व्यापार घाटे को नियंत्रित करने हेतु उचित रणनीति की ज़रूरत

 

भारत के विनिर्माण उद्योग को पर्याप्त रूप से बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल ने सामान के आयात पर देश की बढ़ती निर्भरता और बड़े व्यापार घाटे पर बहुत कम प्रभाव डाला है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सरकार और उसके वाणिज्य मंत्री देश के बढ़ते वार्षिक व्यापारिक आयात बिल और व्यापार घाटे पर कम बोलते हैं जबकि इसके निर्यात में वृद्धि को अधिक उजागर करते हैं।
ऐसा नहीं लगता कि वैश्विक मंदी के बीच स्थिर घरेलू मांग ने विनिर्माण क्षेत्र में स्थानीय उत्पादन और निवेश को बढ़ाया है। इसके बजाय ऐसा लगता है कि यह विदेशी उत्पादकों को अपने उत्पादों को भारत में डम्प करने में मदद कर रहा है। मज़बूत औद्योगिक और विदेश व्यापार नीतियां इसे रोक सकती हैं। ऐसी नीतियां बनाने के लिए सरकार को उद्योग के साथ काम करने की ज़रूरत है। परन्तु निकट भविष्य में व्यापार अधिशेष नहीं तो शून्य व्यापार संतुलन हासिल करने का सरकार के पास कोई लक्ष्य नहीं है। भारत का विदेशी व्यापार आयात के पक्ष में ही अत्यधिक असंतुलित है।
सैद्धांतिक रूप से संतुलित व्यापार उस स्थिति को संदर्भित करता है जहां किसी देश का समान आयात और निर्यात होता है। संक्षिप्त में यह व्यापार के शून्य संतुलन की ओर इशारा करता है। प्रतिकूल व्यापार अंतराल लेन-देन अंतर को पाटने के लिए उच्च विदेशी उधारी का कारण बनता है। बड़े भुगतान संतुलन (बीओपी) घाटे के मामले में स्थानीय मुद्रा की वैश्विक विनिमय दर में गिरावट आती है। वह अर्थव्यवस्था को कमज़ोर करती है।
अप्रैल-जनवरी 2021-22 की अवधि के दौरान 494.06 अरब अमरीकी डॉलर की तुलना में अप्रैल-जनवरी 2022-23 की अवधि के लिए व्यापारिक सामान का आयात 602.20 अरब अमरीकी डॉलर था। अप्रैल-जनवरी 2022-23 के लिए राजस्व व्यापार घाटा अप्रैल-जनवरी 2021-22 में 153.79 अरब डॉलर के मुकाबले 232.95 अरब डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया था। स्थानीय मांग को पूरा करने में घरेलू विनिर्माताओं की बढ़ती अक्षमता के कारण अप्रैल-जनवरी 2022-23 में देश के समग्र आयात में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 22.92 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
इसके विपरीत सामान के निर्यात में अप्रैल-फरवरी 2022-23 के दौरान पिछले वर्ष की इसी अवधि (अप्रैल-फरवरी 2021-22) की तुलना में केवल 7.55 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। सूचना प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर के नेतृत्व में सेवाओं का निर्यात चेहरा बचाने वाला रहा है। अप्रैल-फरवरी 2022-23 के दौरान सेवा क्षेत्र का निर्यात पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 30.48 प्रतिशत बढ़ा। इस प्रकार कुल निर्यात में 16.18 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
इन परिस्थितियों में ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने वित्त वर्ष 2022-23 में देश के विदेशी व्यापार के 1.6 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान लगाया है या भारत के नॉमिनल जीडीपी 3.4 खरब डॉलर का 48 प्रतिशत है, जो शायद ही किसी जश्न का आह्वान करता हो। जीटीआरआई को इस बात का संकेत देना चाहिए था कि यह विदेशी व्यापार वृद्धि देश के व्यापार संतुलन को कैसे प्रभावित करती है।
