प्रेरक प्रसंग जूठे बर्तन

मगनबाड़ी आश्रम में एक दिन गांधी जी ने योजना बनायी कि सबके जूठे बर्तन बारी-बारी से दो-तीन आदमी मांजें। इससे लोगों में आपस में प्रेमभाव बढ़ेगा। एक-दूसरे के बर्तन मलने में जो घृणा होती है, वह मिट जाएगी और समय भी बचेगा। उन्होंने इसका महत्व श्री बलवंत सिंह को बताया लेकिन बापू की बात उनके गले न उतरी। उन्होंने बापू से कहा, ‘सबके जूठे बर्तन एक साथ मांजने से काफी अव्यवस्था होने का डर है।’ बापू बोले, अव्यवस्था में व्यवस्था लाना ही हमारा काम है, पहली बारी मेरी एवं बा की रहेगी।’ और बापू तथा बा बर्तन मलने जुट गये। इसका प्रभाव अन्य आश्रमवासियों पर बड़ा अच्छा पड़ा। वे सोचने लगे कि यदि बापू और बा इस प्रकार का काम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते।