राजस्थान संकट का जल्द समाधान करे कांग्रेस

 

राजस्थान में इस साल के अंत में राज्य विधानसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस फिर से एक राजनीतिक संकट का सामना कर रही है। चुनावी रेस में गलत घोड़े का समर्थन करके स्थिति को संभालने में गांधी परिवार द्वारा की गयी भूलों के कारण पार्टी पिछले साल पंजाब विधानसभा चुनाव हार गयी थी। क्या कांग्रेस नेतृत्व राजस्थान को पंजाब की राह पर जाने से बचा पायेगा?
राजस्थान में बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा की सरकारें बनती रही हैं और इस हिसाब से अब भाजपा की बारी है। कांग्रेस अभी भी दुविधा में है कि मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत के साथ मतदाताओं का सामना किया जाये या इसके बजाय बागी सचिन पायलट के साथ।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट एक बार फिर आमने-सामने हैं। दोनों के बीच सत्ता की लड़ाई 2018 में शुरू हुई, पहले पार्टी के टिकट को लेकर और बाद में मुख्यमंत्री पद को लेकर। इस बीच पायलट दो बार बगावत कर चुके हैं। सन् 2020 में उन्होंने अपने 20 विधायकों के साथ भाजपा के मौन समर्थन से विद्रोह का नेतृत्व किया। कांग्रेस आलाकमान द्वारा सचिन पायलट द्वारा उठाये गये मुद्दों पर गौर करने का वादा करने के बाद एक महीने का राजनीतिक संकट समाप्त हो गया।
दूसरी बार सितम्बर 2022 में 90 विधायकों वाले गहलोत खेमे ने सचिन पायलट को गहलोत का उत्तराधिकारी बनने से रोकने के लिए अपना इस्तीफा सौंप दिया था। यह उस समय हुआ जब अशोक गहलोत को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की पेशकश की गयी थी। गहलोत मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने के साथ ही पार्टी अध्यक्ष पद भी चाहते थे। पायलट को लगता है कि अभी नहीं तो कभी नहीं, क्योंकि समय खत्म हो रहा है। हालांकि वह केवल 46 वर्ष के हैं, लेकिन अगर पायलट इस बार चूक जाते हैं तो उनका अगला शॉट 2028 में होगा। वह और पांच साल इंतजार करने के मूड में नहीं हैं। पिछले हफ्ते पायलट ने गहलोत सरकार पर आबकारी माफिया, अवैध खनन, भूमि अतिक्रमण आदि मामलों में आरोप लगाते हुए एक दिवसीय धरने पर बैठने की घोषणा की। उन्होंने शिकायत की कि गहलोत पूर्ववर्ती वसुंधरा के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ  कार्रवाई करने से हिचक रहे हैं। संयोग से वसुंधरा राजे (भाजपा) ने चुपचाप गहलोत को 2020 में विश्वास मत जीतने में मदद की थी। 
सचिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के भी करीबी हैं। कयास लगाये जा रहे हैं कि भाजपा उन्हें मंत्री पद की पेशकश कर सकती है। कुछ ही युवा नेताओं के बचे होने के कारण पायलट के चुनाव से पहले इस्तीफे से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। अशोक गहलोत 71 साल के हैं, मतदाताओं से एक आखिरी मौका मांग रहे हैं।
कांग्रेस के सामने विकल्प कम हैं। एक सचिन को धैर्य की सलाह देना है। उन्होंने इस बार भ्रष्टाचार को एक मुद्दे के रूप में चुना है। जब राहुल गांधी भ्रष्टाचार के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर अगुवाई कर रहे हैं, तो वे सचिन को कैसे दोष दे सकते हैं? संगठनात्मक ज़िम्मेदारी देने के लिए पायलट को दिल्ली ले जाना एक विकल्प था, लेकिन पायलट इससे संतुष्ट नहीं थे। गहलोत के अलग होने के भी विपरीत नतीजे होंगे। एक विकल्प यह है कि एक समय के जादूगर गहलोत को पद छोड़ने के लिए मना लिया जाये। गहलोत इससे पहले दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और ओबीसी समुदाय के अनुभवी नेता भी हैं। उन्होंने कई बार दिखाया है कि वह नियंत्रण में रहने वाले व्यक्ति हैं। लेकिन वह एक उम्रदराज़ नेता हैं। उन्हें एंटी इनकम्बेंसी का भी सामना करना पड़ रहा है।
कर्नाटक विधानसभा चुनावों में व्यस्त छह महीने पुराने कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए यह एक कड़ी परीक्षा होगी। पिछले महीने वह पायलट को राज्य का पार्टी प्रमुख बनाने की कोशिश में लगे थे, जो सचिन को शांत करता, लेकिन गहलोत को परेशान करता। खड़गे शायद कर्नाटक चुनाव खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। राज्य जीतने की काफी अच्छी संभावना के साथए वह दोनों नेताओं से ताकत की स्थिति में निपट सकता हैं। अंतत: दोनों के लिए स्वीकार्य फार्मूला तलाशना पार्टी आलाकमान पर निर्भर करता है।
लेकिन ऐसा करने से कहना आसान है। कांग्रेस नेतृत्व के पास चिंता करने के लिए बहुत कम समय है। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण युद्धरत शिविरों को शांत करना है। कांग्रेस ने अनुभवी कमलनाथ को दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता करने के लिए नियुक्त किया है।
दूसरी बात, हाईकमान को जल्द से जल्द कार्रवाई करनी चाहिए। संकट को अनदेखा करने से स्थिति और बिगड़ सकती है। यह कर्नाटक में पार्टी की संभावना को भी प्रभावित कर सकता है।
तीसरा, खड़गे को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पंजाब की तरह गलत नेता का समर्थन करके राजस्थान को भी अपने हाथ से निकलने न दें। 
चौथा, अब कांग्रेस में अहमद पटेल जैसे राजनीतिक रूप से समझदार शांतिदूत कम हैं। साथ ही सोनिया गांधी भी पीछे हट गयी हैं। कमलनाथ ने कथित तौर पर पायलट को एआईसीसी सचिवालय, कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य और आगामी राजस्थान चुनावों के लिए स्क्रीनिंग समिति में एक महत्वपूर्ण भूमिका की पेशकश की है।
इस समय हाईकमान गहलोत को परेशान करने को तैयार नहीं है। इसलिए कांग्रेस को सावधानी से चलना चाहिए, क्योंकि किसी भी गलत कदम का मतलब राजस्थान को खोना होगा। (संवाद)