सर्वोच्च् न्यायालय तथा केन्द्रीय एजेंसियां

केन्द्र की जांच एजेंसियों की कारगुज़ारी के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने विपक्षी पार्टियों में निराशा पैदा कर दी है। ई.डी. तथा सी.बी.आई. की दबाव डालने वाली गतिविधियों के विरुद्ध आज ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां एकजुट हुई हैं क्योंकि इनमें से ज्यादातर को इन एजेंसियों के कड़े दबाव में से भी गुज़रना पड़ा है तथा जेल में भी रहना पड़ा है। आज भी आम आदमी पार्टी सहित कुछ अन्य पार्टियों के नेता नज़रबंद हैं। केन्द्र की मोदी सरकार के संबंध में समय के व्यतीत होने के साथ यह प्रभाव बढ़ा है कि वह अपने विरोधियों के विरुद्ध केन्द्रीय एजेंसियों का लगातार इस्तेमाल कर रही है।
कांग्रेस के बड़े नेताओं की भी इन एजेंसियों द्वारा भिन्न-भिन्न मामलों में लगातार पूछताछ की जाती रही है। लालू प्रसाद के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं को भी लगातार इसके चक्कर में फंसाया जाता रहा है। यह अलग बात है कि इन पार्टियों के ज्यादातर नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। लम्बे अदालती केसों के बाद कुछ मामलों में ये दोष कुछ सीमा तक साबित भी हुए तथा कुछ नेताओं को लम्बी अवधि तक सलाखों के पीछे भी कैद करके रखा गया। आज भी अनेक तरह के ऐसे मामले चल रहे हैं जिनमें भ्रष्टाचार की गंध आती है, परन्तु केन्द्र सरकार द्वारा अब ऐसा दबाव इतना बढ़ा दिया गया है जिससे राजनीतिक गलियारों  में बेचैनी बहुत बढ़ गई है।
इसका एक कारण यह भी है कि केन्द्र सरकार की नीति ऐसा दबाव बना कर अपने विरोधियों को चुप करवाने या अपने साथ मिलाने की भी रही है। इसी कारण इस मामले पर आज ज्यादातर विपक्षी पार्टियां एकजुट हुई दिखाई दे रही हैं। गत दिवस कांग्रेस सहित 14 विपक्षी पार्टियों ने सर्वोच्च न्यायालय में इसके लिए पहुंच की थी कि वह सरकार को ऐसा करने से रोके। उन्होंने इन एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच की थी, जिसमें यह कहा गया था कि पिछले 8 वर्षों से इन्फोर्समैंट डायरैक्टोरेट द्वारा 121 राजनीतिक नेताओं की जांच की गई, जिनमें 95 प्रतिशत नेता विपक्षी पार्टियों से संबंधित थे। इस संबंध में सैकड़ों  शिकायतों के आधार पर ये कार्रवाइयां हुईं, जिनमें न्यायालय द्वारा दो दर्जन के लगभग राजनीतिज्ञों को सज़ा हुई। आज भी चलाया जा यह चक्र जारी है।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस अपील को सुनने से इन्कार करते हुए यह कहा कि राजनीतिक नेता भी जन-साधारण के समान हैं। उन्हें जन-साधारण से अधिक छूट नहीं मिल सकती। याचिका में यह भी कहा गया था कि सम्बद्ध 14 पार्टियों का लोकसभा में वोट प्रतिशत 42 फीसदी था, जिस कारण उन्हें ऐसी अपील करने का अधिकार है परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के सुनाये गये फैसले से जहां सरकार की ऐसी कार्रवाइयों के और बढ़ने की सम्भावना है, वहीं देश की राजनीति में और  अधिक टकराव तथा दूषणता बढ़ेगी जो लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध होगा। केन्द्र सरकार को एजेंसियों का पक्षपातपूर्ण ढंग से इस्तेमाल करके ऐसी परम्पराएं नहीं डालनी चाहिएं, जो पहले ही बिगड़ चुके हालात को और भी उलझाने में सहायक हों।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द