मैं गद्दार तो नहीं हूं! 

एक्शन इतनी जल्दी हो जाएगा, इसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। .... उसे इस बात की कदापि तवक्को नहीं थी कि एक्शन होगा भी। वैसे, उसने देखा था, और महसूस भी किया था, हालांकि सच यही हुआ, कि एक्शन हुआ भी, और वह कामयाब भी रहा। वह जो कुछ कहना और करना चाहती थी, वह उसने कहा भी, और किया भी, हालांकि यह भी सही है कि उसका निशाना सचमुच बहुत सही जगह पर लगा था। कच्चे बादाम के साथ लपेट कर फैंका गया कागज़ का टुकड़ा अफसर जैसे दिखते शख़्स की झोली में गिरा था शायद। जीपों का क़ािफला एकाएक थोड़ी दूरी पर जाकर रुक गया था। अगली जीप से अफसर जैसा दिखता एक शख़्स नीचे उतरा था। उसे देख कर दूर से ही पता चल गया था कि वह एक खातून है। मज़बूत-गठा हुआ जिस्म, थोड़ा छोटा कद। तांबे जैसा दमकता, ़खूबसूरत रौबदार चेहरा। अफसर के दायें हाथ में पकड़ा हुआ था फौजी सम्मान-सूचक बेंत...अदब और सलीका उस के प्रत्येक रौब-दाब में साफ-साफ झलक रहा था। उसके जीप से उतरते ही आगे और पीछे वाली दोनों जीपों में से भी पांच-सात सैनिक जवान अपने वाहनों से उतर कर बड़ी मुस्तैदी से उसके गिर्द घेरा बना कर, थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सुरक्षा-स्वरूप खड़े हो गये थे।
औरत पुलिस अफसर ने अब इधर-उधर, ऊपर-नीचे देखना शुरू कर दिया था। अफसर जिस ओर भी देखतीं, दो-चार जवान दो-चार कदम आगे बढ़ कर मुस्तैदी से खड़े हो जाते। औरत अफसर ने अपनी झोली में गिरे कागज़ को खोल कर पढ़ा था शायद। साफ-साफ अंग्रेज़ी में कुल सात ही शब्द लिखे थे। पहली पंक्ति में दो शब्द थे—सीक्रेट प्लीज़! दूसरी पंक्ति में तीन लफ्ज़ थे—प्लीज़, हैल्प मी! ...और फिर तीसरी पंक्ति में भी सिर्फ दो ही शब्द थे—सेव मी। उसने महसूस किया था, कि थोड़ी देर इधर-उधर देख कर, और आस-पास की स्थितियों का मौका-मुआहना कर वह खातून अफसर जीप में बैठ कर वहां से चली गई थीं।
इसके बाद दिन भर उसके मन में अजीब-अजीब किस्म के विचार बड़ी तेज़ी से ऊपर-नीचे होते रहे। उसका दिल भी दिन भर धौंकनी की तरह धड़कता रहा। उस समय भी, उसके मन में कुछ इसी प्रकार विचार उमड़-घुमड़ करते रहे कि, बहुत मुमकिन है, अफसर ने कागज़ के टुकड़े को किसी बच्चे की शरारत समझ कर दूर कहीं खाई में फैंक दिया हो। कुछ भी हो सकता था, परन्तु अभी तक हवा के ज़रा-सा भी आगे न सरकने का सबब उसकी समझ में नहीं आ रहा था। तभी एक और विचार ने जैसे उसे भीतर तक छील कर रख दिया। अश़फाक अली और घर के दीगर मर्दों की पहुंच बड़ी ऊपर तक मानी जाती है। तभी तो ़गद्दारी और वतन-दुश्मनी के इतने बड़े-बड़े कारनामों के बावजूद आज तक कभी इनका बाल भी बांका नहीं हुआ। 
उसे यह भी महसूस हुआ, कि यदि यह बात अश़फाक अली तक पहुंच गई, तो उसकी ़खैर नहीं होगी। इस घर के मर्दों के लिए किसी औरत के वजूद को खत्म कर देना, कोई मायने नहीं रखता। इससे पहले परिवार की कई औरतों का ऐसा हश्र हो चुका है, जो पर्दे के पीछे ही रहा। इस विचार के आते ही उसका पूरा वजूद ़खौफ से जैसे कांप गया।
फिर उसे यह भी ख़्याल आया कि हो सकता है कि उस अफसर ने अपने आला अफसरों से बात की हो, और वहां से बात फिर वापिस आने में वक्त तो लगेगा ही न। बड़ी देर बाद पलंग से उठकर उसने दो-चार बार नीचे झांक कर देखा भी था... गाड़ियों की आमद-ओ-रफ़्त में इज़ाफा तो दिखा था।
इस प्रकार पूरा दिन इसी उधेड़-बुन में निकल गया था। कभी वह अपने जिस्म पर काक्रोचों के रेंगने जैसे एहसास को महसूस करती, और कभी अपने भीतर पैदा हुए जुनून के बिच्छुओं जैसे ़ख़ौफ से सिहर उठती।
इस प्रकार पूरा दिन आहिस्ता-आहिस्ता उसकी मुट्ठियों में रिसती रेत की मानिंद सरक गया था। वह उठी और सामने वाले आदम-कद आईने के सामने जमकर खड़े हो गई थी। सलेटी रंग की चादर में लिपटा शाम का सन्नाटा धीरे-धीरे उसके कमरे में उतर कर उसके बदन में जब्री दाखिल होने लगा था। 

(क्रमश:)