और दोस्ती टूट गयी

बात बहुत पुरानी है। किसी जंगल में एक बंदर और खरगोश में काफी गहरी दोस्ती थी। जंगल के जानवर उनकी दोस्ती की मिसाल दिया करते थे। दोनों एक-दूसरे के सुख-दुख में सदा साथ रहते थे। बंदर रोज़ मीठे-मीठे फल पेड़ से तोड़कर खरगोश को खिलाता। उसी जंगल में रहने वाली एक बकरी को उनकी अटूट दोस्ती देखकर जलन होती थी। वह उनकी दोस्ती को तोड़ने के लिए कई बार प्रयास की, लेकिन हर बार उसका प्रयास विफल हो जाता। बकरी भी कहां हार मानने वाली थी? वह उनकी दोस्ती तोड़ने के लिए रोज़ कोई न कोई योजना बनाती। एक दिन बकरी ने बंदर से कहा- 'भाई! तुहारी दोस्ती तो अटूट है और जंगल के सारे प्राणी तुहारी दोस्ती की मिसाल दिया करते हैं। किंतु इतनी गहरी दोस्ती के बावजूद केवल तुम ही कितने मेहनत से फल तोड़कर खरगोश को खिलाते हो। खरगोश ने कभी तुहें अपने घर पर भोजन करने के लिए बुलाया है। यह कैसी दोस्ती है! यह बात आज तक मेरी समझ में नहीं आयी।' बंदर बकरी की बात सुनकर सोचने लगा- 'यह बकरी ठीक कह रही है। हर दिन तो मैं ही मीठे-मीठे फल पेड़ से तोड़कर खरगोश को खिलाता हूं। उसने कभी मुझे अपने घर पर भोजन के लिए नहीं बुलाया है। उसका भी तो फर्ज बनता है कि वह मुझे भोजन कराये।' फिर उसने बकरी से कहा- 'बहन! तुमने आज मेरी आंखें खोल दी। मैं तो रोज़ ही उसे फल खिलाता हूं, लेकिन उसने कभी मुझे भोजन के लिए नहीं बुलाया। सचमुच यह कैसी अटूट दोस्ती है!' और बकरी की इस अटूट दोस्ती में दरार डालने की योजना सफल हो गयी। अगले ही दिन बंदर खरगोश से बोला - 'भाई! मैं तो रोज़ तुहें मीठे-मीठे फल पेड़ से तोड़कर खिलाता हूं, लेकिन तुमने कभी मुझे अपने घर पर भोजन के लिए नहीं बुलाया।' खरगोश बोला- 'यह कौन-सी बड़ी बात है, भाई! तुम कल ही मेरे घर पर भोजन करने को आ जाना। मेरे घर में तुहारा स्वागत है।' बंदर प्रसन्न मन खरगोश के घर भोजन करने गया। खरगोश बंदर का स्वागत करते हुए बोला- 'भाई! मैं भोजन परोसता हूं, तब तक तुम नदी पर जाकर अपना हाथ धो आओ।' बंदर हाथ धोने नदी की ओर चल पड़ा। जैसे ही वह नदी में हाथ धो वापस जाने लगा, वैसे ही उसका हाथ जमीन पर पड़ गया और फिर हाथ गंदा हो गया। उसने कई बार हाथ धोया, लेकिन हर बार हाथ जमीन पर पड़ जाता और उसका हाथ गंदा हो जाता। इस बार उसने निश्चय कर लिया कि हाथ को जमीन पर पड़ने नहीं देगा। वह दो पैरों से चलने का अयस्त तो था नहीं, इसलिए वह शीघ्र ही थक गया और अपना हाथ जमीन पर टिका दिया। इस बार फिर उसका हाथ गंदा हो गया। उसने कई बार हाथ धोकर दो पैरों से चलने का प्रयास किया, लेकिन वह दो पैरों से चलने में सफल न हो सका। अंत में थक- हारकर अपना गंदा हाथ लिए खरगोश के पास आया और बोला- 'भाई! मैंने कई बार हाथ धोने का प्रयास किया, लेकिन हर बार मेरा हाथ  जमीन पर पड़ जाता और गंदा हो जाता। अंततः मैं हाथ धोने में असमर्थ हूं।' खरगोश मुस्कुराकर बोला- 'भाई! जब तक तुम हाथ धोकर नहीं आओगे। मैं तुहें भोजन नहीं दूंगा।' बंदर अपनी मजबूरी बता बिना भोजन किये वहां से चला गया। अगले दिन खरगोश अपने निश्चित समय पर फल खाने पेड़ के पास गया, तो बंदर मुस्कुराकर बोला- 'भाई खरगोश! मैंने तुहारे लिए बहुत सारे मीठे फल तोड़ पेड़ पर रख दिये हैं। पेड़ पर चढ़कर खा लो।' वही पास खड़ी बकरी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी, योंकि उसकी अटूट दोस्ती तोड़ने की योजना जो सफल हो गयी। इस प्रकार उसी दिन से बंदर और खरगोश की अटूट दोस्ती सदा के लिए टूट गयी॥ -मो. -क्फ्भ्क्ब्-क्