राहुल तथा कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ीं

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मानहानि मामले में गुजरात हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिली। इस तरह उनकी लोकसभा की सदस्यता बहाल होने की सम्भावना फिलहाल ़खत्म हो गई है। चाहे कांग्रेस ने इस ़फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की घोषणा की है। उक्त ़फैसला सुनाते हुए जस्टिस हेमंत प्राछक ने कहा है कि सूरत की मैट्रोपोलिटन अदालत द्वारा उन्हें इस मामले में सुनाई गई दो वर्ष की सज़ा न्यायपूर्ण, उचित तथा जायज़ है। उन्होंने यह भी कहा कि इस सज़ा पर रोक लगाने का कोई वाजिब आधार नहीं है। यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि सज़ा पर रोक लगाना नियम नहीं है, अपितु एक अपवाद है जिसका सिर्फ विशेष मामलों में ही सहारा लिया जाता है। दिलचस्प बात यह भी है कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने देश में राहुल गांधी पर चल रहे अन्य दस फौज़दारी मामलों का भी हवाला दिया तथा यह भी कहा कि वीर सावरकर के पौत्र द्वारा कैम्ब्रिज में राहुल गांधी द्वारा वीर सावरकर के विरुद्ध प्रयुक्त की गई अपमानजनक शब्दावली के लिए पुणे में भी मामला दर्ज किया गया है। इसी तरह एक अन्य शिकायत लखनऊ की अदालत में भी दर्ज है।
यहां वर्णननीय है कि 23 मार्च को उक्त ़फौजदारी मानहानि मामले में सूरत की मैट्रोपोलिटन अदालत ने राहुल गांधी को दो वर्ष की सज़ा सुनाई थी। यह मामला भाजपा के विधायक परनेश मोदी ने राहुल गांधी द्वारा कर्नाटक के विगत चुनावों के दौरान एक रैली में अपने भाषण के दौरान ललित मोदी, नीरव मोदी आदि का ज़िक्र करते हुए यह कहने पर दर्ज करवाया था कि ‘सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों है।’ इस ़फैसले के उपरांत लोकसभा सचिवालय द्वारा राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता को खत्म कर दिया गया था। राहुल गांधी ने इस ़फैसले को सूरत के सैशन जज की अदालत में चुनौती दी थी परन्तु उस अदालत ने राहुल गांधी की सज़ा पर स्टे जारी करने से इन्कार कर दिया परन्तु ़फैसले के लिए मामले की सुनवाई होना अभी शेष है। इसके बाद अपनी सज़ा पर रोक लगाने के लिए राहुल गांधी ने गुजरात हाईकोर्ट का सहारा लिया था, जहां उन्हें पुन: असफलता का सामना करना पड़ा।
कांग्रेस पार्टी तथा राहुल गांधी के समर्थक कानून विशेषज्ञ जिनमें उनके वकील तथा कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी भी शामिल हैं, का यह विचार है कि आई.पी.सी. की धाराओं 499 तथा 500 (आपराधिक मानहानि के तहत) राहुल गांधी को अधिक से अधिक सज़ा दी गई है, जबकि उनका अपराध इतना बड़ा नहीं था। अभिषेक मनु सिंघवी ने यह भी टिप्पणी की है कि गुजरात हाई कोर्ट का फैसला निराशाजनक है परन्तु  अनापेक्षित नहीं। उन्होंने यह भी कहा है कि आ़िखरी अदालत लोगों की होती है तथा लोग देख रहे हैं कि कैसे एक पूरा कुनबा एक व्यक्ति के पीछे हाथ धोकर पड़ गया है, जो सच बोलता है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें सर्वोच्च न्यायालय पर पूरा विश्वास है तथा इस फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में जल्द ही अपील की जाएगी। दूसरी तरफ भाजपा ने इस ़फैसले का स्वागत किया है।
नि:संदेह राहुल गांधी के विरुद्ध मानहानि के उपरोक्त दर्ज हुए मामले का राजनीतिक पक्ष भी है। आरोप लगते हैं कि राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा के अन्य नेताओं के विरुद्ध की जाती टिप्पणियों से सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा बहुत परेशान है तथा इसी कारण उन्हें देश भर में अनेक मामलों में भी उलझाया गया है। इन मामलों का गुजरात हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने अपने ढंग से उल्लेख भी किया है। यदि अब राहुल गांधी को सर्वोच्च न्यायलय से इस संबंध में कोई राहत नहीं मिलती तो वह 2024 में होने वाला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सकेंगे और यदि दो वर्ष की सज़ा बरकरार रहती है तो अगामी 6 वर्ष में कोई भी चुनाव लड़ने के योग्य नहीं होंगे। एक प्रकार से राहुल गांधी के चुनावी राजनीति से बाहर निकलने का ़खतरा उत्पन्न हो सकता है। इसी कारण ही कांग्रेस पार्टी में इस मामले को लेकर तीव्र प्रतिक्रिया हो रही है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि इस मामले के कानूनी पक्ष के साथ-साथ राजनीतिक तौर पर भी मुकाबला किया जाएगा। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का विचार है कि यदि राहुल गांधी इस मामले के कारण चुनावी राजनीति के बाहर हो गए और जेल चले गए तो राजनीतिक तौर पर भाजपा को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के पद के लिए श्री नरेन्द्र मोदी का मुकाबला मल्लिकार्जुन खड़गे से हो सकता है और कांग्रेस को इससे लोगों की सहानुभूति भी प्राप्त हो सकती है।
हमारे विचार के अनुसार चाहे राहुल गांधी द्वारा मोदी उप नाम को लेकर की गई टिप्पणियां इतना गम्भीर अपराध नहीं थीं, जितना कि उन्हें सज़ा दी गई है, परन्तु इसके साथ ही हम यह भी कहना चाहते हैं कि राहुल गांधी अनेक बार मीडिया के साथ बातचीत करते हुए या भाषण देते हुए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर जाते हैं, जो कि उन्हें मुसीबत में डाल देते हैं। राहुल गांधी सहित देश के अन्य राजनीतिक नेताओं को भी इस मामले से कम से कम यह तो सबक लेना ही चाहिए कि बोलते समय शब्दों का सोच-समझ कर इस्तेमाल किया जाए, ताकि बाद में बोलने वाले नेताओं को अनावश्यक तौर पर मुश्किलों का सामना न करना पड़े।