रेपो रेट में वृद्धि से आम कज़र्दारों पर बढ़ा बोझ 

 

नियमों के मुताबिक भारतीय रिज़र्व बैंक को साल में चार बार मौद्रिक समीक्षा करनी होती है, लेकिन आम तौर पर हर समीक्षा बैठक किसी कार्रवाई के लिए ही नहीं होती। मगर पिछले नौ महीनों में रिज़र्व बैंक ने न सिर्फ  छह बार मौद्रिक समीक्षा बैठक की बल्कि हर बार की समीक्षा बैठक में रेपो रेट बढ़ाने का कड़ा निर्णय लिया। इससे नौ महीने पहले जो रेपो रेट 4.40 फीसदी था, वह बढ़कर 6.50 फीसदी हो गया। रेपो रेट वह ब्याज दर होती है जिस दर पर भारतीय रिज़र्व बैंक अन्य बैंकों को कज़र् देता है। इसके बाद बैंक इस दर में 2 फीसदी से लेकर 2.25 फीसदी अतिरिक्त दर जोड़कर आम लोगों को कज़र् देता है। कहने का मतलब यह कि रिज़र्व बैंक के रेपो रेट बढ़ाने की सीधे-सीधे मार उन आम कज़र्दारों पर पड़ती है, जो हर महीने कज़र् की किस्त चुकाते हैं।  
रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास पिछले नौ महीनों में छह बार रेपो रेट बढ़ाये जाने की एक ही वजह बताते हैं कि इससे मुद्रास्फीति काबू में रहेगी। दूसरे शब्दों में महंगाई रोकने के लिए वह इस कवायद को जायज़ ठहराते हैं। लेकिन उन्हें शायद इस बात का एहसास नहीं है कि महंगाई भले रूके न रूके लेकिन नौ महीनों में छह बार बढ़ी कज़र् की किस्तों ने लाखों नहीं करोड़ों कज़र्दारों को ज़मीन पर ला पटका है। साल 2021 में जब कोरोना महामारी के कारण करीब 23 फीसदी से ज्यादा लोग बेरोज़गार हो गये थे और करीब 65 से 70 फीसदी लोगों की नियमित आय 5 फीसदी से लेकर 30 फीसदी तक घट गई थी, उस दौरान यानी फरवरी 2021 में 32.76 फीसदी लोग समय पर अपनी मासिक किस्त देने में विफल रहे थे। उस समय देश में 9 करोड़ 24 लाख लोग होम लोन, कार लोन या पर्सनल लोन की कोई न कोई किस्त दे रहे थे। इनमें से 3 करोड़ 15 लाख लोग समय पर अपनी मासिक किस्त देने में असफल रहे थे। 
उसी साल जून में यह स्थिति तब चरम पर पहुंच गई थी, जब हर महीने कोई न कोई किस्त देने वाले करीब 45 फीसदी लोग समय पर अपनी किस्त देने में विफल रहे थे। निश्चित रूप से कोरोना महामारी के विदा होने के बाद लोगों की आय में पहले से कुछ सुधार हुआ है, बेरोज़गारी की दर भी कुछ घटी है। लेकिन यह तो नहीं कह सकते कि हम अब उसी स्थिति में आ गए हैं, जिस स्थिति में कोरोना के पहले थे। फिर भी 2020-21 और 2022 के शुरुआती दिनों के मुकाबले अब स्थिति बेहतर है। लेकिन अब भी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 3 करोड़ लोग और गैर-सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 10 करोड़ लोग बेरोज़गार हैं। अभी भी 3 से 5 फीसदी ऐसे लोग हैं, जिनकी नौकरी कोरोना महामारी के दौरान छूट गई थी और अभी तक  हासिल नहीं हुई, लेकिन रिज़र्व बैंक बार-बार ऐसे मध्यवर्ग के बोझ को कुछ और बढ़ाकर उसके धैर्य की परीक्षा ले रहा है, जो अपने संकटों के बोझ से भरभराकर ढह जाने की कगार पर खड़ा है। 
