देश के लोकतंत्र तथा संघीय ढांचे की चिन्ता है, तो आम आदमी पार्टी ़गैर-ज़रूरी टकराव छोड़े

दिल्ली में प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले करने संबंधी केन्द्र सरकार द्वारा 19 मई को एक विशेष अध्यादेश जारी करके एक अथारिटी बनाने एवं इस अथारिटी द्वारा प्रत्यक्ष रूप से तबादलों के संबंध में अंतिम फैसला करने का अधिकार लैफ्टिनैंट गवर्नर को देने के फैसले के विरुद्ध आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक तथा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने देश भर में केन्द्र सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल रखा है। इस अध्यादेश को संसद में तथा खास तौर पर राज्यसभा में पारित होने से रोकने हेतु अरविन्द केजरीवाल तथा मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा भिन्न-भिन्न विपक्षी पार्टियों के नेताओं के साथ मुलाकातें की जा रही हैं। अब तक लगभग दस पार्टियों के नेताओं के साथ आम आदमी पार्टी के उपरोक्त नेताओं की मुलाकातें हो चुकी हैं तथा विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने उन्हें इस संबंध में समर्थन देने का वायदा भी किया है। जिन अहम नेताओं की बैठकें हो चुकी हैं, उनमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार तथा उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, शिव सेना (बाल ठाकरे) के नेता उद्धव ठाकरे, तमिलनाडू के मुख्यमंत्री स्टालिन, सी.पी.एम. के महासचिव कामरेड सीता राम येचुरी तथा उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव आदि शामिल हैं।
इन नेताओं के साथ बातचीत करते हुए श्री अरविन्द केजरीवाल तथा मुख्यमंत्री भगवंत मान ने यह कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली के प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले करने के अधिकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार को दिये थे, परन्तु केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के इन आदेशों को पलटते हुए अध्यादेश जारी करके प्रत्यक्ष रूप से पुन: अधिकार अपने हाथ में ले लिए हैं। यह लोकतंत्र तथा संघीय ढांचे पर बहुत बड़ा हमला है। इसका सभी विपक्षी पार्टियों को मिलकर सामना करना चाहिए।
इस सन्दर्भ में ही विगत रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में आम आदमी पार्टी द्वारा एक प्रभावशाली रैली की गई, जिसे दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल तथा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के अलावा देश के प्रसिद्ध वकील कपिल सिब्बल द्वारा भी सम्बोधित किया गया। इस रैली को सम्बोधित करते हुये श्री अरविन्द केजरीवाल ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पर गम्भीर आरोप लगाते हुये कहा कि वह लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखते तथा देश को तानाशाही  की ओर लेकर जा रहे हैं। इस तरह राज्यों के अधिकार भी वह अपने हाथों में केन्द्रित करते जा रहे हैं। उन्होंने अपना यह आरोप फिर दोहराया कि दिल्ली के लैफ्टिनैंट गवर्नर उनकी सरकार को काम नहीं करने दे रहे। इस अवसर पर सम्बोधित करते हुये पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पंजाब के राज्यपाल श्री बनवारी लाल पुरोहित के विरुद्ध भी कुछ टिप्पणियां कीं। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली की तरह ही पंजाब के राज्यपाल भी उनकी सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे हैं। राज्यपाल ने अधिवेशन बुलाने से इन्कार कर दिया था, जिस कारण उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में जाना पड़ा था। देश के प्रसिद्ध वकील श्री कपिल सिब्बल ने भी इस रैली को सम्बोधित करते हुये आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देश की सभी संस्थाओं पर कब्ज़ा करके उन्हें अपनी गोद में बिठा लिया है। यह देश के लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा ़खतरा है। इसके विरुद्ध सभी राजनीटिक पार्टियों को एकजुट होकर लड़ाई लड़नी चाहिए।
