महागुरु का मलाल

जहां-जहां जा रहे हमारे महागुरु, हमारे आका, वहां-वहां जाम हो रहा चक्का। कभी आंधी के रफ्तार से वगैर सोचे-समझे विचार किए, मेरे इर्द-गिर्द घुमने वाले कम्बख्तों को पलटी मारते देखकर हक्का-बक्का। कभी अपने जुमलों के चासनी में चासकर अच्छे- भले इंसान को बोका बनाकर अपना काम चोखा कर रहा था आज मौका पाते भक्तों ने अपनी बातों का गोला झोंका- महागुरू बहुत बनाया बोका। देकर धोखा फंसा खुद। धर्मांधता का आंधी बहाकर कराया तूने युद्ध। एक-दूसरे के विरुद्ध। अंधीभक्ति का डोज एक अवधि के बाद हो गया स्पायर। अब तक जो आंखों पे बिठाए थे, वहीं महागुरू को कुत्ता, कमीना, कह रहा कायर।
अभी कल की बात है हमारे पड़ोसी अंधेभक्त मिस्टर नायर आका के करतूतों को देखकर कटु वक्तव्यों का फायर करते हुए कहा रहा था। बस देखते रहो, लपेटते रहो अंधभक्ति के तावा पर अपनी रोटी सेकते रहो। जनता जान गई अब कुछ नहीं कहेगी। बखूबी अब तुझको ले डूबेगी। क्योंकि जहां भी जाते हो रायता फैलाते हो। आंखों से आंसू बहाते हो। लेकिन अब पब्लिक सब समझ रही है ठीक-ठीक, जो पकड़े हो लीक। जनता का यह खीझ। अब और नहीं मेरे आका, जान गई आवाम। भांपकर तेरा इरादा एक पक्ष को दूसरे से लड़ाकर प्रगति के पहिया कर रहा तू जाम। इस बार तेरा काम तमाम। फकीर होने का लकीर खींचकर, बनकर अमीर जनता को बेवकूफ मत बना। यदि अपने रवैए को ऐसा ही रखा तो आंधी की तरह आए हो तो तूफान की तरह जाओगे। क्योंकि देश की तमाम छोटे-बड़े मंडली तुम्हारी कुंडली पढ़कर ऐसा निर्णय लिया है, वादा करके आवाम को कुछ नहीं दिया है। बदले में झुठ का पुलिंदा, आश्वासन के सिवा कुछ नहीं दिया है। भाईचारे के भाव को अपने नफरत का जामा पहनाकर आपसी लगाव में दुराव का बीज बोकर अपना भरपूर फायदा लिया है। जुमला व रायता फैलाने के सिवाय कुछ नहीं किया है।
आज देश में एक बड़ा वर्ग तुम्हारे विरोध में खड़ा हो अनुरोध कर रहा है। पद की गरिमा का नहीं है कि ख्याल, तुमको लेकर चल रहा है भयंकर भारी बवाल। छोड़ दे अब ये जंजाल। होने वाला है दुर्गति होना है बुरा हाल। क्यों कर रहे देश का बे मतलब हलाल। अपने गिरेबान में झांक कर देखने का भी फुर्सत नहीं। प्रतिष्ठा में प्राण गंवाने से क्या फायदा देश विकास के जो लीक पर चल रहा था वह चीख-चीखकर तुम्हारे करतूतों को देखकर नाक धुनते हुए लीक कर रहा है।
क्योंकि सत्ता की रोटी जिसने खाई अब उसे फिर से कैसे वापस हो पुन: लाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहा है। एक बार फिर से धर्म के चाशनी में चाशने का प्रयास करते हुए आपस में वैमनस्यता फैलाने की चेष्टा कर रहा है। लेकिन अब हर तरह से होशियार जनता सत्ता के चढ़े बुखार को देख यह प्रक्रिया अपनाई। जनता कह रही है- अब रहने दो भाई। राम दुहाई तेरे संग रहना नहीं अब भाई। सब कुछ गंवाने के बाद अब समझ में आई। 

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