छलकते आंसुओं के साथ सानिया मिज़र्ा ने टैनिस को कहा अलविदा

 

इमरान मिर्जा अपनी परिचित भूमिका में थे। वह स्टैंड्स से अपनी विख्यात बेटी सानिया मिर्जा और उनके मिश्रित युगल पार्टनर रोहन बोपन्ना को 2023 ऑस्ट्रेलियन ओपन के फाइनल में खेलता हुआ देख रहे थे, जिसमें यह जोड़ी रनर-अप रही। सानिया आखिरी बार ग्रैंडस्लैम खेल रही थीं। वह इस साल फरवरी में दुबई ओपन के बाद प्रोफेशनल टेनिस को हमेशा के लिए अलविदा कह देंगी। फिर जब मैच के बाद कमेंट्स देते हुए 36-वर्षीय सानिया की आंखों में आंसू छलक आये तो उसका एहसास मिर्जा परिवार के मूड में भी प्रतिविम्बित हुआ, चूंकि वह उस कुर्बानी को जानता था जो सानिया ने भारत की सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ महिला टेनिस चैंपियन बनने के लिए दी।  सानिया के लम्बे प्रभावी कॅरियर में इमरान मिर्जा के लिए सबसे शानदार पल 2015 विंबलडन जीत थी और उसके बाद जब 91 सप्ताह तक सानिया विश्व की नंबर एक खिलाड़ी रहीं। 
इस गिफ्टेड युवा टैलेंट के चैंपियन बनने की कहानी 2005 में आरंभ हुई, जब सानिया ने डब्ल्यू.टी.ए. हैदराबाद ओपन का महिला एकल खिताब जीता था। इमरान मिर्जा के लिए अपनी बेटी द्वारा भारत के लिए जीते 14 पदक भी यादगार हैं- आठ एशियाड में, चार अफ्रो-एशियन गेम्स में और दो राष्ट्रकुल खेलों में।  बहरहाल, यह दुखद रहा कि 2007 में महिला एकल की 27वीं विश्व रैंकिंग प्राप्त करने के बाद कलाई की चोट ने सानिया को 2008 में एक वर्ष के लिए टेनिस सर्किट से बाहर रखा। कई खिलाड़ियों के लिए तो यह उनके कॅरियर का अंत होता, लेकिन सानिया ने हमेशा की तरह साबित किया कि वह फाइटर हैं, जो वह अपने आखिरी ग्रैंडस्लैम तक रहीं कि पूरा टूर्नामैंट टांगों को स्ट्रैप करके खेलीं। इमरान मिर्जा के अनुसार, ग्रैंडस्लैम चैंपियंस मार्टिना हिंगिस (दो बार), स्वेतलाना कुजनेत्सोवा व विक्टोरिया अजारेंका और दिनारा सफीना (उनके विश्व नंबर 1 बनने से जरा पहले) को पराजित करना भी सानिया के कॅरियर की हाईलाइट रही। लेकिन अफसोस चोटों के कारण उन्हें अपनी एकल टेनिस यात्रा को बीच में ही छोड़ना पड़ा और युगल टेनिस पर फोकस करना पड़ा, जिसमें उन्होंने तीन महिला युगल ग्रैंडस्लैम हिंगिस के साथ जीते (2015 विंबलडन, 2015 यू.एस. ओपन व 2016 ऑस्टेऊलियन ओपन)। एक समय ऐसा भी था, जब सानिया-हिंगिस की जोड़ी ने डब्ल्यू.टी.ए. सर्किट पर महिला युगल के लगातार दस खिताब जीते थे। इसके अतिरिक्त सानिया ने मिश्रित युगल के तीन ग्रैंडस्लैम भी जीते, दो महेश भूपति के साथ (2009 ऑस्टेऊलियन ओपन व 2012 फ्रेंच ओपन) और एक ब्रूनो सोअरेस के साथ (2014 यूएस ओपन)। सानिया छह ग्रैंडस्लैम व कॅरियर स्लैम (यानी चारों ग्रैंडस्लैम) जीतने वाली एकमात्र भारतीय महिला खिलाड़ी हैं।
टेनिस कोर्ट पर सानिया ने कभी अधिक भावुकता प्रदर्शित नहीं की, लेकिन अपने अंतिम ग्रैंडस्लैम मैच के बाद कमेंट्स देते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गये जब उन्होंने कहा, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ग्रैंडस्लैम का फाइनल अपने बेटे के सामने खेलूंगी। अगर मैं रो रही हूं तो यह खुशी के आंसू हैं। मेरे बेटे को अब मेरी जरूरत पहले से कहीं अधिक है। अब मैं उसके साथ थोड़ा शांत जीवन गुजार सकूंगी और उसे अधिक समय दे पाऊंगी जो मैं अपने व्यस्त कॅरियर के कारण नहीं दे पा रही थी।’ वैसे मिर्जा परिवार की जीवनशैली भी अब पहले जैसी नहीं रहेगी; क्योंकि पिछले तीन दशक तक तो वह सानिया के दैनिक टेनिस शेड्यूल को देखने में ही व्यस्त था।
सानिया का व्यक्तित्व उनके फोरहैंड जितना ही प्रभावी रहा है। टेनिस का अपने व्यक्तित्व पर प्रभाव के बारे में वह बताती हैं, ‘टेनिस ने मुझे फाइटर बनाया। इसने मुझे विश्वास दिलाया कि अगर आप खुद को अच्छा अवसर दो तो हर चीज संभव है। खेल यही करता है, इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप किस स्तर पर खेलते हैं और आपको नंबर 1 होने की भी जरूरत नहीं है। अगर आप स्पोर्ट्स खेलते हैं, तो आप जानते हैं कि अच्छा प्रदर्शन करने पर हारने के बावजूद आप हमेशा अगले दिन वापसी कर सकते हैं। यही जीवन में भी है कि आप हारते हैं, संघर्ष करते हैं और फिर जीतते भी हैं।’ सानिया के फाइटर गुण तो उनके कॅरियर के आरंभ में ही प्रदर्शित हो गये थे, जब उनकी टेनिस ड्रेस पर धार्मिक कट्टरपंथियों ने उन्हें घेरने का प्रयास किया था और तब मुंहतोड़ जवाब देते हुए उन्होंने कहा था कि उनकी स्कर्ट छह इंच की होगी या छह फीट की, यह उनकी खुद की मर्जी पर निर्भर है, दूसरों का इसमें कोई दखल नहीं। इसी प्रकार पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से शादी करने के बाद, अनेक दबावों के बावजूद, उन्होंने न तो अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ी और न ही अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करना। 
सवाल यह है कि क्या सानिया अपने समय से पहले अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आयीं? इस बारे में वह बताती हैं, ‘अल्लाह की टाइमिंग परफेक्ट होती है। आपको दुनिया में किसी कारण से भेजा जाता है। मैं 16 वर्ष की आयु में ही पब्लिक व मीडिया की नज़र में आ गई थी। मैं यहां बदलाव के लिए थी, महिला खिलाड़ियों की सोच में परिवर्तन लाने के लिए कि वह खुद में विश्वास करें, अपनी राय रखें, उस पर कायम रहें, जो भी सामने आये उसका मुकाबला करें। 
 -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर