दिलचस्प राजनीतिक मुकाबला


कर्नाटक विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही जालन्धर की रिक्त हुई लोकसभा सीट पर चुनाव करवाने के लिए तिथियों की भी घोषणा कर दी गई है। कभी राजनीति में परिपक्व व्यक्ति के रूप में जाने जाते मास्टर गुरबंता सिंह जो तत्कालीन कांग्रेस सरकारों में कैबिनेट मंत्री भी रहे थे, के पुत्र तथा वरिष्ठ कांग्रेसी नेता चौधरी संतोख सिंह इस सीट से लोकसभा सांसद थे। उनके बड़े भाई चौधरी जगजीत सिंह भी लम्बी अवधि तक प्रदेश की राजनीति में छाये रहे थे। इस तरह परम्परागत तौर पर यह परिवार विगत लम्बी अवधि से राजनीति के साथ जुड़ा रहा है। यह सिलसिला अभी भी जारी है।
चौधरी संतोख सिंह का ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान राहुल गांधी के साथ चलते समय इस वर्ष 14 जनवरी, 2023 को अचानक हृदयाघात से निधन हो गया था, जिस कारण यह सीट रिक्त हो गई थी। चाहे इस पर चुनाव की तिथियां अब घोषित की गई हैं परन्तु इससे पहले ही चौधरी परिवार की पृष्ठभूमि को देखते हुए कांग्रेस पार्टी द्वारा उनकी धर्मपत्नी करमजीत कौर के उम्मीदवार होने की घोषणा कर दी गई थी। अब तक चाहे अन्य पार्टियों द्वारा अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा तो नहीं की गई परन्तु चुनाव की सम्भावनाओं को देखते हुए ये सभी राजनीतिक पार्टियां विगत काफी समय से इस सीट हेतु सक्रिय दिखाई दे रही हैं। कांग्रेस के अलावा प्रदेश का प्रशासन चला रही आम आदमी पार्टी, सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल तथा बसपा गठबंधन एवं इस बार अकेले तौर पर उक्त सीट पर चुनाव लड़ने के लिए तत्पर भारतीय जनता पार्टी भी पूरी तरह से सक्रिय हुई दिखाई देती है। जालन्धर की इस लोकसभा सीट में 9 विधानसभा क्षेत्र पड़ते हैं। लगभग एक वर्ष पूर्व विधानसभा के हुए चुनावों में इन नौ क्षेत्रों में पहले स्थान पर कांग्रेस रही थी। दूसरे स्थान पर आम आदमी पार्टी रही थी। तीसरे स्थान पर शिरोमणि अकाली दल-बसपा आई थीं तथा भारतीय जनता पार्टी को क्रमवार वोटों में चौथा स्थान ही मिल सका था। इन 9 क्षेत्रों में से उस समय 5 पर कांग्रेस के तथा चार पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों ने विजय प्राप्त की थी। यदि इस पिछली कारगुज़ारी को देखा जाये तो इस बार भी मुकाबला कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी के मध्य ही बनता है, क्योंकि कुछ क्षेत्रों में अच्छी कारगुज़ारी दिखाने के बाद भी अकाली दल-बसपा को उस समय एक भी सीट प्राप्त नहीं हुई थी। चाहे इस लोकसभा सीट के लिए शेष समय वर्ष भर का है परन्तु पार्टियां इसे वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए अपनी स्थिति मज़बूत बनाने के पक्ष से देख रही हैं।
इसलिए यह आशा की जाती है कि इन सभी पार्टियों द्वारा पूरी दिलचस्पी के साथ यह चुनाव लड़ा जाएगा। आम आदमी पार्टी के लिए यह चुनाव इसलिए भी अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वह इसे पंजाब में अपनी सरकार की एक वर्ष की कारगुज़ारी पर मतदाताओं की स्वीकार्यता के रूप में पेश करना चाहती है। एक वर्ष में इस सरकार का लोगों में जो प्रभाव बना है, उसका निश्चय ही इन चुनावों पर अक्स दिखाई देगा। सुखबीर के नेतृत्व में अकाली दल के लिए यह इसलिए परीक्षा का समय होगा, क्योंकि इस चुनाव के परिणामों से पार्टी को यह पता चल जाएगा कि पिछली कई नमोशीजनक पराजयों के बाद वह किस सीमा तक सम्भल पाई है। भाजपा द्वारा अकेले तौर पर चुनाव मैदान में उतरना तथा अपना प्रभाव बना पाना भी एक दिलचस्प बात होगी। नि:सन्देह पिछले समय में इस सीट पर कांग्रेस का प्रभाव रहा है परन्तु अब समय बदल चुका है। इस समय कांग्रेस के समक्ष अपनी पार्टी को एकजुट रख पाना भी एक बड़ा सवाल होगा। बन चुकी इस स्थिति में इस चुनाव को जहां बेहद दिलचस्पी के साथ देखा जाएगा, वहीं पंजाब की निकट भविष्य की राजनीति के लिए भी यह दिशासूचक बन सकेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द