कटघरे में सरकार


कुछ समय पहले गुजरात में 2002 में गोधरा की घटना के बाद फैले दंगों के भयानक घटनाक्रम संबंधी बी.बी.सी. (ब्रिटिश ब्रोडकॉस्ंिटग कार्पोरेशन) द्वारा दो भागों में दिखाई गई डाकूमैंट्री की चर्चा थी। सरकार द्वारा कई पक्षों से इसकी सख्त आलोचना की गई थी तथा दो दशकों के बाद इसको दिखाये जाने पर कई तरह के संदिग्ध सवाल भी उठाये थे। इसके अलावा यह भी कहा गया था कि यह चैनल अंग्रेजों के भारत पर शासन काल की साम्राज्यवादी मानसिकता का प्रगटावा कर रहा है। यह भी कि इससे अलग-अलग भाईचारों में ऩफरत पैदा होगी। इन बातों को आधार बनाकर सरकार द्वारा इस दस्तावेज़ी फिल्म पर पाबंदी लगा दी गई थी, लेकिन इसके बावजूद किसी न किसी तरह इसकी चर्चा बनी रही थी। अधिकतर विरोधी पार्टियां और संगठन भी एक स्वर होकर इस मामले पर सरकार के विरुद्ध आ खड़े हुए थे। अभी यह सारा घटनाक्रम चल ही रहा था कि बी.बी.सी. के दिल्ली और मुम्बई कार्यालयों पर आयकर विभाग की टीमों ने सर्वे करने की आड़ में छापे मारने शुरू कर दिये। इसको सीधे रूप में डाकूमैंट्री पर सरकार की प्रतिक्रिया कहा जाएगा। इन छापों के जारी रहने ने एक तरह से सरकार की बदले की भावना को उजागर किया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर पिछले लम्बे समय से ये आरोप लगते रहे हैं कि वह अपने किसी भी तरह के विरोधियों को दबाने के लिए केन्द्रीय एजेंसियों का प्रयोग करती है। उसकी बाजू मरोड़ने वाली यह नीति लगातार जारी रही है। हम समझते हैं कि अब इस अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि वाले चैनल पर ऐसी कार्रवाई से सरकार ने अपनी छवि को और भी धूमिल ही किया है और इस संबंध में विवादों को और भी गर्मा दिया है। अब तक इस कार्रवाई के बारे में जो प्रकिक्रियाएं  सामने आई हैं, उनमें विरोधियों का पलड़ा अधिक  भारी दिखाई देता है। एक ओर प्रधानमंत्री विश्व भर के अपने दौरों में यह खुले तौर पर दावा करते हैं कि भारत आज विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इसके साथ ही वह अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर दूसरे देशों के प्रमुखों के साथ बड़े गर्व के साथ खड़े दिखाई देते हैं। विश्व भर के देशों के साथ व्यापार के अतिरिक्त अन्य प्रत्येक तरह का सहयोग बढ़ाने की बात करते हैं परन्तु दूसरी ओर एक अंतर्राष्ट्रीय चैनल के साथ ऐसे व्यवहार ने जहां उनकी छवि को कम किया है, वहीं इस कारण बहुत-सी बड़ी विपक्षी पार्टियों को सरकार के खिलाफ एकजुट होकर आलोचना करने का अवसर मिला है। भारत अब जी-20 देशों की कांफ्रैंस की पूरा वर्ष मेहमान-नवाज़ी करने वाला है, जिसमें उसे ऐसी कर्रावाइयों के प्रति किसी न किसी प्रकार स्पष्टीकरण भी देना पड़ सकता है। बहुत-सी विपक्षी पार्टियां तो पहले ही श्री मोदी तथा भाजपा के उभार से हैरान तथा परेशान दिखाई दे रही हैं, जिन्हें अब इस मामले पर सरकार के खिलाफ बोलने का अवसर मिल जाएगा। पहले ही कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियां, तृणमूल कांग्रेस तथा दर्जन भर पार्टियां इस मामले पर एकजुट हो गई हैं। 
उन्होंने सरकार की ऐसी कार्रवाइयों को संवैधानिक लोकतंत्र के विरुद्ध करार दिया है और यह चेतावनी भी दी है कि सरकार द्वारा की जा रही ये कार्रवाइयां आखिर लोकराज को समाप्त कर देंगी और तानाशाही रुचियों तथा क्रिया-कलापों को जन्म देंगी। इसके साथ ही एडिटर्स गिल्ड सहित पत्रकार भाईचारे ने भी बड़ी संख्या में सरकार की इस मामले पर कड़ी आलोचना की है और इसे प्रैस की आज़ादी पर हमला करार दिया है। आज चाहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा उनकी पार्टी को लोगों द्वारा भारी समर्थन मिल रहा है परन्तु इस समर्थन में सकारात्मक अमल ही सामने आने चाहिएं। इसमें ही सरकार का बड़प्पन समझा जाएगा तथा ऐसे अमल ही सही अर्थों में देश को प्रत्येक पक्ष से विकास के मार्ग पर चलाने में सहायक हो सकते हैं। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द