नि:सन्देह विगत लम्बी अवधि से केन्द्र सरकार में तानाशाही रुझान बढ़ा है तथा संघीय ढांचा भी इस कारण पहले से कमज़ोर हुआ है। इसलिए देश की विपक्षी पार्टियों को एकजुट होकर लड़ने की ज़रूरत भी है, परन्तु यदि विपक्षी पार्टियां सचमुच देश में लोकतंत्र तथा संघीय ढांचे को मज़बूत देखना चाहती हैं तो उन्हें इस संबंध में अपनी कथनी और करनी को भी एक करना होगा क्योंकि यह अक्सर देखा गया है कि  कई विपक्षी राजनीतिक पार्टियां राष्ट्रीय स्तर पर तो तानाशाही रुझान  बढ़ने तथा केन्द्र द्वारा संघीय ढांचे को कमज़ोर करने के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करती दिखाई देती हैं परन्तु अपने-अपने प्रदेशों में जहां वे सत्तारूढ़ होती हैं, वहां वे अपनी विपक्षी पार्टियों तथा स्वतंत्र तथा निष्पक्ष मीडिया को दबाने से संकोच नहीं करतीं। जिस तरह केन्द्र सरकार पर ये आरोप लगते हैं कि वह विपक्षी पार्टियों के विरुद्ध सी.बी.आई., ई.डी. तथा आयकर विभाग आदि एजेंसियों का चयनित रूप में दुरुपयोग करती है, उसी तरह के आरोप भिन्न-भिन्न प्रदेशों में सत्तारूढ़ विपक्षी पार्टियों पर भी लगते हैं। इन पार्टियों द्वारा भी प्रदेश की पुलिस या विजीलैंस विभाग द्वारा अपनी विपक्षी पार्टियों तथा अपने प्रदेशों के स्वतंत्र तथा निष्पक्ष मीडिया को दबाने के प्रयास किये जाते हैं।
इस संबंध में यदि आम आदमी पार्टी को देखें तो इसका दोहरा किरदार सामने आता है। इसकी ओर से भी भ्रष्टाचार को खत्म करने के नाम पर पंजाब में कांग्रेसी, अकाली और भाजपा नेताओं के खिलाफ आय से अधिक जायदाद बनाने या भ्रष्टाचार करने के आरोपों के दृष्टिगत विजिलैंस द्वारा अलग-अलग मामले दर्ज करके उनकी धर-पकड़ शुरू की गई है। इसी प्रकार राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया को दबाने और खामोश करने के लिए भी अलग-अलग हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। एक तरफ ‘आप’ सरकार द्वारा मीडिया से अपने पक्ष में प्रचार करवाने के लिए देश भर में बड़े स्तर पर उन्हें करोड़ों रुपये के विज्ञापन दिए जा रहे हैं और कई बार मीडिया अदारों को विरोधी पार्टियों की कवरेज रोकने के लिए भी अलग-अलग ढंग से आदेश दिए जा रहे हैं तथा दूसरी ओर आलोचनात्मक दृष्टि रखने वाले मीडिया के विज्ञापन बंद करके और झूठे केसों में फंसा कर उनको दबाने का यत्न किया जा रहा है। यहां यह भी वर्णनीय है कि यह पार्टी अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में से पैदा हुई थी और इस आन्दोलन ने उस समय भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर लोकपाल की शक्तिशाली संस्था कायम करने की मांग की थी। 2013 में डा. मनमोहन सिंह की सरकार के समय राष्ट्रीय स्तर पर लोकपाल की संस्था कायम करने तथा राज्यों के स्तर पर लोकायुक्त नियुक्त करने संबंधी कानून पास हो गया था। इस संदर्भ में ही दिल्ली और पंजाब में लोकायुक्तों की नियुक्ति के लिए कानून पास किए गये, लेकिन दिल्ली में श्री अरविंद केजरीवाल की सरकार ने भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए और हर व्यक्ति की लोकायुक्त तक पहुंच बनाने के लिए प्रभावशाली व्यवस्था कायम नहीं की। पंजाब में भी सत्तारुढ़ होने के बाद मुख्यमंत्री भगवंत मान की सरकार ने चाहे भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाया और विरोधी पार्टियों के खिलाफ विजिलैंस के माध्यम से केस दर्ज करके अनेक मामलों की जांच भी शुरू की और अनेक नेताओं को गिरफ्तार भी किया गया, परन्तु विरोधी पार्टियों का आरोप यह है कि भगवंत मान की सरकार चयनित रूप से बदला लेने की भावना केअन्तर्गत इसका प्रयोग कर रही है, ताकि राज्य में विरोधी राजनीतिक पार्टियों की छवि खराब करके अलग-अलग चुनावों में इसका राजनीतिक लाभ उठाया जा सके और विरोधी पार्टियों में डर और सहम का माहौल भी बना कर रखा जाए।
इस संदर्भ में हमारी बड़ी स्पष्ट राय है कि यदि किसी नेता या व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार के ठोस सबूत हैं, तो उसके खिलाफ कार्रवाई तो होनी चाहिए लेकिन ऐसी कार्रवाई पंजाब पुलिस के विजिलैंस विंग द्वारा नहीं बल्कि राज्य में लोकायुक्त की स्वतंत्र, निष्पक्ष और प्रभावशाली संस्था स्थापित करके उसी माध्यम से होनी चाहिए और लोकायुक्त के अन्तर्गत ही एक जांच एजेंसी होनी चाहिए, जिसकी ओर से लोकायुक्त द्वारा तथ्यों एवं सबूतों के आधार पर दर्ज किए गये मामलों की जांच की जाए। प्रत्यक्ष रूप में यदि पंजाब पुलिस का कोई विंग भ्रष्टाचार के नाम पर विरोधी पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई करता है तो लाज़िमी तौर पर राज्य सरकार पर बदलाखोरी के ढंग से काम करने के आरोप लगेंगे। इसी कारण ही जब आम आदमी पार्टी के नेता श्री अरविंद केजरीवाल ने केन्द्र के अध्यादेश के विरुद्ध कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व से समर्थन मांगा तो पंजाब के कांग्रेसी नेताओं द्वारा ‘आप’ को समर्थन देने का विरोध किया गया।
यदि राष्ट्रीय स्तर पर लोकतंत्र और संघीय ढांचे को मज़बूत बनाने के लिए आम आदमी पार्टी सच में कोई ठोस काम करना चाहती है, तो इस संबंध में उसको अलग-अलग राज्यों में विरोधी पार्टियों के प्रति अपना दृष्टिकोण भी बदलना पड़ेगा। उनके साथ अकारण टकराव उत्पन्न करने से भी संकोच करना चाहिए। इसके साथ ही इसको पंजाब में राज्यपाल श्री बनवारी लाल पुरोहित के साथ उत्पन्न किया गया अनावश्यक टकराव भी खत्म करना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार राज्यपाल द्वारा राज्य सरकार को लिखे गये पत्रों का जवाब देना चाहिए। यदि राष्ट्रीय स्तर पर आम आदमी पार्टी दूसरी विरोधी पार्टियों से सहयोग लेने के लिए उनके नेताओं के साथ मुलाकातें करती रहेगी और दूसरी तरफ अपनी राज्य सरकारों वाले राज्यों में राजनीतिक लाभों के लिए विरोधी पार्टियों की छवि खराब करने और उनको डराकर रखने के लिए दमनकारी नीतियां अपनाएगी, तो वह देश में लोकतंत्र और संघीय ढांचे को कभी भी मज़बूत नहीं कर सकेगी बल्कि लोगों में यह प्रभाव जाएगा कि इस पार्टी का दोहरा चेहरा है और इसका लोकतंत्र और संघीय ढांचे में कोई गहरा विश्वास नहीं है। शायद इसी कारण जम्मू-कश्मीर नैशनल कांफ्रैंस के नेता श्री उमर अब्दूल्ला ने आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक श्री अरविंद केजरीवाल की लोकतंत्र और संघीय ढांचे संबंधी प्रतिबद्धता पर गम्भीर सवाल उठाते हुए यह कहा है कि जब जम्मू-कश्मीर में केन्द्र सरकार ने धारा 370 को खत्म करने के लिए बिल प्रस्तुत किया था, तब आम आदमी पार्टी द्वारा उसका समर्थन क्यों किया गया था? उस समय उसको लोकतंत्र और संघीय ढांचे की याद क्यों नहीं आई? इसलिए हम आम आदमी पार्टी के नेतृत्व को यह सलाह देना चाहते हैं कि देश और लोकतंत्र के व्यापक हितों के लिए वह अपनी कथनी और करनी में समानता लाए और विरोधी पार्टियों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी और पंजाब में भी रिश्ते अच्छे बनाने का यत्न करे।