दुनिया का प्राचीनतम जीव लैम्पशैल 

दीपकवची एक अद्भुत समुद्री जीव है। अंग्रेजी में इसे लैम्पशैल कहते हैं। दीपकवची का आकार प्राचीन काल में रोम में उपयोग में लाए जाने वाले तेल के लैम्प की तरह होता है, अत: इसे यह नाम दिया गया। दीपकवची की लगभग 260 प्रजातियां है तथा पूरे विश्व के सागरों और महासागरों तक में पाया जाता है। दीपकवची उत्तरी अटलांटिक महासागर, आर्कटिक महासागर और भूमध्य सागर में बहुत बड़ी संख्या में मिलता है। हिंद प्रशांत क्षेत्रों में इसकी एक दर्जन से अधिक प्रजातियां हैं। इसे जापान, दक्षिणी आस्टे्रलिया और न्यूजीलैंड के पास के सागरों में बहुतायत से देखा जा सकता है। ठंडे सागरों की अपेक्षा गर्म सागरों और महाद्वीपीय ढलान वाले भागों में दीपकवची की संख्या अधिक है। यह सागर के उथले पानी से लेकर 5000 मीटर तक की गहराई में सरलता से रह सकता है। दीपकवची कभी-कभी सागर तटों पर भी आ जाता है, किंतु अधिकांश प्रजातियों के दीपकवची गहराई पर रहते हैं।
दीपकवची मांद बनाकर रहने वाला जलचर है। लारवा अवस्था पूरी करने के बाद यह किसी स्थान पर स्थायी रूप से बस जाता है और मांद बनाना आरंभ कर देता है। मांद की लंबाई 5 सेंटीमीटर से 25 सेंटीमीटर तक होती है। यह मांद के ऊपरी भाग में रहता है। दीपकवची की कुछ प्रजातियां मांद नहीं बनाती और वह पूरा जीवन सागर में ही स्वतंत्र रूप से विचरण करती हैं। दीपकवची दिखने में मोलस्क जैसा दिखता है किंतु उससे भिन्न होता है। इसकी लंबाई 3 सेंटीमीटर से 8.3 सेंटीमीटर तक होती है। इसका बाहरी आवरण कैल्शियम, कार्बोनेट का बना होता है, जिसका रंग हल्का ग्रे या पीला होता है। कभी-कभी इस पर लाल या नारंगी रंग वाले कांटे होते हैं, जो शत्रुओं से इसकी सुरक्षा करते हैं। इसका शरीर कोमल होता है। आगे की तरफ मुंह होता है और मुंह के दोनों ओर मुड़ी हुई दो भुजाएं होती हैं। यह एक आलसी जीव है। भोजन के लिए ये कहीं आता जाता नहीं है। इसकी सभी जरूरतें एक ही स्थान पर अपनी मांद के पास ही पूरी हो जाती हैं। यह एक शाकाहारी जीव है, जो समुद्री पौधों के छोटे-छोटे कण खाकर जीवित रहता है।
दीपकवची में नर और मादा अलग-अलग होते हैं प्रजनन काल में मादा अंडे देती है और नर शुक्राणु छोड़ता है। इसके अंडे और शुक्राणु खुले सागर में स्वतंत्र रूप में मिलते हैं, जिससे अंडों का निषेचन होता है। दीपकवची की अलग-अलग प्रजातियों में अंडों का निशेचन अलग-अलग स्थानों पर होता है।
 अंडों से जब बच्चे निकलते हैं तो वे जीवित बच्चों जैसे ही दिखते हैं। अंडे फूटने के बाद उनसे लारवे निकलते हैं। एक दिन ये तैरते हैं और दूसरे दिन सागर तल में किसी भी जगह जाकर स्थायी रूप से बस जाते हैं। इनके लारवों के आकार और रूप रंग में पर्याप्त भिन्नता होती है। यह अत्यंत प्राचीन जीव है। कहा जाता है कि 44 करोड़ साल पहले दीपकवची की 3000 से अधिक प्रजातियां पायी जाती थी, जो अब विलुप्त हो चुके हैं। आजकल इसकी मात्र 260 प्रजातियां हैं। दीपकवची पुरातत्वेत्ताओं के लिए अत्यंत महत्व का जीव है। वे इसकी सहायता से चट्टानों को पहचानकर उनका काल निर्धारण करते हैं। भोजन के रूप में इसका सदियों से इस्तेमाल किया जा रहा है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर