कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में बनेगी आम चुनावों के लिए रणनीति

 

लगभग डेढ़ सौ दिनों तक की राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद देश में कांग्रेस के पक्ष में जो माहौल बना है, उससे पार्टी को पुन: मज़बूत कैसे बनाया जाए तथा आगामी आम चुनावों में पार्टी की रणनीति क्या हो,  इन दो बुनियादी सवालों का जवाब कांग्रेस रायपुर में 24 फरवरी से शुरू अपने 85वें राष्ट्रीय अधिवेशन में तलाशने की कोशिश करेगी। पहली बार छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हो रहा यह अधिवेशन तीन दिन यानी 26 फरवरी, 2023 तक चलेगा। कांग्रेस के मीडिया सेल के मुताबिक इसमें देशभर से आये 10,000 से ज्यादा नेता और कार्यकर्ता भाग ले रहे हैं।  राष्ट्रीय नेताओं के ठहरने का इंतजाम नवा रायपुर के एक रिसोर्ट में किया गया है जबकि करीब चार हज़ार से ज्यादा कार्यकर्ताओं और जिला अध्यक्षों के ठहरने के लिए नवा रायपुर के राज्योत्सव मेला मैदान में टेंट सिटी बसाई गयी है। बाकी नेताओं और पदाधिकारियों के ठहरने के लिए शहर के लगभग सभी होटलों को बुक किया गया है।
सम्मेलन के पहले दिन प्रतिनिधियों का रजिस्ट्रेशन हुआ और विभिन्न विषयों की कमेटियों ने इस दिन आपस में व्यापक विचार-विमर्श करके आगामी लोकसभा चुनावों के लिए अपने राष्ट्रीय नेतृत्व को अपनी अनुशंसा दी। जबकि सम्मेलन के दूसरे दिन पीसीसी और एआईसीसी प्रतिनिधियों का साझा सम्मेलन है और तीसरे दिन एक विशाल जनसभा होगी। यह जनसभा जोरा में कृषि विश्वविद्यालय के सामने होगी। कांग्रेस का यह राष्ट्रीय अधिवेशन सफल रहे, इसके लिए 13 उप-समितियों का गठन किया गया है, जो व्यवस्था के विभिन्न आयामों को सुव्यवस्थित और सुविचारित आयाम देंगी। सवाल है आखिर इस अधिवेशन से कांग्रेस या देश के लोकतंत्र को क्या हासिल होगा? अगर कांग्रेस के विभिन्न राष्ट्रीय नेताओं के इस सम्मेलन को लेकर व्यक्त किये गये विचारों को सुने तो उनका मानना है कि यह अधिवेशन सिर्फ कांग्रेस का अधिवेशन नहीं है और न ही यह कांग्रेस के भविष्य का लेकर विचार-विमर्श करेगा।
कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व के मुताबिक पार्टी का यह 85वां राष्ट्रीय अधिवेशन देश के लोकतांत्रिक भविष्य के लिए मील का पत्थर साबित होगा। कांग्रेस नेतृत्व मानता है कि इस समय देश की जनता बहुत हताश है और वह कई ज्वलंत विषयों पर कांग्रेस की राय और नीतियों की तरफ  उत्सुकता से देख रही है। कांग्रेस का नेतृत्व यह भी मानता है कि कृषि, रोज़गार और विदेश नीति जैसे विषयों पर इस सम्मेलन में जो प्रस्ताव पास होंगे, उनसे देश के लोकतांत्रिक भविष्य की स्पष्टता देखने को मिलेगी। कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि मौजूदा समय में देश के संवैधानिक भविष्य को लेकर कई तरह की चिंताएं पैदा हो गई हैं, कांग्रेस इन चिंताओं को दूर करेगी और देश को फिर से नवनिर्माण की दिशा में आगे बढ़ने के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व देगी।
 इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा न सिर्फ  उनके सियासी व्यक्तित्व के लिए मील का पत्थर साबित हुई है बल्कि कांग्रेस के बिगड़े स्वास्थ्य को भी किसी हद तक सुधारा है। गौरतलब है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा देश 14 राज्यों के 75 ज़िलों से होकर गुजरी थी और करीब 150 दिनों की इस यात्रा में राहुल गांधी135 दिनों तक हर दिन पैदल चले थे। सात सितम्बर, 2022 से शुरु हुई यह यात्रा वास्तव में 29 जनवरी, 2023 को औपचारिक रूप से समाप्त हुई थी, जब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में भावनात्मक भाषण दिया था। लेकिन इतने भर से देश की इस सबसे पुरानी पार्टी का पुर्नजन्म हो जाए, ऐसी उम्मीदें लगाना जल्दबाजी होगी। निश्चित रूप से यह अधिवेशन अगले आम चुनावों के लिए बचे महज 370 दिनों में सकारात्मक माहौल बनाने में मदद करेगा। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस को महज भावनात्मक प्रेरणा या ऊर्जा भर की ज़रूरत नहीं है, बल्कि पार्टी के स्तर पर इसके लिए कुछ ठोस रणनीतियों की ज़रूरत है।
इस बात को मानने से किसी को गुरेज़ नहीं होना चाहिए कि कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा बिल्कुल चरमरा गया है। यह किसी मरहम से स्वस्थ नहीं होने वाला। इसे एक जोखिमभरी सर्जरी की ज़रूरत है। अगर पार्टी नेतृत्व इस जोखिमभरी सर्जरी की हिम्मत करता है तो निश्चित रूप से संगठन के स्तर पर मरणासन हो चुकी कांग्रेस को नया जीवनदान मिल सकता है, उसके बिना इसमें जान फूंकना आसान नहीं है। 29 जनवरी, 2023 को नि:संदेह अपने भावुक भाषण से राहुल गांधी ने लाखों कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को ही नहीं बल्कि लोगों को भी द्रवित कर दिया था, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि राहुल गांधी द्वारा की गई यात्रा के बावजूद और उन्हें अलग-अलग मौकों पर समर्थन देने की बात करने के बावजूद इस यात्रा के समापन समारोह में देश की विपक्षी पार्टियों के महत्वपूर्ण नेता किसी भी तरह की एकजुटता दिखाने की कोशिशों तक से दूर रहे। लगभग दो दर्जन से ज्यादा महत्वपूर्ण विपक्षी नेताओं को इस अंतिम समारोह में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन इस आखिरी समारोह में न तो नितीश कुमार पहुंचे, न अखिलेश यादव पहुंचे, न ममता बनर्जी और न ही तेजस्वी यादव पहुंचे थे। महाराष्ट्र में इस यात्रा को भरपूर समर्थन देने के बावजूद उद्धव ठाकरे और शरद पावर भी इस यात्रा के उस आखिरी समारोह में एकजुटता दिखाने के लिए इकट्ठा नहीं हुए, जिसका सीधा मतलब सत्तारूढ़ गठबंधन को चुनौती देने की स्पष्ट कोशिश में गिना जाता।
यह अधिवेशन पार्टी को नई उम्मीदें देगा, लेकिन ये उम्मीदें साल 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के लिए सत्ता के रूप भुनाई जा सकेंगी, यह ज़रूरी नहीं है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने उनके व्यक्तित्व को प्रभावशाली और गंभीर बनाया है। कांग्रेस में भी इस यात्रा के बाद एकजुटता दिखी है। लेकिन यह एकजुटता अभी भी इतनी मज़बूत नहीं है कि इसके बल पर मौजूदा सत्तारूढ़ गठबंधन को हिलाया जा सके। इसलिए कांग्रेस को वाकई सत्ता पाने की वास्तविक दावेदार बनने के लिए न सिर्फ  हाईकमान के स्तर पर सख्त और त्वरित फैसले करने में अपनी कामयाबी ज़ाहिर करनी होगी बल्कि क्षेत्रीय पार्टियों के साथ अतीत की पृष्ठभूमि की बजाय वर्तमान की बराबरी के आधार पर रिश्ते तय करने होंगे। अगर इन बातों पर इस सम्मेलन में कोई सहमति बनती है तो वास्तव में यह अगले आम चुनावों से पहले एक महत्वपूर्ण रणनीतिक अधिवेशन साबित होगा। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर