अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा पाकिस्तान

पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के पुंछ में सेना के ट्रक पर हुए आतंकी हमले में पांच जवान शहीद हो गए। हमले की ज़िम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े एक आतंकी संगठन पीपल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट ने ली। इस खबर के प्रसारित होते ही देश में शोक की लहर दौड़ गई। इसमें कोई दो राय नहीं कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद से आतंकी हमलों में कमी दर्ज की गई है। इसके बावजूद आतंकवाद पर पूरी तरह से रोक नहीं लग सकी है। 
पिछले दो वर्षों की बात करें तो इस अवधि में जम्मू-कश्मीर में 4 बड़े आतंकी हमले हुए हैं।  11 अक्तूबर, 2021 को पुंछ जिले के सुरंग कोट तहसील में हुए एक आतंकी हमले में भारतीय सेना के पांच जवान शहीद हुए थे। 16 अक्तूबर, 2021 को पुंछ जिले में हुए आतंकी हमले में 4 जवान शहीद हुए थे। 11 अगस्त, 2022 को राजौरी के परगल इलाके में आर्मी कैंप में हुए एक आतंकी हमले में 5 जवान शहीद हुए थे, जबकि इस हमले को अंजाम देने वाले दोनों आत्मघाती हमलावरों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया था। वहीं, 1 जनवरी, 2023 को राजौरी के डांगरी में हुए एक आतंकी हमले में हिंदू समुदाय के 7 लोगों को आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया था। वास्तव में कभी पुलिस या सेना के जवानों पर हमले, तो कभी कस्बों में बचे-खुचे कश्मीरी पंडितों की हत्या जैसी वारदातें करके दहशत फैलाने का प्रयास किया जाता है। इससे यह पता चलता है कि पूरी चौकसी के बावजूद सीमा पार से आने वाले आतंकी कश्मीर घाटी में घुसने में कामयाब हो जाते हैं। इसका ताज़ा उदाहरण पिछले दिनों राजौरी के पास सेना के एक ट्रक पर हुआ हमला है। 
यह आतंकी वारदात कई गंभीर सवाल खड़े करती है। अब सैन्य ठिकानों के अलावा सेना के काफिलों पर घात लगाकर हमले करने की रणनीति पर अमल हो रहा है। हालांकि सेना काफी सतर्क रहती है लेकिन पहाड़ी इलाकों में आतंकवादियों को छिपने के लिए बहुत-से स्थान मिले जाते हैं, जहां से वे मौका देख कर भागने में सफल हो जाते हैं। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि सुरक्षा बलों की निरन्तर कार्रवाइयों में बड़ी संख्या में आतंकवादियों के मारे जाने से उनके आका बौखलाए हुए हैं। उनकी आर्थिक मदद करने वालों पर भी शिकंजा कसा गया है। बीते कुछ समय से सुरक्षा बल लगातार आतंकवादियों को ढूंढकर मार रहे हैं। सीमा पार से घुसपैठ में भी कमी आई है। इस कारण घाटी में बचे-खुचे अलगाववादी बौखलाहट में हैं। उनको सबसे ज्यादा गुस्सा इस बात पर है कि काफी हद तक आम जनता भी शान्ति के पक्ष में खड़ी नज़र आ रही है। सुरक्षा बलों और जांच एजेंसियों ने घाटी के अलगाववादी नेताओं पर भी शिंकजा कसा हुआ है। 
जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने जिस कुशलता से घाटी के ज़िम्मेदार लोगों से सीधे संवाद का तरीका अपनाया, उससे भी माहौल ठीक होने लगा है। पिछले दिनों ही राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने आतंकी संगठन हिज़बुल मुज़ाहिद्दीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन और उसके बेटे की संपत्तियों को कुर्क किया। ये संपत्तियां जम्मू-कश्मीर के बडगाम में हैं। इससे पहले भी एनआईए ने कई आतंकियों के खिलाफ  कार्रवाई की।
आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित कश्मीर घाटी में भी अब इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़कर अमन बना हुआ है। पत्थरबाजी और बात-बात पर सुरक्षा बलों का रास्ता रोकने जैसी घटनाएं भी अतीत बन गई हैं। श्रीनगर के लाल चौक पर अब कोई तिरंगा उतारने का दुस्साहस नहीं कर पा रहा है। 
घाटी में सुरक्षा बलों की चौकसी और सख्ती का लाभ यह हुआ कि घाटी में पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है। कश्मीरी युवाओं को काफी हद तक यह बात समझ आने लगी है कि उनका भविष्य अलगाववादियों के साथ रहने से अंधकारमय हो जाएगा। घाटी में विकास कार्य भी जिस तेज़ी से चल रहे हैं, उसका भी जनमानस पर सकारात्मक असर पड़ रहा है। कश्मीर में कुछ ऐसे लोग हैं, जो भारत में रहते हुए भी दिल से भारतीय नहीं हैं। यही लोग मौका मिलने पर भय का माहौल पैदा करने की कोशिशें करते रहते हैं। 
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में मारे गए माफिया अतीक अहमद ने भी पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में बताया था कि पाकिस्तान से ड्रोन के जरिये पंजाब में हथियार भेजे जाते हैं।  ये भी कहा जा रहा है कि कश्मीर घाटी में जी-20 की बैठक न होने पाए, इसलिए पाकिस्तान वहां भय का माहौल उत्पन्न करना चाह रहा है, ताकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष कश्मीर और भारत सरकार की गलत तस्वीर पेश की जा सके तथा विश्व को बताया जा सके कि कश्मीर में हालात अब भी बुरे हैं, और वहां कुछ बदला नहीं है। ऐसी घटनाएं पाकिस्तान और भारत विरोधी सोच वालों का षड्यंत्र है। वहीं जून के अंत में पवित्र अमरनाथ यात्रा भी होनी है। यह देखते हुए सुरक्षा एजेंसियों के साथ खुफिया तंत्र को भी अतिरिक्त सतर्कता बरतनी पड़ेगी।