चीन के मुश्किल अंदरूनी  हालात

 

कोविड के कुप्रभाव को देखते हुए चीन की वर्तमान दशा फिर से काफी खराब नज़र आती है। भारत को जागरूक रहने की ज़रूरत इसलिए भी है कि हम पहले ही इसके विस्तार से काफी नुकसान उठा चुके हैं। चीन में ज़ीरो कोविड नीति में रियायतें देने के बाद कोरोना का विस्फोट देखने में आया है। इस वज़ह से उपजे हालात काफी गम्भीर हैं। अस्पतालों के सभी बैड भरे हुए हैं। बीजिंग के शमशान घाटों पर 24 घंटों अंतिम संस्कार किये जा रहे हैं। अंतिम संस्कार के लिए वेटिंग है जोकि 2000 तक पहुंच चुकी है। हुबेई प्रांत के एक युवक के अनुसार वहां रोज़ 25 संस्कार हो रहे हैं जबकि पहले केवल चार ही हुआ करते थे। वह युवक वहां काम करता है। दूसरी तरफ ग्वांगडान्ग शमशान घाट का एक अन्य कर्मचारी बता रहा था कि इतने ज्यादा शव आ रहे हैं जिस कारण उसे ओवरटाईम करना पड़ रहा है। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि चीन में कोरोना केस दिनों में नहीं, अपितु घंटों में ही दोगुना हो रहे हैं। अमरीका की एक एजेंसी का अनुमान है कि 2023 तक चीन में इस नामुराद बीमारी के कारण दस लाख से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो सकती है। जो वीडियो वहां से शेयर किये जा रहे हैं, उनमें अस्पतालों, शमशानों, मैडीकल स्टोरज़ की चिंताजनक तस्वीरें ही नज़र आती हैं, जिसके लिए चीन की सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। 
चीन के अंदरूनी हालात भी खराब हो रहे हैं। बजट घाटा इस बार इस साल अब तक के रिकार्ड स्तर तक पहुंच चुका है। व्लूमबर्ग ने बताया है कि जनवरी से नवम्बर तक चीन का राजकोषीय घाटा 1.1 ट्रिलियन डालर (करीब 90 लाख करोड़) हो चुका है। यह पिछले साल की समान अवधि के दोगुना से भी अधिक है। उधर, वर्ल्ड बैंक ने 2023 के लिए चीन की विकास दर का अनुमान 4.3 प्रतिशत से घटाकर 2.7 प्रतिशत कर दिया है।
चीन तकनीक, धन, सेना, हथियार इस सबमें बेशक आगे हो परन्तु कोविड के हमले से अपने देश के बचाव में बाकी दुनिया के मुल्कों से जरूर कुछ पीछे रह गया मालूम होता है। लम्बे समय से चीन के लोगों का आपसी मेल-मिलाप बंद रहा, ऐसे में वे इम्यूनिटी के एक खास स्तर तक नहीं पहुंच पाये थे। याद रहे कि चीन की आबादी खासकर पहली और दूसरी श्रेणी के शहरों के लोग ज़ीरो कोविड के तहत एक लम्बे अरसे से सख्त पहरे में रहे हैं। चाइना कोविड टास्क फोर्स के सलाहकार फैंग जिजियान के मुताबिक कोविड में बढ़ौतरी 60 प्रतिशत आबादी यानी करीब 84 करोड़ लोगों को प्रभावित कर सकती है। संभावना है कि ज्यादा जोखिम वाले चुनिंदा समूहों की पहचान की जाएगी। चीन की एक बड़ी आबादी अभी तक वायरस के लिए एक्सपोज़ नहीं हुई है। ऐसे में अपेक्षित इम्युनिटी में समय लग सकता है। इस बीच कोविड की लहरें तो नहीं रूकने वाली जिससे समानता होने में 9 महीने का समय लगने का अनुमान किया जा सकता है। यहां तक टीकाकरण का सवाल है, भारत ने काफी सजगता से गतिशील होकर लागू किया था। चीन में भी इसकी बेहतर स्थिति हो सकती थी। आंतरिक और बाहरी डाटा इसे स्पष्ट करता है। चीन की संरक्षणवादी नीति के चलते आंतरिक डाटा समीक्षा के लिए उपलब्ध नहीं है पर संकेतों से पता चलता है कि अन्य देशों की तुलना में चीनी टीके अप्रभावी और अक्षम साबित हुए हैं।
रणनीति बनाते समय सभी राजनीतिज्ञ जोखिम प्रबंधन का ध्यान रखते हैं। इस समय में अधिकांश देशों ने सबसे ज्यादा प्रभावित रहने वाली आबादी जैसे बुजुर्गों या गम्भीर बीमारी वालों पर फोक्स रखते हुए जोखिम को कम करने की कोशिश की जबकि शी जिनपिंग कामकाजी लोगों पर ही अधिक ध्यान दे रहे थे। ज़ीरो रिस्क में कमियां और खामियां रहती ही हैं। इस ज़ीरो रिस्क ने लोगों को जोखिम पर लाकर खड़ा कर दिया। जब सरकार पर बंद रहने वाले लोगों का दबाव अधिक बढ़ा तब सब कुछ एकदम से खोल दिया। जैसे कहा जा रहा हो- मरना है तो मरो, हम कर ही क्या सकते हैं।
चीन के हालात को देखते हुए हो सकता है कि हमारे अनुमान असफल साबित हों क्योंकि अधिकारिक रूप से वहां से ठीक सूचना आ नहीं रही। फिर भी यह कहा जा सकता है कि चीन के आर्थिक हालात पर इसका बुरा प्रभाव पड़ने वाला है। चीन में असंतोष बढ़ सकता है। उत्पादन शक्ति पूरी तरह से प्रभावित हो सकती है। उसने अपने लिए रास्ते भी बंद किये हुए हैं। विकल्प की बात सोचें तो सबसे पहले चीन को समाजिक व्यवस्था में खुलापन लाना होगा। जोखिम प्रबंधों को समझना होगा। मुश्किल परिस्थितियों को समझना होगा। भारत सहित अन्य मुल्कों के साथ तनाव कम करने में ही समझदारी होगी। जोकि वह नहीं कर पा रहा। वह परिस्थितियों को टालने की जगह बदलने की कोशिश क्यों नहीं करता?