भाजपा को चुनावी अभियान में लाभ पहुंचायेगी आईएमएफ  की प्रशंसा

 

केन्द्र की भाजपा सरकार जो लगातार आलोचना का सामना कर रही है कि उसकी नीतियों के तहत गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर हो गये हैं, इससे बेहतर और कुछ भी नहीं मांग सकती थी कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) उनकी प्रशंसा करे। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष वास्तव में पार्टी की सहायता के लिए आगे आया है। यह दावा करते हुए कि वित्तीय समावेशन में भारत की उपलब्धि वास्तव में उल्लेखनीय है। 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी के अभियान के लिए ऐसा प्रमाण-पत्र बहुत महत्वपूर्ण होगा।
1991 में जब भारत ने अपने आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की, वास्तविक प्रति व्यक्ति आय 600 डॉलर से कम थी। आज यह तीन गुना से अधिक हो गया है। पिछले 15 वर्षों में भारत में अनुमानित 400 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है और यह दुनिया में सबसे तेज़ गरीबी कम करने वाली दरों में से एक है। भारत की वित्तीय प्रणाली पर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की पुस्तक के विमोचन के अवसर पर उप प्रबंध निदेशक एंटोनेटएम. साये की प्रारंभिक टिप्पणी का यह हिस्सा था। वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका भी नाटकीय रूप से बदल गयी है। 1991 में देश दुनिया के सबसे बड़े सहायता प्राप्तकर्ताओं में से एक था। आज भारत शुद्ध दाता बन गया है। क्रय शक्ति समानता के संदर्भ में यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है, जिसके इस वर्ष वैश्विक विकास में लगभग 15 प्रतिशत योगदान करने की उम्मीद है।
साये ने भारत की जी-20 अध्यक्षता का उल्लेख किया और कहा कि इस भूमिका में इसका एजेंडा वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं पर केंद्रित है और ऋण, क्रिप्टो संपत्ति, जलवायु और डिजिटलीकरण के आसपास अंतर्राष्ट्रीय समन्वय को मजबूत करता है। आईएमएफ  नोट करता है कि पिछले दशकों में भारत की आर्थिक प्रगति को उसके वित्तीय क्षेत्र में परिवर्तन द्वारा रेखांकित किया गया है।
1990 के दशक में निजी क्षेत्र के बैंकों की बढ़ती भूमिका, सार्वभौमिक बैंकिंग की शुरुआत, विनियमन और पर्यवेक्षण में अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक व्यापार का निर्माण देखा गया। इन विकासों की मेहरबानी से बड़ी कम्पनियां बॉन्ड और इक्विटी मार्केट दोनों का उपयोग करके बाजार-आधारित फंडिंग तक अपनी पहुंच बढ़ाने में सक्षम रहीं। अब परिवार और एसएमई इकाइयां बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों पर भरोसा कर सकती हैं।
लेकिन वित्तीय क्षेत्र में भारत की उपलब्धियां स्पष्ट रूप से बैंकों की संख्या या बाज़ार पूंजीकरण से परे हैं। देश ने अपने सार्वजनिक डिजिटल बुनियादी ढांचे के माध्यम से वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में दुनिया को प्रभावित और अचंभित किया है। महज एक दशक पहले स्थानीय दुकानें नकदी से सामान खरीदने और बेचने वाले लोगों से भरी हुई थीं। आज वित्तीय लेन-देन ज्यादातर स्मार्टफोन के साथ निष्पादित किया जाता है। सार्वजनिक डिजिटल बुनियादी ढांचा भी सार्वजनिक वित्त प्रबंधन की दक्षता में सुधार करने में मदद कर रहा है।
एक ओर बायोमेट्रिक माप पर आधारित विशिष्ट पहचानकर्ता जो डिजिटल भुगतान संरचना को रेखांकित करता है, ने सरकार को अपने पेरोल से फर्जी कर्मचारियों को हटाकर पैसे बचाने की अनुमति दी तो दूसरी ओर डिजिटल भुगतान प्रणाली ने व्यवसायों के लिए कर अनुपालन लागत को कम करते हुए सामान्य बिक्री कर से राजस्व संग्रह को बढ़ावा दिया। इसने उन लाखों लोगों को सामाजिक लाभों के वितरण में तेज़ी लाने में भी मदद की है जो पहले पहुंच से बाहर थे। यह महामारी के दौरान विशेष रूप से महत्वपूर्ण साबित हुआ। अधिकारी 2020-2021 में लोगों के बैंक खातों में 37 अरब डॉलर का सामाजिक लाभ हस्तांतरित करने में सक्षम थे तथा महंगे बिचौलियों से बचने और रिसाव को कम करने में सक्षम हुए।
फिर भी आईएमएफ  ने नोट किया कि भारत की वित्तीय विकास यात्रा हमेशा सुचारू नहीं रही है।इसने बाहरी उथल-पुथल का सामना किया है, जैसे कि एशियाई वित्तीय संकट, वैश्विक वित्तीय संकट और हाल ही में यूक्रेन में महामारी और युद्ध के विनाशकारी प्रभाव। लेकिन अधिकारियों ने इन झटकों से सबक लिया है और वित्तीय क्षेत्र के लचीलेपन को बढ़ाने के लिए नीतियों की पहचान करने और उन्हें लागू करने के लिए खुद को लागू किया है। मुद्रा कोष घरेलू चुनौतियों का भी उल्लेख करता है और सरकार ने इनका सामना कैसे किया उसका भी। एक उल्लेखनीय उदाहरण 2018 में व्यवस्थित रूप से महत्वपूर्ण गैर-बैंक वित्तीय कम्पनियों का डिफॉल्ट था। उस संकट के बाद से भारतीय अधिकारियों ने अपने विनियमन और पर्यवेक्षण को उन्नत किया है और गैर-बैंक वित्तीय कम्पनियों के लिए एक नियामक ढांचा पेश किया है। 

(संवाद)