प्रदर्शनकारी महिला पहलवानों का संघर्ष यथाशीघ्र हल किया जाए विवाद

 

देश की राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर आन्दोल-रत होकर धरना-प्रदर्शन कर रहे पहलवानों का संघर्ष अब राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण एक नये विवाद की ओर अग्रसर हो गया प्रतीत होता है, हालांकि प्रदर्शनकारियों ने अब तक किसी भी प्रकार की राजनीति को आन्दोलन-स्थल के पास तक नहीं आने दिया था।  हुआ यह है कि एक ओर तो विगत चार मास से लगभग उपेक्षित से चल रहे इस आन्दोलन को समर्थन देने के लिए ‘आप’ के मुख्य संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल एवं अखिल भारतीय कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा जैसे नेताओं ने एकाएक धरना-स्थल पर पहुंच कर अपने समर्थन की घोषणा कर दी, वहीं दूसरी ओर भारतीय कुश्ती संघ के प्रधान बृज भूषण शरण सिंह ने आन्दोलन को सरकार एवं स्वयं प्रधानमंत्री के विरुद्ध होने की आड़ लेकर, आन्दोलनकारियों के समक्ष झुकने और अपने पद से त्याग-पत्र देने से स्पष्ट रूप से इन्कार कर दिया है। बृज भूषण शरण सिंह भाजपा के एक कद्दावर और दबंग किस्म के नेता और उत्तर प्रदेश के कैसरगंज क्षेत्र से पार्टी की टिकट पर सांसद हैं। उनके विरुद्ध पहले से ही 85 मुकद्दमे अदालतों में चल रहे हैं, जिनमें कुछ गम्भीर आपराधिक किस्म के हैं। सम्भवत: इसी कारण दिल्ली पुलिस और खेल मंत्रालय का प्रशासन अब तक आंखें मूंदे बैठे रहे हैं। ये आरोप नि:सन्देह बेहद गम्भीर हो सकते हैं, क्योंकि इन्हें लेकर स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ी टिप्पणी की है। भारतीय कुश्ती संघ के प्रधान के विरुद्ध शारीरिक एवं यौन-उत्पीड़न के आरोप लगा कर, दूसरी बार धरना-प्रदर्शन हेतु विवश हुए इन पहलवानों में अधिकतर महिलाएं शामिल हैं। ये वही महिला पहलवान हैं जिन्होंने अपने अतीत में ओलम्पिक और अन्य वैश्विक खेल प्रतिस्पर्धाओं में देश के लिए अनेकानेक पदक जीते, और जिन्हें ‘हमारी बेटियां, देश का गर्व’ कहकर राष्ट्र-वासियों ने सिर-आंखों पर बिठाया था। प्रदर्शनकारी पहलवानों के अनुसार आन्दोलन के पथ पर अग्रसर होने से पूर्व, वार्तालाप और ज्ञापन आदि के ज़रिये अपनी मांगें मनवाने के उन्होंने भरसक यत्न किये, किन्तु सरकार, दिल्ली पुलिस और खासकर भारतीय खेल मंत्रालय के हठवादी रवैये के कारण यह मामला विगत चार मास से अधर में ही लटकते चला आ रहा था।
अब देर से सही,किन्तु दो ही दिन पूर्व देश की सर्वोच्च अदालत और समाज के कुछ उच्च समझे जाते वर्गों और क्षेत्रों के कुछ लोगों द्वारा पहलवानों के हक में आवाज़ बुलन्द किये जाने पर एक ओर जहां इस विवाद के हल होने की उम्मीद बंधी थी, वहीं संघर्षरत पहलवान पक्ष को न्याय मिलने की आस भी जगते हुए प्रतीत हुई थी। इन संघर्षरत पहलवानों के पक्ष में ‘हाअ का नारा’ लगाने वाली हस्तियों में ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा, विश्व क्रिकेट विजेता कपिल देव, दिग्गज क्रिकेटर वीरेन्द्र सहवाग, बैडमिंटन की शीर्ष खिलाड़ी सानिया मिज़र्ा और मुक्केबाज़ निकहत ज़रीन आदि के नाम शामिल हैं। भारत में खेल संघों की इस प्रकार की भीतरी दबंगता और उनके शिखर पदाधिकारियों को प्राप्त राजनीतिक संरक्षण के कारण लगने वाले आरोपों का यह कोई पहला मामला नहीं है। इस प्रकार के मामले पहले भी यदा-कदा सामने आते रहे हैं, किन्तु इस एक मामले की गम्भीरता को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा टिप्पणी किये जाने के बावजूद देश के खेल मंत्रालय, और यहां तक कि केन्द्र सरकार के प्रशासन का किसी भी सूरत हरकत में न आना नि:सन्देह चौंकाता है। तथापि,  राजनीतिक जिन्न का साया इस मामले पर पड़ने की आशंका के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय की ़फतवे जैसी टिप्पणी और समाज के अनेक वर्गों और पक्षों के खुल कर इन महिला पहलवानों के पक्ष में आते जाने से दिल्ली पुलिस प्रशासन ने बृजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध ़गैर-ज़मानती पोक्सो एक्ट सहित दो मामलों में केस दर्ज कर लिया है। इनमें एक मामला एक नाबालिग महिला खिलाड़ी की ओर से शारीरिक यौन-शोषण के आरोप के तहत दर्ज हुआ है। 
नि:सन्देह बृज भूषण शरण सिंह के विरुद्ध महिला पहलवानों द्वारा लगाये गये आरोपों की ज़मीन काफी पुख्ता प्रतीत होती है। इस आन्दोलन को ओलम्पिक पदक विजेता बजरंग पूनिया भी सतत् समर्थन प्रदान कर रहे हैं। दूसरी ओर प्रशासनिक तंत्र की हठ-वादिता का पता इस मामले से सम्बद्ध एक पुलिस अधिकारी के इस तर्क से भी चल जाता है कि आरोपों की बाकायदा जांच करने के बाद ही आरोपी की गिरफ्तारी के बारे में फैसला किया जा सकता है। दिल्ली पुलिस शुरू से ही आरोपी के विरुद्ध केस दर्ज करने में आनाकानी करती रही है। इसके विपरीत आन्दोलनकारियों ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि बृज भूषण शरण सिंह  की गिरफ्तारी के बिना उनका धरना समाप्त नहीं होगा।
हम समझते हैं कि ये महिला खिलाड़ी यदि इतने गम्भीर आरोपों के बैनर उठा कर सड़कों पर उतरी हैं, तो स्थितियों की गम्भीरता को समझा जाना चाहिए और कानून एवं इन्साफ की छत्र-छाया तले इस विवाद का यथाशीघ्र पटाक्षेप किया जाना चाहिए। नि:संदेह इससे देश, भारतीय खेलों और खिलाड़ियों की बदनामी हो रही है। यह पटाक्षेप जितना शीघ्र होगा, उतना देश के हित में भी होगा। बहुत पहले हरियाणा के एक उच्च पुलिस अधिकारी के उत्पीड़न के कारण एक युवा महिला खिलाड़ी प्रतिभा की जान चली गई थी। अब भी, आन्दोलनरत महिला खिलाड़ियों में से एक ने सीलबंद लिफाफे में अपनी जान को ़खतरा होने संबंधी मिल रही धमकियों का ज़िक्र किया है। तथापि इस देश की अदालतें आज भी जन-साधारण की आस्था और विश्वास का केन्द्र बनी हुई हैं। इस मामले की जानकारी स्वयं मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड़ को भी है। अत: उम्मीद की जानी चाहिए कि देश की इन खिलाड़ी बेटियों को इन्साफ अवश्य मिलेगा। जिन धाराओं के अन्तर्गत केस दर्ज हुआ है, उनसे छुटकारा मिलना भी आसान नहीं है। हम समझते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के दखल से देर से ही सही, कुश्ती संघ के अध्यक्ष के विरुद्ध केस दर्ज तो हुआ है। देर-सवेर फैसले का दिन भी ज़रूर आएगा... सो, देर आयद, दुरुस्त आयद, इन्स़ाफ तो होगा ही!