बिजली का करंट

पंजाब सरकार द्वारा जालन्धर की लोकसभा सीट के उप-चुनाव के एकदम बाद बिजली दरों में की गई भारी वृद्धि ने प्रदेश वासियों को एक और बड़ा झटका दिया है। जालन्धर लोकसभा के उप-चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत का एक कारण सरकार द्वारा घरेलू क्षेत्र में प्रति मास 300 यूनिट मुफ़्त बिजली देना भी रहा है। विधानसभा चुनावों से पूर्व पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल ने लोगों के साथ जो जन-लुभावने वायदे किये थे, उनमें बिजली मुफ़्त देने का वायदा भी शामिल था। इस वायदे को पूरा करना तथा इसके बाद प्रदेश के समक्ष आर्थिक तौर पर पैदा होने वाली स्थितियों से निपटना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती थी।
पिछली सरकारों द्वारा इस तरह के वायदे करके जो योजनाएं शुरू की गईं थीं, उनके कारण पहले ही प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था डावांडोल रही थी। ऋण का भार लगातार बढ़ता जा रहा था। विगत 25 वर्ष से किसानों सहित कुछ अन्य वर्गों को मुफ़्त बिजली देने से प्रदेश में जिस तरह के हालात बन रहे हैं, वे सभी के सामने हैं। इस कारण अन्य मुहाज़ों पर प्रदेश को कितना नुकसान सहन करना पड़ा है, वह भी अलग विषय है। मुफ़्त की रेवड़ियां बांटने की सरकारों की घोषणाओं ने प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है। लोग शायद ज्यादा ही भोले-भाले या मुफ़्तखोरे बन चुके हैं कि वे ऐसी घोषणाओं से खुश होकर राजनीतिज्ञों के पीछे लग जाते हैं तथा उन्हें उस समय यह एहसास नहीं होता कि घूम-फिर कर यह आर्थिक बोझ किसी न किसी तरह उनके ही सिर पर लादा जाना है। आज जितना ऋण पंजाब पर चढ़ चुका है तथा उसका जितना ब्याज अदा करना पड़ा रहा है, यदि उसका हिसाब-किताब लगायें तो यह सच्चाई सामने आती है कि यहां पैदा होने वाला हर बच्चा जन्म लेते ही ऋणी होता है। यदि सरकारों ने मुफ़्त की चीज़ें बांटने की जन-लुभावन घोषणाएं जारी रखनी हैं तथा फिर इन पर क्रियान्वयन करना है तो यहां रहते जन-साधारण को आखिर में इन नीतियों की बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। यदि सिर्फ पॉवरकाम की बात करें तो उसने सरकार से अब तक 21,000 करोड़ से अधिक की राशि लेनी है। पॉवरकाम को सरकार यह पैसा कैसे अदा करेगी? उसके पास अब घरेलू, व्यापारिक तथा औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली दरें बढ़ाने के अलावा और कोई विकल्प शेष नहीं बचा। बिजली दरों में 80 पैसे प्रति यूनिट तथा फिक्सड चार्जिज़ में वृद्धि भिन्न-भिन्न वर्गों के लिए बड़ा भार बनेगी। पंजाब के व्यापारी तथा उद्योगपति पहले ही यहां से तौबा कर चुके हैं।
पिछले दशकों में बड़ी संख्या में उद्योग प्रदेश से बाहर चले गये हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश तथा गुजरात आदि प्रदेशों की ओर रुख कर लिया है। ज्यादातर उद्योगों को कच्चा माल प्रदेश में बाहर से मंगवाना पड़ता है। यदि बिजली और महंगी हो गई तो प्रदेश से उद्योगों तथा व्यापारिक संस्थानों का पलायन और भी तेज़ हो जाएगा, जिसका खमियाज़ा किसी न किसी रूप से प्रदेश को भुगतना पड़ेगा। यदि ऐसी घोषणाओं के बाद बड़ी संख्या में उद्योगपतियों तथा व्यापारियों द्वारा बड़ी चिन्ता व्यक्त की गई है तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि विगत लम्बी अवधि से भिन्न-भिन्न कारणों के दृष्टिगत व्यापारिक तथा औद्योगिक गतिविधियां हाशिये पर जा चुकी थीं। इस से पहले भी उद्योगों के लिए बिजली दरों में वृद्धि की गई थी। अब और वृद्धि का बोझ उन्हें असहनीय प्रतीत होने लगा है। कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के साथ-साथ बिजली दरों में वृद्धि पहले ही बीमार हो रहे उद्योगों को और भी बीमार कर देगी। पिछले 14 मास में प्रदेश की मौजूदा सरकार ने 30,000 करोड़ से अधिक का ऋण और ले लिया है, जिससे अर्थ-व्यवस्था के और भी डावांडोल हो जाने की सम्भावना बनी दिखाई देती है। आगामी समय में सरकार अतिरिक्त ज़रूरी राजस्व कैसे बढ़ा सकेगी, यह भी उसके सामने एक मुश्किल सवाल आ खड़ा हुआ है। अभी तो लोगों के सिर बिजली दरों का बोझ ही डाला गया है, जिसे उठा पाना लोगों के लिए बेहद मुश्किल होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द