् चुनावों में जीत हासिल की थी, द्वारा विधानसभा चुनावों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि देबबर्मा ने कहा कि वह किसी भी राजनीतिक पार्टी के साथ तब तक चुनावी गठबंधन नहीं करेंगे, जब तक कि उनकी पार्टी को एक अलग प्रदेश ‘ग्रेटर त्रिपालैंड’ बनाने का लिखित आश्वासन नहीं दिया जाता। उसने पहले घोषणा की थी कि वह आगामी चुनावों में 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
 (आई.पी.आई.)