जन्मदाती के बिना और भी होते हैं मां के रूप आज मां दिवस पर विशेष

‘हर रिश्ते में मिलावट देखी, रंगों की सजावट देखी,
पर सालों-साल देखा अपनी मां को...।
न कभी थकावट देखी और न ही ममता में मिलावट देखी।’
कोई भी खुशी हो, कोई भी जोश हो या कोई भी दर्द, सभी भावनाओं में एक चीज़ समान है और वह है इन सभी भावनाओं के समय मुंह से निकलता है ‘मां’ शब्द।
बचपन से सुनते थे कि भगवान हर स्थान पर नहीं हो सकता, इसी कारण उसने मां बनाई। इस बात की गहराई का एहसास दिन-ब-दिन बड़े होते हमें समझ आता रहता है। प्यार, सम्भाल, बनाना, जोड़ना, सुधारना इन शब्दों का सुमेल है मां।
हम सब जानते हैं कि मां के प्यार की किसी के साथ भी तुलना ठीक नहीं। दुनिया में हमें कोई उतना प्यार नहीं कर सकता जितना मां कर सकती है।
मां के सहारे बच्चा दुनिया में, समाज में कदम रखना सीखता है, दुनिया में विचरण करना सीखता है और जीवन के प्रत्येक मुश्किल समय में मां का हाथ हमेशा हमारे पीछे एक चट्टान की तरह खड़ा रहता है। 
मां ही हमारे बीच शुरू से एक आत्म-विश्वास पैदा करती है, हमें ज़िंदगी के छोटे-बड़े डर का सामना करना सिखाती है।
‘मैं तेरी मां हूं, मुझे पता चल जाता है कि तेरे मन में कोई बात है।’ ये पंक्तियां हमने बहुत बार अपनी मां से सुनी होंगी और सुनकर सोचा होगा कि मां को कैसे पता चल जाता है कि मेरे मन में कुछ चल रहा है।
वाकई हमारे दिल तथा मन के तार मां के दिल से जुड़े होते हैं, जिसके कारण हमारे मन की अवस्था मां पढ़ लेती है। मां के ज़रिये ही हम अपनी संस्कृति, अपनी बोली, अपनी पृष्ठभूमि, रीति-रिवाज़ के साथ जुड़ते हैं।
अपनी सन्तान को हमेशा मेहनत, सकारात्मक सोच के साथ जोड़ना, समाज की मुश्किलों का सामना करना आदि सब अलग-अलग पहलुओं में निपुण बनाने की कोशिश एक मां करती है।
मां द्वारा किया गया यह उत्साह वर्धन बच्चों में मुश्किलों का सामना करने की बड़ी हिम्मत पैदा करता है। 
हम चाहे जितने भी बड़े हो जाएं, मां के लिए बच्चे ही रहते हैं। मां का मन, दिल और दिमाग हमेशा अपने बच्चों में ही रहता है। शारीरिक तौर पर जितना चाहे दूर हो जाएं, पर एक मां का ध्यान हर समय अपनी सन्तान में रहता है।
क्या हम सिर्फ हमारी जन्मदात्री को ही मां कह सकते हैं? वास्तव में ‘मां’ शब्द का दायरा बहुत व्यापक है।
बचपन से जिस दादी, नानी या घर के किसी बड़े ने बच्चों को पाला, मां के घर न होने पर हर चीज़ का ध्यान रखा, उसके लिए अंतिम सांस तक वह प्राणी मां का ही रूप है।
कोई व्यक्ति जो दु:ख में आपका साथ दे, आपकी हर बात समझे, प्यार और जिम्मेदारी के साथ हर समय आपका सहारा बने, और वह प्राणी चाहे होस्टल की वार्डन क्यों न हो, उस बच्चे के लिए ज़िंदगी भर मां का दर्जा ले लेती है।
जिनके सिर पर मां या घर का साया नहीं होता, उस इन्सान के लिए वह शख्सियत ही मां बन जाती है, जो उसके दिल की बात समझे, प्यार करे, दु:ख-सुख में साथ खड़ी हो और इस दुनिया की बुरी नज़रों से बचा कर रखने की कोशिश करे।
प्रत्येक इंसान के लिए जन्म देने वाली मां के अतिरिक्त कोई ऐसा शख्स जिसका उसकी ज़िंदगी पर प्रभाव पड़ता है, वह मां जैसा ही दर्जा रखता है।
मां के दिए प्यार तथा देखभाल का हम मुकाबला नहीं कर सकते, देन नहीं दे सकते, पर इतना ज़रूर कर सकते है कि इस शख्सियत को समुचित आदर, सम्मान व प्यार दें। उसकी आयु के साथ पनपती प्रत्येक ज़रूरत को पूरा करने की कोशिश करें, उसकी दी शिक्षाओं पर चल कर समाज में अच्छे काम करें, नाम रोशन करें, यह ही हमारी अपनी माताओं के प्रति सच्ची देन होगी, जिससे उनका सिर अपनी सन्तान को देख कर हमेशा गर्व से ऊंचा रहेगा और हमेशा-हमेशा के लिए वृद्ध आश्रमों को ताले लग जाएंगे।
आओ, अकेले मां दिवस पर ही नहीं बल्कि प्रत्येक दिन की शुरुआत और दिन का अंत मां को नमन करते हुए उनको समर्पित करें।