9 अक्तूबर, 2020 में रेपो रेट 4 फीसदी था, उस समय बैंक अपने ग्राहकों को जो लोन दे रहे थे, वे 6.50 से 7.25 फीसदी की ब्याज दर में दे रहे थे। यह एक ऐसी दर थी, जिसमें बहुत सारे लोगों ने लोन लेने की हिम्मत जुटाई थी। इसका बैंकों को फायदा भी हुआ और कोरोना जैसी त्रासद स्थितियों के बीच भी कज़र् लेने वालों की संख्या में बहुत ज्यादा कमी नहीं आयी, लेकिन जब कुछ स्थिति बेहतर हुई तो मई 2022 में रिज़र्व बैंक ने 40 बेसिस प्वाइंट रेपो रेट बढ़ा दिया, जिसका मतलब यह था कि गृह ऋण से लेकर कार और निजी ऋण तक की सभी किस्तों में .4 फीसदी का इजाफा हो गया, जो कज़र्दारों के लिए 500 से लेकर करीब 4500 रुपये तक औसतन बढ़ गया। इस देश में ईएमआई करीब 9.5 से 11 करोड़ लोग देते हैं। जाहिर है ईएमआई की इतनी किस्तों के दायरे में करीब 50 करोड़ लोग आते हैं क्योंकि अगर किसी घर से एक ईएमआई भी जा रही है तो ज़रूरी नहीं है कि जिसके नाम से यह ईएमआई दी जाती हो, सिर्फ  वही तनाव में रहे। कई बार पूरा का पूरा घर मिलकर ईएमआई का इंतज़ाम करता है और न कर पाने पर पूरा घर तनाव में रहता है।
इस तरह देखें तो साल 2022 में मई से रिज़र्व बैंक ने ईएमआई भरने वालों को करीब 500 रुपये से 4500 रुपये तक की किस्तें बढ़ाकर जो बोझ डाला था, वह बोझ अब तक 3 से 4 गुना बढ़ गया है। ईएमआई देने वालों की तमाम चीख पुकार के बावजूद रिज़र्व बैंक और केंद्र सरकार इस पूरे मामले में संवेदनहीनता का परिचय दे रही है। मई 2022 के बाद मौद्रिक समीक्षा बैठक अगस्त 2022 में होनी चाहिए थी, लेकिन अगले ही महीने यानी जून 2022 में हो गई और फिर से रिज़र्व बैंक ने .50 प्रतिशत रेपो रेट बढ़ा दिया। जून में बैठक के बाद यह मानकर चला जा रहा था कि अब कम से कम चार महीने बाद समीक्षा बैठक होगी, लेकिन रिज़र्व बैंक ने फिर सभी अनुमानों को चकमा दिया और 5 अगस्त, 2022 को फिर से .50 प्रतिशत रेपो रेट बढ़ा दिया, अगले ही महीने सितम्बर 2022 में एक बार और हैरान करते हुए .50 प्रतिशत रेट बढ़ाया गया और दो महीने बाद दिसम्बर 2022 में .35 प्रतिशत तथा 8 फरवरी, 2023 को .25 प्रतिशत रेपो रेट बढ़ाया गया।
इस तरह मई 2022 से फरवरी 2023 यानी महज 9 महीने के भीतर रिजर्व बैंक ने 2.1 फीसदी रेपो रेट बढ़ा दिया। इससे हर ईएमआई देने वाले की किस्तों में हर महीने औसत सवा दो से अढ़ाई फीसदी तक की बढ़ोत्तरी हो गई। यह बोझ बढ़ाना नहीं बल्कि कहर ढाना है। बढ़ी हुई ईएमआई के चलते आज हर महीने करीब 2 लाख करोड़ रुपये कज़र्दारों से अतिरिक्त वसूले जा रहे हैं। शायद सरकार और रिज़र्व बैंक को यह अनुमान नहीं है कि कज़र्दारों पर यह कितना बड़ा बोझ है। पिछले साल मई से लेकर अब तक करीब 1 करोड़ लोग समय पर ईएमआई देने में विफल रहे। हालांकि फिर भी आम लोग किसी न किसी रूप में कैसी भी परिस्थितियों से जुगाड़ करके बैंक की किस्त दे देते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि बैंक बड़े लोगों के साथ भले लोन वसूल न कर पाने के बाद कज़र् को एनपीए में डाल दे, लेकिन छोटे और कमज़ोर कज़र्दारों को वे जितना प्रताड़ित कर सकते हैं, वे करते हैं। ऐसे में जितना जल्दी हो रिज़र्व बैंक को कज़र्दारों के प्रति सहानुभूति की नज़र से इस पर सोचना चाहिए। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर