मशहूर यानि अपनों से दूर

 

चाहे वह दुनिया का कोई भी क्षेत्र क्यों न हो सबके साथ यही प्रक्रिया अपनाई जाती है। जो भी शख्स मशहूर हुआ वह अपनों से दूर या यूं कहें आम आदमी से दूर हो गया। यदि आप झोला छाप नेता हैं तब तक चलते-फिरते जनता से मिलते आपके पांव में फफोला न पड़े तो मशहूर होने के रास्ते से अभी काफी नज़दीक हैं। जिस दिन मशहूर हो गए आम आदमी से दूर हो गए। क्योंकि मशहूर होते ही आपके बॉडी को गार्ड करने वाला बॉडीगार्ड, पी.ए. सुरक्षा दल से घिरे रहेंगे तो द्वार-द्वार, घर-घर घूमे फिरे हैं वह आप तक कैसे पहुंचेगा?
अभिनेता का मामला तो और भी संगीन है। मशहूर होते गरुर तो नहीं होता आम आदमी की पहुंच से वाकई दूर हो जाते हैं। क्योंकि उनसे मिलने के लिए लाइन लग जाए इसके पहले ही अपनी व्यवस्था कर लेते हैं। सार्वजनिक स्थल पर जाना, पहले की तरह फुटपाथ पर चाट-पकौड़ी खाना अब उनके लिए मना हो जाता है। क्योंकि जनता से वे मिलते नहीं। चेहरे पर नकाब लगाकर छुपाने का प्रयास करते हैं और जहां संख्या कम हो तो उनके भावनाओं को हिला सकते हैं।सेल्फी लेते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान खिला सकते हैं।
हमारे शहर में एक साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया था। विराट सम्मेलन होने वाला था। क्योंकि जो भी संस्था करा रही थी अंत में उसका दिवाला निकलने वाला था। आयोजन को सफलीभूत करने हेतु बड़का-बड़का, दूर-दूर से फेमस साहित्यकार बुलाए गए थे। उस साहित्यकार का आकार बढ़ते ही नए लेखकों का उनके जनवासे पर जमौड़ा बेशुमार लगने लगा था। रायल्टी उनकी करोड़ों में आने लगी थी, इसलिए आम आदमी से रोड के रोड़ो की तरह व्यवहार तो नहीं करते बल्कि इतना बिजी बताते कि उनका निजी जीवन भी बिजी हो गया था।
इसलिए सम्मेलन के मुख्यातिथि के रुप में आमंत्रित करके जैसे ही ट्रेन का कटा टिकट, महाशय के समक्ष समस्या आ गई विकट। कैसे कहें कि हाल-फिलहाल उनका तबीयत डाउन चल रहा है बिल्कुल ब्लैक एंड वाइट की तरह और जैसे ही उनका आशय समझ आयोजन कर्ताओं ने फ्लाइट का टिकट कटाकर भेजे तो तबीयत टनाटन खुशी से लेफ्ट-राइट करने लगी।
किसी के घर रहने को लेकर भूल चूक हुआ, चेहरा लगने लगा धुंआ तो अफरा तफरी में बढ़िया होटल बुक हुआ। हालांकि इस तरह के आयोजन में दूर से बुलाकर करना क्या है। उनके आने से ऐसा थोड़े ही है जो शहर के राइटर हैं उनके किताबों की बिक्री में इजाफा या खूब मुनाफा होने लगेगा, कमाने लगेंगे। जब उस किताब की मुख्य बातों को बोलना है, उगलना है या उल्टी करना है तो इतना लफा शूटिंग क्या करना? बल्कि दूर से ऐसे साहित्यकार को बुलाकर उनका ताम-झाम देखकर महंगाई में अपनी आटा गिल करना है। क्योंकि उस समय तो पता नहीं चलता कार्यक्रम समाप्ति पर आवश्यकता से अधिक खर्चा देख, कुछ ऐसा फिल होता है।
आज जब छोटे चोर-उचक्के, गुंडे, मवाली पॉपुलर हो जाते हैं वह आम आदमी से दूर हो जाते हैं। अभी अपना गार्ड लेकर चलते हैं बल्कि औरों की अपेक्षा उनके पास ड्यूटी हार्ड होती है। सुरक्षा गार्ड की लंबी कतार होती है। मजाल है कि कोई बॉस को फटकार दे। इसलिए देश में यही क्षेत्र है जिस पर सबके नेत्र घूरते रहते हैं। इसलिए मशहूर होते ही अपने से दूर हो जाते हैं।
इसलिए क्षेत्र जो भी हो जिसमें उछाल आना शुरू हो गया चाहे पुलिस अधिकारी, वरिष्ठ अधिकारी, डाक्टर, पूंजीपति तथा जो भी जिस पर भीड़ बढ़ने या कुछ और कर गुजरने की संभावना प्रबल होती है आम आदमी के लिए प्रतिबंध व उनकी सुरक्षा बढ़ा दी जाती है। क्योंकि यह लोग अपने मन से अपने मन की कर नहीं पाते हैं। क्योंकि जो जितना ऊपर जाता है, पांव खींचने वाले उसी मात्रा में जन्म लेते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यही कह सकता हूं। जो मशहूर हुआ वो अपनों से दूर हुआ।


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