यह चिंता का विषय है कि देश की अर्थव्यवस्था पर भारी मात्रा में आयात का दबाव बना हुआ है। व्यापारिक वस्तुओं का निर्यात बढ़ रहा है, लेकिन आयात अधिक तेज़ी से बढ़ रहा है। देश के तेज़ी से बढ़ते ई-कॉमर्स के आयात-निर्यात व्यापार में योगदान को जानना दिलचस्प होगा। भारत तेजी से वैश्विक ई-कॉमर्स उद्योग में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है। क्या इंटरनेट की आसान उपलब्धता, बढ़ते ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस, मांग पर निर्माण, पूंजी तक आसान पहुंच और लॉजिस्टिक्स और शिपिंग के लिए परिवर्तनीय मॉडल भारतीय उद्यमी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में खुद को जोड़ने और मज़बूत निर्यात कारोबार बनाने में सक्षम हैं?
देश के औद्योगिक क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन से उच्च निर्यात वृद्धि और व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिल सकती थी। पिछले कुछ वर्षों में भारत का औद्योगिक विकास अपेक्षाकृत अप्रभावी रहा है। इसके विपरीत चीन के विनिर्माण उद्योग ने 1990 के दशक से एक चमत्कारी वृद्धि दर्ज की है। इसने चीन को दुनिया के नम्बर-एक निर्यातक के रूप में उभरने में मदद की और साल दर साल सबसे बड़ा सकारात्मक व्यापार संतुलन हासिल किया। 2021 में चीन का व्यापार संतुलन 462.25 अरब था, जो 2020 से 30.16 प्रतिशत अधिक था। वास्तव में 2021 में चीन का व्यापार संतुलन वित्त वर्ष 2021-22 में भारत के कुल व्यापारिक निर्यात 417.81 अरब से भी अधिक था। उच्च औद्योगिक उत्पादन चीन के बड़े पैमाने पर निर्यात वृद्धि के पीछे था।
भारत का विनिर्माण क्षेत्र पिछले तीन दशकों में तीन गुना बढ़ा है जिसमें ज्यादातर पारम्परिक क्षेत्रों जैसे पेट्रोकेमिकल्स, स्टील, सीमेंट और ऑटोमोबाइल के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक्स, खिलौने और अन्य जैसे नये क्षेत्रों का योगदान है। हालांकि विकास दर घरेलू मांगों को पूरा करने के बाद निर्यात को नयी ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए पर्याप्त नहीं है। वर्ष 1994 और 2022 के बीच भारत का औद्योगिक उत्पादन औसतन 6.05 प्रतिशत रहा, जो 2021 के अप्रैल में 133.50 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्च स्तर पर और 2020 के अप्रैल में 57.30 प्रतिशत के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया था। 
यही समय है कि भारत में सरकार और उद्योग वैश्विक स्तर पर निर्यात बाज़ारों का आकलन करने के लिए एक रणनीति तैयार करने हेतु एक साथ काम करें। जहां भारतीय उत्पादों की आसान पहुंच हो, कम्पनियों के साथ-साथ देशों के साथ व्यापार गठजोड़ की योजना बनायें। बड़ी कम्पनियों के पास अलग-अलग बाज़ार अध्ययन करने और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए गठजोड़ की तलाश करने के लिए संसाधन हैं, छोटे और मध्यम उद्यमक्षेत्र को निर्यात बाज़ारों के मूल्यांकन, टाई-अप बनाने और अपने सामान को बेचने के लिए मज़बूत सरकारी समर्थन की आवश्यकता होगी।
पूरी दुनिया में लघु व मध्यम उद्योग (एसएमई) तेज़ी से निर्यात व्यापार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। चीन में एसएमई लगभग 68 प्रतिशत निर्यात में योगदान करते हैं। अमरीकी जनगणना ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि अधिकांश अमरीकी निर्यात कम्पनियां एसएमई हैं, हालांकि निर्यात मूल्य के मामले में बड़ी कम्पनियां (500 और अधिक कर्मचारी) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर हावी हैं। भारत में 20 से कम श्रमिकों को रोज़गार देने वाले सूक्ष्म उद्योग और एसएमई देश के कुल निर्यात में लगभग 40 प्रतिशत का योगदान दे रहे हैं। कौशल, प्रौद्योगिकी, उत्पाद श्रेणी, गुणवत्ता सुधार और बाज़ार-विशिष्ट उत्पादन के संदर्भ में भारत के एमएसएमई को एक नयी दिशा की आवश्यकता है।

(संवाद)